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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Nine. Canto One (Eng-Hindi)

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BOOK NINE. THE BOOK OF ETERNAL NIGHT

Canto One. Towards the Black Void

 

So was she left alone in the huge wood,
Surrounded by a dim unthinking world,
Her husband’s corpse on her forsaken breast.

इस प्रकार अब सावित्री उस विशाल वन में अकेली रह गयी,
चारों ओर से एक अविचारी धूमिल जगत् से घिरी,
अपने पति का शव अपनी परित्यक्ता छाती पर धरे थी।

She measured not her loss with helpless thoughts,
Nor rent with tears the marble seals of pain:
She rose not yet to face the dreadful god.

निज विस्तृत उदार नीरव आत्मा में अचल स्थित
उसने अपनी क्षति को असहाय विचारों से नहीं तोला,
और पीड़ा की शिला सम कठोर मुद्राओं को अश्रुओं से नहीं तोड़ा:
उस भीषण देव का सामना करने हेतु भी वह नहीं उठी।

Over the body she loved her soul leaned out
In a great stillness without stir or voice,
As if her mind had died with Satyavan.

अपने प्रियतम के शरीर पर उसकी आत्मा झुकी
एक महती स्थिरता में बिना गति के निःशब्द बनी रही,
यथा सत्यवान् के साथ उसका अपना मन भी मर गया था।

But still the human heart in her beat on.

किन्तु अभी भी उसके अन्तर में एक भौतिक हृदय धड़क रहा था।

Aware still of his being near to hers,
Closely she clasped to her the mute lifeless form
As though to guard the oneness they had been
And keep the spirit still within its frame.

अभी भी सत्यवान् की सत्ता की समीपता का भान उसमें सचेत था,
उसकी मूक निर्जीव देह को उसने अपने से चिपकाये रखा
जैसे कि वह उस एकात्मता की रक्षा कर रही थी जो कभी उनमें थी
और जीव को अभी भी इस काया के अन्तर में रोक सकती थी।

Then suddenly there came on her the change
Which in tremendous moments of our lives
Can overtake sometimes the human soul
And hold it up towards its luminous source.

तब हठात् उसमें एक रूपान्तरण हो उठा,
जैसा कि हमारे जीवनों के दुर्दान्त मुहूर्त में
मानव को कभी-कभी अधिकृत कर लेता है
और जो इसे इसके तेजस्वी उद़्गम की ओर उठा देता है।

The veil is torn, the thinker is no more:
Only the spirit sees and all is known.

पटावरण छिन्न-भिन्न हो जाता है, चिन्तक-विचारक लोप हो जाता है:
केवल चैतन्य जीव द्रष्टा बन देखता है और सब ज्ञात हो जाता है।

Then a calm Power seated above our brows
Is seen, unshaken by our thoughts and deeds,
Its stillness bears the voices of the world:
Immobile, it moves Nature, looks on life.

तब एक शान्त महाशक्ति हमारे भ्रूमध्य-चक्र में विराजमान
साक्षात् हो उठती है, यह हमारे विचारों और कृत्यों द्वारा अविचलित है,
अपनी स्थिर दृढ़ता में इस संसार की वाचाएं वहन करती हैं:
अचल होकर, यह सकल प्रकृति की संचालिका है, जीवन पर दृष्टि रखती है।

It shapes immutably its far-seen ends;
Untouched and tranquil amid error and tears
And measureless above our striving wills,
Its gaze controls the turbulent whirl of things.

अपने दूरदर्शी लक्ष्यों को अविकारी भाव से यह रूपायित करती;
हमारे दोष और दुःख के मध्य यह अस्पर्श्य और शान्त
हमारे प्रयासरत संकल्पों के ऊर्ध्व में अमेय आसीन है।
अपनी दृष्टिमात्र से पदार्थों के व्यथित चक्रावात पर नियन्त्रण रखती है।

To mate with the Glory it sees, the spirit grows:
The voice of life is tuned to infinite sounds,
The moments on great wings of lightning come[571]
And godlike thoughts surprise the mind of earth.

हमारी चैत्य-सत्ता का विकास कर दिव्य महिमा से एक होना, यह देखती है:
तब जीवन की ध्वनियां अनन्त स्वरों से समस्वर हो जाती हैं,
विद्युती विशाल पंखों पर चढ़ ये घड़ियां आती हैं
और देवतुल्य संकल्पों से पार्थिव मन को चकित कर जाती हैं।

Into the soul’s splendour and intensity
A crescent of miraculous birth is tossed,
Whose horn of mystery floats in a bright void
As into a heaven of strength and silence thought
Is ravished; all this living mortal clay
Is seized and in a swift and fiery flood
Of touches shaped by a Harmonist unseen.

इस जीव सत्ता के वैभव और गम्भीर गहनता में
चमत्कारी जन्म का एक नया चन्द्रमा उदित हो उठता है,
जिसकी तूर्य ध्वनि एक उज्ज्वल शून्य गुह्यता से तैरती आती है,
मानों शक्ति और नीरव शान्ति के स्वर्ग में विचार का अपहरण हो गया हो,
और यह जीवन्त नश्वर माटी अधिकृत कर ली गयी हो
और एक तत्पर और अग्निल स्पर्शों की बाढ़ में फिर से
एक अदृश्य दिव्य संगीतकार द्वारा रूपायित कर दी गयी हो।

A new sight comes, new voices in us form
A body of the music of the gods.

एक नयी दृष्टि खुल जाती है, हममें नवीन वाचाएं मुखरित होती हैं
यह देह परम देवों के संगीत की काया बन जाती है।

Immortal yearnings without name leap down,
Large quiverings of godhead seeking run
And weave upon a puissant field of calm
A high and lonely ecstasy of will.

अनामी अमर लालसाएं नीचे कूद आती हैं,
देवांश के विशाल स्पन्दन खोज करते दौड़ते
और शान्ति के एक शक्तिशाली क्षेत्र की रचना कर डालते हैं
संकल्प का एक उदात्त और एकाकी आत्माह्लाद बुन देते हैं।

This in a moment’s depths was born in her.

