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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Seven. Canto One (Eng-Hindi)

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BOOK SEVEN. THE BOOK OF YOGA

Canto One. The Joy of Union; the Ordeal of the Foreknowledge of Death and the Heart’s Grief

 

Fate followed her foreseen immutable road.

सावित्री के पूर्वनियत अटल पथ पर नियति पीछे-पीछे चल रही थी।

Man’s hopes and longings build the journeying wheels
That bear the body of his destiny
And lead his blind will towards an unknown goal.

मानव की आशाओं और लालसाओं से इस यात्रा-रथ के पहिये निर्मित होते हैं
जो उसके भाग्य के देहरूपी ढांचे को वहन करते हैं
और उसके अन्धे संकल्प को एक अज्ञात ध्येय की ओर लिये चलते हैं।

His fate within him shapes his acts and rules;
Its face and form already are born in him,
Its parentage is in his secret soul;
Here Matter seems to mould the body’s life
And the soul follows where its nature drives:
Nature and Fate compel his free-will’s choice.

उसके अन्तर में आरूढ़ उसका भाग्य उसके कर्मों औ’ नियमों को आकार देता है;
इस नियति का आकार उसमें पहले ही जन्म ले चुका होता है,
इसकी पैतृकता मानव की गुह्यात्मा में निहित है:
इस शरीर का जीवन गढ़ता तो जड़तत्त्व दिखायी देता है
और जहां भी इसका स्वभाव ले जाये जीव अनुसरण करता दिखता है।
पर उसके स्वतन्त्र संकल्प का चुनाव विश्व-प्रकृति और भाग्यविधान से बाध्य है।

But greater spirits this balance can reverse
And make the soul the artist of its fate.

किन्तु महत्तर आत्माएं इस सन्तुलन को उलट सकती हैं
और निज अन्तरात्मा को अपने भाग्य का शिल्पीबना देती हैं।

This is the mystic truth our ignorance hides:
Doom is a passage for our inborn force,
Our ordeal is the hidden spirit’s choice,
Ananke is our being’s own decree.

यही वह गुह्य सत्य है जिसे हमारी अज्ञता छिपाये रखती है:
दुर्भाग्य तो एक मार्गमात्र है जो हमारे आत्मबल को जगाता है,
हमारी अग्नि-परीक्षा भी हमारी गोपित आत्मा का चुनाव है,
भवितव्यता हमारी आत्मसत्ता का आदेश-पत्र है।

All was fulfilled the heart of Savitri
Flower-sweet and adamant, passionate and calm,
Had chosen and on her strength’s unbending road
Forced to its issue the long cosmic curve.

उस सकल कार्य की पूर्ति हो गयी जिसका पुष्प सम मधुर
और व्रती सावित्री के आवेशमय और शान्त हृदय ने
चुनाव किया था, और अपनी शक्ति के अटल मार्ग पर
विश्व-विधाता कीलम्बी वक्ररेखा को अपने निर्णय से बांध दिया था।

Once more she sat behind loud hastening hooves;
A speed of armoured squadrons and a voice
Far-heard of chariots bore her from her home.

एक बार फिर से वह अपने द्रुतगामी रथ पर आरूढ़
सुसज्जित अश्वारोहियों की एक टुकड़ी के साथ
और दूर तक सुनायी देते रथों का कोलाहल उसे पितृघर से ले चला।

A couchant earth wakened in its dumb muse
Looked up at her from a vast indolence:
Hills wallowing in a bright haze, large lands
That lolled at ease beneath the summer heavens,
Region on region spacious in the sun,
Cities like chrysolites in the wide blaze
And yellow rivers pacing, lion-maned,[465]
Led to the Shalwa marches’ emerald line,
A happy front to iron vastnesses
And austere peaks and titan solitudes.