इस एक क्षण की गहनताओं में यह सब सावित्री में उत्पन्न हो उठा।

Now to the limitless gaze disclosed that sees
Things barred from human thinking’s earthly lids,
The Spirit who had hidden in Nature soared
Out of his luminous nest within the worlds:
Like a vast fire it climbed the skies of night.

अब उस द्रष्टा चितवन की असीमता में प्रकट हो गये
वे सब पदार्थ जो अब तक विचार की पार्थिव दृष्टि हित वर्जित थे,
अपरा प्रकृति में गोपित भागवत चेतना ऊपर उठ आयी
जगतों के अन्तर में छिपे अपने दीप्त-नीड़ से बाहर आ गयी:
एक विशाल ज्वाला समान यह रात्रि के नभों में चढ़ गयी।

Thus were the cords of self-oblivion torn.
Like one who looks up to far heights she saw,
Ancient and strong as on a windless summit
Above her where she had worked in her lone mind
Labouring apart in a sole tower of self,
The source of all which she had seemed or wrought,
A power projected into cosmic space,
A slow embodiment of the aeonic will,
A starry fragment of the eternal Truth,
The passionate instrument of an unmoved Power.

इस प्रकार आत्म-विस्मृति के सूत्रों को इसने काट छिन्न कर दिया:
उसके समान जो सुदूर के शिखरों की ओर ऊपर देखे,
सावित्री ने अपने ऊर्ध्व में सनातन और शक्तिशाली एक वायुविहीन शिखर-सम देखा,
यह उससे भी ऊंचा था जहां उसने निज एकाकी मानस में कार्य किया था
आत्मा की उस एकाकी बुर्जी में जहां वह सबसे अलग श्रमरत रही थी,
यह तो उस समस्त का उद़्गम था जिसे उसने अन्तर में देखा या गढ़ा था,
ब्रह्माण्डीय आकाश में एक शक्ति का प्रक्षेपण,
युगों के संकल्प का एक धीमा रूपायन,
शाश्वत अमर सत्य का एक चमकता अंश,
एक अचल अटल महाशक्ति का यह एक आवेशपूर्ण यन्त्र था।

A Presence was there that filled the listening world,
A central All assumed her boundless life.

एक दिव्य उपस्थिति वहां थी जो इस श्रोता जगत् पर छा गयी;
एक केन्द्रीय सर्वेश्वर ने सावित्री के असीम प्राण को धारण कर लिया।

A sovereignty, a silence and a swiftness,
One brooded over abysses who was she.

एक प्रभुसत्ता, एक स्थिर नीरवता और एक सत्वरता,
एक जो गर्तों पर ध्यानमग्न थी वह साक्षात् हो उठी।

As in a choric robe of unheard sounds
A force descended trailing endless lights; [572]
Linking Time’s seconds to Infinity,
Illimitably it girt the earth and her:
It sank into her soul and she was changed.

मानों अश्रुत ध्वनियों की एक झीनी पोशाक पहने
एक महाशक्ति अनन्त ज्योतियों को घसीटती उसमें अवतरित हो गयी;
जिसने पार्थिव काल के क्षणों को अनन्तता से जोड़ दिया,
इसने असीमता से इस पृथ्वी और सावित्री को घेर लिया:
यह उसकी चैत्यात्मा में निमज्जित हो गयी और वह रूपान्तरित हो गयी।

Then like a thought fulfilled by some great word
That mightiness assumed a symbol form;
Her being’s spaces quivered with its touch,
It covered her as with immortal wings;
On its lips the curve of the unuttered Truth,
A halo of Wisdom’s lightnings for its crown,
It entered the mystic lotus in her head,
A thousand-petalled home of power and light.

तब ज्यों एक विचार किसी महान् शब्द द्वारा परिपूर्णता पा जाये
उस सर्वसामर्थ्यता ने एक प्रतीक-आकार धारण कर लिया:
इसके स्पर्श से सावित्री की सत्ता के सूक्ष्माकाश कांप उठे,
पर इसने उसे मानों अमर पंखों से ढक सहेज लिया;
इस शक्ति के अधरों पर अनुच्चारित परम-सत्य का घुमाव था,
सत्य-प्रज्ञा का विद्युतीय प्रभामण्डल एक मुकुट सम शोभित था,
यह सावित्री के शीर्ष में सहस्त्रदल गुह्य कमल में प्रवेश कर गयी,
जो शक्ति और ज्योति का एक सहस्र-कक्षीय धाम है।

Immortal leader of her mortality,
Doer of her works and fountain of her words,
Invulnerable by Time, omnipotent,
It stood above her calm, immobile, mute.

अब उसकी मानवीयता की अमर दिव्य अज्ञ-नेत्री,
उसके कर्मों को सम्पादित करती और उसके शब्दों को उच्चारती,
महाकाल भी जिसे जीत न पाया, सर्वशक्तिमयी देवी,
सावित्री के ऊर्ध्व में शान्त, अटल, मौन खड़ी थी।

 

All in her mated with that mighty hour,
As if the last remnant had been slain by Death
Of the humanity that once was hers.

उसकी सत्ता सम्पूर्णता से उस प्रचण्ड घड़ी के साथ जुड़ गयी,
जैसे कि मानवता जो कभी उसकी थी
उसकी अन्तिम शेष बूंद भी यमराज ने मार दी।

Assuming a spiritual wide control,
Making life’s sea a mirror of heaven’s sky,
The young divinity in her earthly limbs
Filled with celestial strength her mortal part.

एक आध्यात्मिक विशाल नियन्त्रण उसमें घर कर गया
जीवन-सागर को स्वर्गाकाश का दर्पण बना लिया,
उसके पार्थिव अंग अब नूतन बाल देवत्व से परिपूर्ण थे
और इसने उसके नश्वर अंश को अलौकिक शक्ति से भर दिया।

Over was the haunted pain, the rending fear:
Her grief had passed away, her mind was still,
Her heart beat quietly with a sovereign force.

वह पीछा करती यन्त्रणा, हृदय-विदारक भय मिट गया:
उसका दुःख गुजर गया, उसका मन स्थिर था,
उसका हृदय शान्त एक प्रभु-सत्ता के बल से धड़कता।

There came a freedom from the heart-strings’ clutch,
Now all her acts sprang from a godhead’s calm.

निज हृदय भावनाओं की जकड़न से अब मुक्ति का आभास उसमें था,
उसके कार्य सब एक चैत्य-पुरुष की शान्ति से प्रकट होते।

Calmly she laid upon the forest soil
The dead who still reposed upon her breast
And bore to turn away from the dead form:
Sole now she rose to meet the dreadful god.

अब धीर आत्म-शान्ति से उसने अपने पति की मृत देह को
जो अभी तक उसके वक्ष पर थी उस वन की भूमि पर लिटा दिया
और उस मृत काया से मुड़कर दूर होना सह लिया:
एकाकी अब वह उस भीषण विकराल देव को भेंटने खड़ी थी।

That mightier spirit turned its mastering gaze
On life and things, inheritor of a work
Left to it unfinished from her halting past,
When yet the mind, a passionate learner, toiled[573]
And ill-shaped instruments were crudely moved.

उस सामर्थ्यतर आत्मा ने अपनी प्रभुताशाली दृष्टि
जीवन औ’ पदार्थों पर डाली, अब वह एक दैवी कार्य की उत्तराधिकारिणी थी
जो उसके अतीत जन्मों के ठहराव से अब तक अधूरा था,
जब कि अभी भी उसका मन, एक आवेशपूर्ण विद्यार्थी सम, श्रम में लगा था,
और उसके दोषपूर्ण उपकरणों को परे धकेल हटा दिया गया।

Transcended now was the poor human rule;
A sovereign power was there, a godlike will.

मानवता का दीन हीन शासन अतिक्रमित कर लिया गया था;
एक प्रभु-सत्ता की शक्ति, एक देव-तुल्य संकल्प अब वहां पर था।

A moment yet she lingered motionless
And looked down on the dead man at her feet;
Then like a tree recovering from a wind
She raised her noble head; fronting her gaze
Something stood there, unearthly, sombre, grand,
A limitless denial of all being
That wore the terror and wonder of a shape.

फिर भी पल भर वह ठिठकी हिल नहीं पायी
और निज चरणों में पड़े मृत-मनुज को झुक, देखती रह गयी;
तब एक आंधी से झुके वृक्ष समान संभल गयी,
उसने अपना भव्य शीश उठा लिया; उसकी दृष्टि को चुनौती देता
कोई वहां खड़ा था, अपार्थिव, धूमिल, भव्य निरानंदी,
यह सम्पूर्ण अस्तित्व का एक असीम निषेध था
जो भीषण भय का विचित्र विकट रूप धारे था।

In its appalling eyes the tenebrous Form
Bore the deep pity of destroying gods.
A sorrowful irony curved the dreadful lips
That speak the word of doom. Eternal Night,
In the dire beauty of an immortal face,
Pitying arose, receiving all that lives
For ever into its fathomless heart, refuge
Of creatures from their anguish and world-pain.

इस प्रेताकार के घोर डरावने नेत्रों में
गहन दया भरी थी जो विनाश के देवताओं में होती है;
उसके विकराल अधर एक दुःखपूर्ण व्यंग्य से वक्र
सदैव प्रलय का शब्द ही उच्चारते।
इस सनातन काल-रात्रि के अमरानन के
उस भीषण सौन्दर्य में भी करुणा उठती है,
जब यह जीवनों को निज अगाध अन्तर में सदा के लिए ग्रहण करती है
प्राणियों को उनके सन्ताप और संसारी दुःख से मुक्त कराने का यह आश्रय है।

His shape was nothingness made real, his limbs
Were monuments of transience and beneath
Brows of unwearying calm large godlike lids
Silent beheld the writhing serpent, life.

उसका आकार असत् था जिसे यथार्थ बना दिया था, उसके अंग
अस्थायी स्मारक थे और अक्लान्त भौंहों के तले
शान्ति से भरी विशाल देवतुल्य पलकों के नीचे
नेत्र नीरवता से इस सर्प सम रेंगते जीवन को अवलोकते।

Unmoved their timeless wide unchanging gaze
Had seen the unprofitable cycles pass,
Survived the passing of unnumbered stars
And sheltered still the same immutable orbs.

उनकी अचल अकाल विशाल स्थिर चितवन ने
देखा था अनेक निष्फल युगों को गुजरते,
असंख्य तारों के मिट जाने पर भी ये बचे हुए थे
और उन्हीं अविकारी नयन-कोटरों में सुरक्षित थे।

The two opposed each other with their eyes,
Woman and universal god: around her,
Piling their void unbearable loneliness
Upon her mighty uncompanioned soul,
Many inhuman solitudes came close.

आज दोनों नेत्रों से एक-दूसरे का विरोध करते
शक्तिमयी नारी और विश्व-देवता आमने सामने खड़े थे:
सावित्री के चहुं ओर अपने शून्य अकेलेपन की असह्य गठरी को
उसकी शक्तिशाली नि:संग आत्मा पर लादतीं
अनेक अमानवीय एकान्तिकाएं उसके समीप आ गयीं।

Vacant eternities forbidding hope
Laid upon her their huge and lifeless look,
And to her ears silencing earthly sounds,
A sad and formidable voice arose
Which seemed the whole adverse world’s. “Unclasp,” it cried,[574]
“Thy passionate influence and relax, O slave
Of Nature, changing tool of changeless Law,
Who vainly writhst rebellious to my yoke,
Thy elemental grasp; weep and forget.

ये रीती असत् शाश्वतताएं थीं जिन्हें आशा भी निषेधित थी
उन्होंने उस पर अपनी प्राणहीन भीषण दृष्टि टिका दी,
और उसके कानों को, पार्थिव ध्वनियों हित बधिर बनाती,
एक उदास और भयंकरी वाणी गूंज उठी
जो सकल जगत् का विरोध करती लग रही थी। ‘‘छोड़ दे’’, यह चीखी,
‘‘अपने रागावेशी प्रभाव को हटा ले और जाने दे, ओ जड़-प्रकृति की दासी,
अविकारी दैवी विधान की तू विकारी यन्त्र है,
तू निष्फल ही मेरे यम-पाश का विरोध करती रेंग रही है,
यह तेरा आदि प्राकृतिक मोह है; रुदन कर और बिसार दे।

Entomb thy passion in its living grave.

अपने प्रेमावेश को इसकी जीवित समाधि में दफना दे।

Leave now the once-loved spirit’s abandoned robe:
Pass lonely back to thy vain life on earth.”

आत्मा द्वारा परित्यक्त इस चोले को जो कभी तुझे अतिप्रिय था अब छोड़ दे:
लौट जा पृथ्वी पर अपने एकाकी प्रयोजनहीन जीवन में।’’

It ceased, she moved not and it spoke again,
Lowering its mighty key to human chords,—
Yet a dread cry behind the uttered sounds,
Echoing all sadness and immortal scorn,
Moaned like a hunger of far wandering waves.

यह वाणी थम गयी, पर वह अचल रही; और तब यह पुन: गूंजी,
पर इसने अब अपने शक्तिशाली स्वर को मानवीय स्वरतन्त्री सम धीमा कर लिया,
फिर भी उन उच्चारित शब्दों के पीछे एक भीषण क्रन्दन था,
जो समस्त नैराश्य और अमरत्व के तिरस्कार से गुंजित था
दूर भटकती लहरों की एक भूख सम कराह रहा था।

“Wilt thou for ever keep thy passionate hold,
Thyself, a creature doomed like him to pass,
Denying his soul death’s calm and silent rest?

‘‘क्या तू इसे अपनी आवेशपूर्ण पकड़ में सदा रख पायेगी,
तू स्वयं भी तो एक प्राणी है जो इसके समान मृत्युपाश में धरी जायेगी,
तब इसके जीव को मृत्यु की शान्ति और नीरव विश्राम से क्यों वंचित करती है?

Relax thy grasp; this body is earth’s and thine,
His spirit now belongs to a greater power.

अपनी पकड़ ढीली कर दे; यह देह अब तेरी और पृथ्वी की है,
इस जीव पर अब एक महत्तर शक्ति का अधिकार है।

Woman, thy husband suffers.” Savitri
Drew back her heart’s force that clasped his body still
Where from her lap renounced on the smooth grass
Softly it lay, as often before in sleep
When from their couch she rose in the white dawn
Called by her daily tasks: now too as if called
She rose and stood gathered in lonely strength,
Like one who drops his mantle for a race
And waits the signal, motionlessly swift.

ओ स्त्री, तेरा पति कष्ट में है। उसे छोड़ दे।’’
सावित्री ने अपनी प्राणशक्ति पीछे खींच ली जो अभी तक मृत देह से लिपटी थी
जहां उसने अपनी गोद से उठा उसे कोमल घास पर लिटा दिया था
वहां ऐसे लेटा था जैसे कि प्रायः वह पहले उसे सुला देती थी
जब अपनी दैनिक परिचर्या का कर्तव्य पूरा करने
भोर उषा के उजाले में वह अपने बिछौने से उठती थी:
अभी भी, मानों कर्तव्य की पुकार पर वह अपनी एकाकी शक्ति एकत्र कर उठी
और खड़ी हो गयी, उस धावक सम जो दौड़ से पहले अपना चोगा उतार
प्रतीक्षा करता है, स्थिर भाव और तत्परता से संकेत होने की।

She knew not to what course: her spirit above
On the crypt-summit of her secret form
Like one left sentinel on a mountain crest,
A fiery-footed splendour puissant-winged,
Watched flaming-silent with her voiceless soul
Like a still sail upon a windless sea.

उसे किस मार्ग पर दौड़ना है वह नहीं जानती थी:
उसके गुह्याकार के गोपित शिखर पर ऊर्ध्व में उसकी आत्मा स्थित थी
एक अकेले प्रहरी सम एक पर्वत शिखर पर तैनात थी,
एक अग्निल चरणों की महिमा के अपने शक्तिशाली पंखों के साथ
उस ज्वलनशील मौन निरीक्षण में, अपनी निःशब्द जीवात्मा के साथ
वह स्थिर पाल की एक नाव के समान, एक वायुहीन सागर पर खड़ी थी।

White passionless it rode, an anchored might,
Waiting what far-ridged impulse should arise
Out of the eternal depths and cast its surge.

एक नियन्त्रित स्थिर शक्ति, यह शुभ्र आवेगहीन आवेश पर सवार
प्रतीक्षा कर रही थी कि उन शाश्वत गहनताओं के सुदूर तट से
कौन-सा पर्वतश्रेणी सम अन्तर्वेग उठकर अपना आवेशपूर्ण प्रवाह फैलाता है।

Then Death, the king, leaned boundless down, as leans[575]
Night over tired lands when evening pales
And fading gleams break down the horizon’s walls,
Nor yet the dusk grows mystic with the moon.

तब मृत्यु देवता, यमराज, असीमता से नीचे झुका ऐसे,
जैसे सन्ध्या के मलिन होते ही, रात्रि थकित भूखण्ड पर झुक आती है
और धूमिल पड़ती किरणें क्षितिज की दीवारें भंग कर देती हैं,
जब तक गोधूलि की धुंध चन्द्रमा के उदित होने से रहस्यमय नहीं बन जाती है।

The dim and awful godhead rose erect
From his brief stooping to his touch on earth,
And like a dream that wakes out of a dream,
Forsaking the poor mould of that dead clay,
Another luminous Satyavan arose,
Starting upright from the recumbent earth
As if someone over viewless borders stepped
Emerging on the edge of unseen worlds.

वह भीषण और धूमिल देवता सीधा खड़ा हो गया
धरती को छूने की अपनी क्षण भर की क्रिया से उठ गया,
और, यह एक सपने समान दिख रहा था मानों एक दूसरे स्वप्न से जाग रहा था,
उस माटी की मृत काया के दीन चोले को त्याग
दूसरा द्युतिमान सत्यवान् उठ आया,
उस सोयी धरती से वह सीधे ऐसे उदित हो उठा
मानों किसी दृश्य से परे की सीमाओं से बाहर निकल आया हो
और अगोचर लोकों के तट पर आ प्रकट हो रहा हो।

In the earth’s day the silent marvel stood
Between the mortal woman and the god.

उस पार्थिव दिवस में वह चमत्कार
उस मानवी और उस देवता के मध्य खड़ा था।

Such seemed he as if one departed came
Wearing the light of a celestial shape
Splendidly alien to the mortal air.

ऐसा लगता था कि मानों देह त्याग कर
उसने एक स्वर्गिक प्रकाशमय रूप धारण कर लिया था
जो भव्य होते हुए भी इस मर्त्य वातावरण हित विजातीय था।

The mind sought things long loved and fell back foiled
From unfamiliar hues, beheld yet longed,
By the sweet radiant form unsatisfied,
Incredulous of its too bright hints of heaven;
Too strange the brilliant phantasm to life’s clasp
Desiring the warm creations of the earth
Reared in the ardour of material suns,
The senses seized in vain a glorious shade:
Only the spirit knew the spirit still,
And the heart divined the old loved heart, though changed.

उसके मन ने उन्हीं परिचित प्रिय वस्तुओं को खोजा और पीछे हट गया
उस अपरिचित आभा शोभा से हताश था, फिर भी लालायित हो देखता रहा,
वह उस मधुर दीप्तिपूर्ण आकार से असन्तुष्ट था,
इसके अति उज्ज्वल अलौकिक लक्षणों से शंकित था;
प्राण-जीवन की पकड़ के लिए यह दीप्तिमय प्रेतछाया अति विचित्र थी
उसे तो धरा के स्नेहपूर्ण ऊष्ण सर्जन की कामना थी
जिसे भौतिक सूर्यों के ताप ने पोषण दिया हो
इन्द्रियों ने व्यर्थ ही उस भव्य आभास को धर लेने का प्रयास किया:
केवल चैत्य सत्ता ही अभी तक उस जीव पुरुष को जानती थी,
और परिवर्तित होने पर भी उसके हृदय ने उस पुरातन परिचित हृदय को जान लिया था।

Between two realms he stood, not wavering,
But fixed in quiet strong expectancy,
Like one who, sightless, listens for a command.

दो लोकों के मध्य वह स्थिर, अचल खड़ा था,
किन्तु शान्त दृढ़ प्रत्याशा से बंधा
एक दृष्टिहीन समान था, जो एक आदेश की प्रतीक्षा में था।

So were they immobile on that earthly field,
Powers not of earth, though one in human clay.

इस प्रकार वे इस पार्थिव वायुमण्डल में अचल थे,
वे पृथ्वी की शक्तियां नहीं थीं, यद्यपि उनमें से एक धरा की माटी की थी।

On either side of one two spirits strove;
Silence battled with silence, vast with vast.

उनमें से एक के दोनों ओर दो आत्मशक्तियां संघर्षरत थीं;
मौन मौन के साथ, विशालता से विशालता भिड़ी थी।

But now the impulse of the Path was felt
Moving from the Silence that supports the stars
To touch the confines of the visible world.[576]

किन्तु अब परलोक के दैवी मार्ग की अन्तर्प्रेरणा उठ आयी
नीरव प्रशान्ति से उस गति की अनुभूति आयी, जो सितारों की आधार है
इस दृश्य संसार की सीमाओं को स्पर्श करने की अनुभूति।

Luminous he moved away; behind him Death
Went slowly with his noiseless tread, as seen
In dream-built fields a shadowy herdsman glides
Behind some wanderer from his voiceless herds,
And Savitri moved behind eternal Death,
Her mortal pace was equalled with the god’s.

वह दीप्तिमय आभास सुदूर की ओर बढ़ा; उसके पीछे यम देवता
अपनी नीरव मन्द स्थिर गति से ऐसे चल रहा था,
मानों स्वप्न लोक में एक प्रेत चरवाहा उड़ता जा रहा था
अपने मूक पशु यूथ में से भटके किसी पशु को पीछे से हांकता
और सावित्री उस अमर मृत्यु देवता के पीछे गतिशील थी
उसकी मानवी चाल उस देवता की चाल की बराबरी कर रही थी।

Wordless she travelled in her lover’s steps,
Planting her human feet where his had trod,
Into the perilous silences beyond.

निःशब्द वह अपने प्रियतम के चरणों में ही चल रही थी,
अपने पांवों को वह उसी के चरण-चापों में ही धरती,
ऐसे वे परलोक के संकट से भरे घोर मौन-क्षेत्रों में प्रवेश कर गये।

 

At first in a blind stress of woods she moved
With strange inhuman paces on the soil,
Journeying as if upon an unseen road.

पहले-पहल सावित्री वनों की एक अन्धी बोझिलता के दबाव में
विचित्र अमानवीय कदमों से इस धरती पर ऐसे गतिशील थी
जैसे एक अगोचर मार्ग पर यात्रा करती हो।

Around her on the green and imaged earth
The flickering screen of forests ringed her steps.
Its thick luxurious obstacle of boughs
Besieged her body pressing dimly through
In a rich realm of whispers palpable,
And all the murmurous beauty of the leaves
Rippled around her like an emerald robe.

उसके चहुं ओर की उस हरित और कल्पित भूमि ने
वनों के उस टिमटिमाते पट ने उसके कदमों में बेड़ी डाली;
इसकी घनी शाखों के वैभव ने बाधा बन
उसकी देह को मानों धूमिलता से दाब घेरा डाला
मानों फुसफुसाहटों के समृद्ध क्षेत्र द्वारा स्पर्श किया,
और समस्त पल्लवों की सरसराती शोभा
एक हरित परिधान सम उसके चहुं ओर तरंगित हो उठी।

But more and more this grew an alien sound,
And her old intimate body seemed to her
A burden which her being remotely bore.

किन्तु धीरे-धीरे यह सब एक विजातीय ध्वनि बनती गयी,
और उसे अपनी पुरानी अभिन्न काया भी बोझ लगने लगी,
जिसे उसकी सत्ता परोक्ष भाव से वहन कर रही थी।

Herself lived far in some uplifted scene
Where to the trance-chained vision of pursuit,
Sole presences in a high spaceless dream,
The luminous spirit glided stilly on
And the great shadow travelled vague behind.

वह आत्मरूप स्वयं तो किसी दूर उन्नत दृश्य में बसी
जहां उसकी दृष्टि समाधि में बंधे उस दर्शन के पीछे लगी थी,
एक उन्नत दिशाहीन सुषुप्ति के स्वप्न-दृश्य में वे एकाकी उपस्थितियां थीं,
जिसमें दीप्तिमान एक जीवसत्ता मूक उड़ती जा रही थी
और यम की महती प्रेत छाया अस्पष्ट-सी पीछे चल रही थी।

Still with an amorous crowd of seeking hands
Softly entreated by their old desires
Her senses felt earth’s close and gentle air
Cling round them and in troubled branches knew
Uncertain treadings of a faint-foot wind:
She bore dim fragrances, far callings touched;
The wild bird’s voice and its winged rustle came
As if a sigh from some forgotten world. [577]

तब भी टटोलते करों की एक प्रेमी भीड़ ने मानों स्पर्श कर
अपनी पुरातन कामनाओं द्वारा उससे मृदुलता से विनती की
और उसकी इन्द्रियों ने धरा की समीपता की अनुभूति पायी
और मन्द समीर उनसे लिपट गया और क्षुब्ध शाखाएं
पवन के मन्द-पदचाप के अनिश्चित कदमों को पहचान गयीं:
मन्द-सुगन्ध उस तक आ पहुंचती, दूर की पुकारें स्पर्श करतीं;
वनीय पक्षी का कूजन और इसके पंखों की सरसराहट भी
किसी विस्मृत संसार के उच्छ्वास सम आ जाती।

Earth stood aloof, yet near: round her it wove
Its sweetness and its greenness and delight,
Its brilliance suave of well-loved vivid hues,
Sunlight arriving to its golden noon,
And the blue heavens and the caressing soil.

धरती उदासीन अलग होकर भी समीप थीः सावित्री के चहुं ओर
इसने अपनी माधुरी और अपनी हरियाली एवं सुख का जाल बुन दिया,
अति रुचिकर विविध रंगों की अपनी मनहर प्रभा का,
अपनी स्वर्णिम दोपहरी में सूर्य की धूप के आगमन का,
और अपने नील-नभों का और दुलारती माटी का जाल बुन दिया।

The ancient Mother offered to her child
Her simple world of kind familiar things.

आदि पृथ्वी-माता ने अपनी प्रिय बालिका को भेंट दी
अपने सरल जगत् के करुणापूर्ण परिचित पदार्थों की।

But now as if the body’s sensuous hold
Curbing the godhead of her infinite walk
Had freed those spirits to their grander road
Across some boundary’s intangible bar,
The silent god grew mighty and remote
In other spaces and the soul she loved
Lost its consenting nearness to her life.

किन्तु अब, क्योंकि देह पर इन्द्रियों की जकड़न बाधा बन गयी
उस चैत्य सत्ता के अपने अनन्त मार्ग पर आगे की प्रगति की,
अत: किसी अदृश्य सीमा का अवरोधक पार करने से पहले
उसने उन इन्द्रिय-शक्तियों को उस महत्तर पथ से मुक्त कर दिया;
वह मूक देवता उन अन्य दिशाओं में पहुंच अधिक शक्तिशाली
और दूर एवं परोक्ष हो गया, और उसके प्रियतम की जीवात्मा भी
उसके संग जीवन की स्वीकृति और समीपता से दूर हट गयी।

Into a deep and unfamiliar air
Enormous, windless, without stir or sound
They seemed to enlarge away, drawn by some wide
Pale distance, from the warm control of earth
And her grown far. Now, now they would escape.

एक गहन और अपरिचित परिवेश में
जो भीषणता से विशाल, वायुरहित, गतिहीन या निःशब्द था
वे दूर हो वर्धित होते लगने लगे, किसी विस्तृत धूमिलता
और सुदूरता में खिंचे जा रहे थे, पृथ्वी के ऊष्णताप नियन्त्रण से
और दूर हटते गये: अब, जब वे उससे बच निकलते लगने लगे।

Then flaming from her body’s nest, alarmed,
Her violent spirit soared at Satyavan.

चौंककर, तब अपने देह-नीड़ से ज्वाला समान उठ
उसकी उग्र ओजस्विनी आत्मा सत्यवान् की ओर उड़ झपटी।

Out mid the plunge of heaven-surrounded rocks
So in a terror and a wrath divine
From her eyrie streams against the ascending death,
Indignant at its crouching point of steel,
A fierce she-eagle threatened in her brood,
Borne on a rush of puissance and a cry,
Outwinging like a mass of golden fire.

स्वर्ग को घेरे हुए चट्टानों के मध्य कूद पड़ी
एक आतंक और एक दैवी क्रोध से भरी
वह उस आरोहण करती मृत्यु के विरुद्ध अपने ऊंचे नीड़ से बह निकली,
एक भयंकरी मादा चील समान मृत्यु के झुके भाले की
नोक पर उफनती जो अपने अण्डों की सुरक्षा हित आशंकित थी,
शक्तिशाली वेग की तीव्रता से भरी और चीखती
स्वर्ण अग्निपुंज सम निज पंखों को फैलाये उड़ती झपटी।

So on a spirit’s flaming outrush borne
She crossed the borders of dividing sense;
Like pale discarded sheaths dropped dully down
Her mortal members fell back from her soul.

इस प्रकार एक आत्मा के प्रज्वलित आवेग को वहन करती
वह विभाजित बोध की सीमाओं को पार कर गयी;
परित्यक्त केंचुली सम विवर्ण अंग धूमिल हो नीचे गिर गये
उसके नश्वर मानवीय भाग उसकी आत्मा से अलग हो गये।

A moment of a secret body’s sleep,
Her trance knew not of sun or earth or world;
Thought, time and death were absent from her grasp:
She knew not self, forgotten was Savitri.[578]

एक गुह्य देह की एक क्षण की सुषुप्ति की
अपनी समाधि में उसे सूर्य या पृथ्वी या संसार की अनुभूति नहीं रही,
विचार, समय और मृत्यु भी उसकी ग्राह्यता से परे हो गये थे:
वह स्वयं को नहीं जानती थी, सावित्री को भूल चुकी थी।

All was the violent ocean of a will
Where lived captive to an immense caress,
Possessed in a supreme identity,
Her aim, joy, origin, Satyavan alone.

अब तो समस्त एक ही संकल्प का उग्र सागर था
जिसमें एक अपरिमित दुलार का बंदी कैद था,
एक सर्वोच्च एकत्व में अनुप्राणित सावित्री का
केवल सत्यवान् ही लक्ष्य था, सुख-सौभाग्य, उद़्गम स्रोत था।

Her sovereign prisoned in her being’s core,
He beat there like a rhythmic heart,—herself
But different still, one loved, enveloped, clasped,
A treasure saved from the collapse of space.

उसका अधिपति उसकी सत्ता के मर्मस्थल में बन्दी बना,
वहां वह एक लयात्मक हृदय सम धड़क रहा, उसकी आत्मा था
किन्तु फिर भी भिन्न रूप में, उसका प्रियतम, आलिंगन के घेरे में कसा हुआ,
आकाश में डूबने से बचा लिया गया एक खजाना था।

Around him nameless, infinite she surged,
Her spirit fulfilled in his spirit, rich with all Time,
As if Love’s deathless moment had been found,
A pearl within eternity’s white shell.

उसके चहुं ओर अनामी, अनन्त वह उमड़ती रही,
उसकी अन्तरात्मा उसके जीवपुरुष में पूर्णता पा, युगों की समृद्धि पा गयी,
जैसे कि दिव्य प्रेम का अमर पल खोज लिया गया हो,
शाश्वत की शुभ्र-सीपी में एक श्वेत मोती पा लिया गया हो।

Then out of the engulfing sea of trance
Her mind rose drenched to light streaming with hues
Of vision and, awake once more to Time,
Returned to shape the lineaments of things
And live in borders of the seen and known.

तब समाधि-सागर की निमग्नता से बाहर निकल
उसका चित्त प्रकाश से परिप्लावित और दर्शन की विविध
आभाओं से भीगा और, एक बार पुनः उस काल में जाग गया,
वस्तुओं को गुणों के अनुसार रूपायित करने लौट आया
और दृष्ट और ज्ञात की सीमाओं में रहने लगा।

Onward the three still moved in her soul-scene.

उसके अन्तर आत्म-दृश्य में वे तीनों अभी भी आगे बढ़ते जाते थे।

As if pacing through fragments of a dream,
She seemed to travel on, a visioned shape,
Imagining other musers like herself,
By them imagined in their lonely sleep.

मानों एक स्वप्न के टुकड़ों के मध्य विचरण कर रहे हों,
एक अंतर दर्शन के आकार सम वह यात्रा करती प्रतीत हो रही थी,
अन्य ध्यानमग्न योगियों की कल्पना स्वयं में करती,
अपनी एकाकी सुषुप्ति में वे भी उसका प्रतिबिम्ब देखते।

Ungrasped, unreal, yet familiar, old,
Like clefts of unsubstantial memory,
Scenes often traversed, never lived in, fled
Past her unheeding to forgotten goals.

अग्राह्य, असत्, फिर भी परिचित, पुरातन लगते,
निस्सार स्मृतियों की फाटनों सम दृश्य दिखते,
ये दृश्य प्रायः गुजर जाते, कभी ठहरते नहीं, उड़ जाते
उसके सामने से बिना ध्यान दिये विस्तृत लक्ष्यों की ओर चले जाते।

In voiceless regions they were travellers
Alone in a new world where souls were not,
But only living moods. A strange, hushed, weird
Country was round them, strange far skies above,
A doubting space where dreaming objects lived
Within themselves their own unchanged idea.

वे वाचा शब्दहीन प्रदेश में यात्रा कर रहे थे
एक नये लोक में जहां आत्माओं का अस्तित्व नहीं था,
किन्तु केवल जीवित मनोभाव थे: एक विचित्र, मूक, निराला
प्रदेश उनके चारों ओर था, ऊर्ध्व में दूर अनोखा विचित्र नभ छाया था,
एक शंकालु आकाश जहां सपनों के विषयों का वास था
वे अन्तर्मुखी अपने एक अपरिवर्ती भाव में बसते थे।

Weird were the grasses, weird the treeless plains,
Weird ran the road which like fear hastening
Towards that of which it has most terror, passed
Phantasmal between pillared conscious rocks[579]
Sombre and high, gates brooding, whose stone thoughts
Lost their huge sense beyond in giant night.

वृक्षहीन भयावने मैदान थे, उनके घास-तृण मायावी थे;
प्रेत-मार्ग जो भयभीत-सा तीव्र गति से दौड़ता
उसकी ओर जिससे यह और अधिक डरावना लगता,
सचेत शिलाओं के छायाभासी स्तम्भों के मध्य से गुजर जाता
ऊंचे और काले, चिन्ता में मग्न द्वार थे, जिनके पाषाणी विचारों ने
अपने विशाल बोध को एक घोर रात्रि की परात्परता में खो दिया था।

Enigma of the Inconscient’s sculptural sleep,
Symbols of the approach to darkness old
And monuments of her titanic reign,
Opening to depths like dumb appalling jaws
That wait a traveller down a haunted path
Attracted to a mystery that slays,
They watched across her road, cruel and still;
Sentinels they stood of dumb Necessity,
Mute heads of vigilant and sullen gloom,
Carved muzzle of a dim enormous world.

घोर जड़-अचित् से तराशी गयी निद्रा का धूमिल रहस्य था,
पुरातन अन्धकार के आगमन के प्रतीक-चिह्न
और उसके आसुरी राज्य के स्मारक स्तम्भ थे,
जो गर्तताओं समान मूक भयानक जबड़े खोले हुए
एक भुतहे पथ-चलते यात्री की प्रतीक्षा में थे
जो एक घातक रहस्य से खिंचे चले आते,
उन्होंने सावित्री को मार्ग पार करते देखा पर वे निर्मम और स्थिर रहे;
वे मौन विश्व-आवश्यकता के प्रहरी बन खड़े थे,
उदास निराशा के सतर्क मूक-अध्यक्ष थे,
एक धूमिल घोर जगत् के तराशे गढे़ हुए मोहरे जैसे।

Then to that chill sere heavy line arrived
Where his feet touched the shadowy marches’ brink,
Turning arrested luminous Satyavan
Looked back with his wonderful eyes at Savitri.

तब उस शुष्क जड़ ठंडे क्षेत्र की बोझिल सीमा पर वे आ पहुंचे
ज्यों ही सत्यवान् के पैरों ने उस प्रेत-प्रयाण के तट का स्पर्श किया,
मुड़कर उसका दीप्तिमय आकार बन्दी हो रुक गया
और उसने अपने अद्भुत नेत्रों से सावित्री की ओर देखा।

But Death pealed forth his vast abysmal cry:
“O mortal, turn back to thy transient kind;
Aspire not to accompany Death to his home,
As if thy breath could live where Time must die.

किन्तु यमराज अपनी घनघोर निरानंदी चीत्कार से दहाड़ा:
‘‘ओ मानवी, लौट जा। अपनी अनित्य पार्थिव जाति में वापिस जा;
मृत्युदेव के साथ उसके धाम तक जाने की अभीप्सा न कर,
जहां काल मृत्यु को प्राप्त होता है तेरा प्राण वहां कैसे रह सकेगा।

Think not thy mind-born passion strength from heaven
To uplift thy spirit from its earthly base
And, breaking out from the material cage,
To upbuoy thy feet of dream in groundless Nought
And bear thee through the pathless infinite.

अपने मन में उत्पन्न इस आवेश को तू स्वर्ग की शक्ति नहीं समझना,
जो तेरी चैत्य-सत्ता को इसके जड़धार से उन्नत कर
तुझे इस भौतिक जड़-कारा से मुक्ति दिला देगी,
जिससे तू निज कल्पना के चरणों को निराधारी घोर शून्यता में जमा दे
और तुझे इस पथविहीन अनन्तता से वहन कर ले जाये।

Only in human limits man lives safe.

मानव केवल मानवीय परिधियों में ही सुरक्षित है।

Trust not in the unreal Lords of Time,
Immortal deeming this image of thyself
Which they have built on a dream’s floating ground.

दिक्काल के अवास्तविक देव-प्रभुओं का विश्वास नहीं कर,
जिन्होंने तेरे चैत्य रूप को अमर होने का ज्ञान दिया है
और उन्होंने एक दिव्य स्वप्न की बहती अस्थिर भूमि पर रच दिया है।

Let not the dreadful goddess move thy soul
To enlarge thy vehement trespass into worlds
Where it shall perish like a helpless thought.

उस भीषण कराल देवी को अपनी आत्मा का संचालन न करने दे
लोकों में अपने इस प्रचण्ड अनधिकारी प्रवेश को रोक ले
जहां पहुंच यह एक निस्सहाय विचार सम नष्ट हो जायेगा।

Know the cold term-stones of thy hopes in life.

जीवन में अपनी आशाओं के कटु यथार्थ की कठोरता जान जा।

Armed vainly with the Idea’s borrowed might
Dare not to outstep man’s bound and measured force.

दिव्य आदर्श की उधार सामर्थ्य पर गर्व से सजकर
मानव की सीमा और सीमित ऊर्जा को उलांघने का दुःसाहस न कर।

Ignorant and stumbling, in brief boundaries pent,[580]
He crowns himself the world’s mock suzerain
Tormenting Nature with the works of Mind.

अज्ञानी और लड़खड़ाता, क्षणिक सीमाओं में हांफता,
मानव स्वयं अपने को जगत्-अधिराजा का मुकुट पहना लेता है
और मन के कारनामों से सम्पूर्ण प्रकृति को यन्त्रणा देता है।

O sleeper dreaming of divinity,
Wake trembling mid the indifferent silences
In which thy few weak chords of being die.

देवत्व का सपना देखती, ओ सोनेवाली,
इन उदासीन भयंकर सन्नाटों के मध्य जाग जा, कंपकंपाती,
जिनमें तेरी सत्ता के कुछ दुर्बल सूत्र तो भय से मर चुके हैं।

Impermanent creatures, sorrowful foam of Time,
Your transient loves bind not the eternal gods.”

ये सब क्षणभंगुर अनित्य जीव हैं, त्रिकाल सागर के तुच्छ झाग हैं
यह तेरा क्षणिक अस्थिर प्रेम शाश्वत देवताओं का बाध्य नहीं कर सकता है।’’

The dread voice ebbed in the consenting hush
Which seemed to close upon it, wide, intense,
A wordless sanction from the jaws of Night.

वह भीषण वाचा उस समर्थनकारी मौन में जा डूब गयी
इसके ऊपर घनता से घुमड़ता छाया हुआ लग रहा था, तीव्र औ’ गहन,
कालरात्रि के जबड़ों से निकला यह एक शब्दहीन अनुमोदन था।

The Woman answered not. Her high nude soul,
Stripped of the girdle of mortality,
Against fixed destiny and the grooves of law
Stood up in its sheer will a primal force.

उस नारी शक्ति ने उत्तर नहीं दिया। उसकी उन्नत आवरणहीन जीवात्मा
जिसने नश्वरता की उस मेखला को उतार दिया था,
नियत अटल विधान के और विश्व नियमों की लीक के विरोध में
अपने एकनिष्ठ व्रत में एक आद्याशक्ति बन खड़ी थी।

Still like a statue on its pedestal,
Lone in the silence and to vastness bared,
Against midnight’s dumb abysses piled in front
A columned shaft of fire and light she rose.[581]

अपनी पीठिका पर एक प्रतिमा सम स्थिर थी
उस नीरव सन्नाटे और घोर विस्तार में नग्न अकेली,
मध्यरात्रि की मूक गर्तों के ढेरों के विरुद्ध, उनके सामने
वह अग्नि और प्रकाश के एक स्तम्भ सम उठने लगी।

END OF CANTO ONE