शयन करती धरती ने जैसे अपने नीरव ध्यान से जागकर
उसकी ओर एक विस्तृत अलसायी दृष्टि से देखा:
पहाड़ियों पर एक चमकीली धुंध लोटपोट हो रही थी,
भूमि का विस्तार ग्रीष्म नभ तले दूर दूर तक सहजता से फैला था,
धूप में फैले क्षेत्र पर क्षेत्र निकलते गये,
नगर उस उग्रताप के विस्तार में रंगीन पाषाणों सम चमक रहे थे
और सरसराती चमकती सरिताएं सिंह-अयालों सम पीली लग रही थीं,
ये सकल दृश्य उसे शाल्व प्रदेश की हरित-सीमा की ओर ले जा रहे थे
जो लौह विशालताओं और तपस्वी शिखरों का
एवं विशाल निर्जन एकान्तों, पर खुलता एक प्रसन्न अग्र द्वार था।

Once more was near the fair and fated place,
The borders gleaming with the groves’ delight
Where first she met the face of Satyavan
And he saw like one waking into a dream
Some timeless beauty and reality,
The moon-gold sweetness of heaven’s earth-born child.

एक बार फिर से वह मनोहर और दैवनियत स्थान समीप आ गया,
जिसकी सीमाओं पर लगी वन-लताएं आनन्द से लहरा रही थीं
जहां वह पहले-पहल सत्यवान् से भेंटी थी
और उसने भी सावित्री को एक जाग्रत् स्वप्न सम देखा था
मानों कोई कालातीत सौन्दर्य राशि और यथार्थता हो,
उस स्वर्गिक भू-जात बालिका की शशि-स्वर्ण माधुरी का पान किया था।

The past receded and the future neared:
Far now behind lay Madra’s spacious halls,
The white carved pillars, the cool dim alcoves,
The tinged mosaic of the crystal floors,
The towered pavilions, the wind-rippled pools
And gardens humming with the murmur of bees,
Forgotten soon or a pale memory
The fountain’s plash in the wide stone-bound pool,
The thoughtful noontide’s brooding solemn trance,
The colonnade’s dream grey in the quiet eve,
The slow moonrise gliding in front of Night.

अब अतीत पीछे सरकता गया और भविष्य समीप आने लगा:
मद्रदेश के खुले विशाल कक्ष अब दूर पीछे रह गये,
वे श्वेत सुन्दर शिल्प-मण्डित स्तम्भ, वे शीतल धूमिल विश्राम कक्ष,
स्फटिक फर्शों की वह रंगीन पच्चीकारी,
गगनस्पर्शी मण्डप, मन्द समीर में झोंके लेती सरोवर की लहरें,
और मधुमक्खियों की गुनगुनाहट से गुंजित उपवन,
शीघ्र ही विस्मृत हो एक धुंधली स्मृति बन रह गये,
पत्थरों से बंधे तटों के सरोवरों में फव्वारों का उछलता जल,
विचारमग्न दोपहरी का ध्यानमग्न चिन्तन,
नीरव संध्या में स्वप्निल धूसररंगी स्तम्भ-पंक्तियां,
अंधेरी रात में चन्द्रमा का धीरे से उगना और फिसल डूब जाना।

Left far behind were now the faces known,
The happy silken babble on laughter’s lips
And the close-clinging clasp of intimate hands
And adoration’s light in cherished eyes
Offered to the one sovereign of their life.

वे परिचित मुख अब बहुत पीछे छूट गये थे,
हास्य के अधरों पर वह मुदित रेशमी गुनगुनाहट
और सुहृद हाथों का वह घनिष्ठता से पकड़ लिपट जाना
दुलार भरे नयनों में स्नेह-भक्ति कीवह चमक
जो कोई अपनी जीवन साम्राज्ञी को ही अरपता है।

Nature’s primeval loneliness was here:
Here only was the voice of bird and beast,—
The ascetic’s exile in the dim-souled huge
Inhuman forest far from cheerful sound
Of man’s blithe converse and his crowded days.

यहां तो अब आदि प्रकृति की निर्जनता थी:
केवल पशु-पक्षियों की कलरव ध्वनि थी,-
इस अर्ध-सचेत प्राणियों के अमानवीय वन में
तपस्वियों का वासस्थल था जो मानवीय समाज के
प्रफुल्ल वार्तालाप और व्यस्त दिवसों से अति दूर था।

In a broad eve with one red eye of cloud,
Through a narrow opening, a green flowered cleft,
Out of the stare of sky and soil they came
Into a mighty home of emerald dusk.

एक संध्या की विस्तृतता मेघ का रक्तवर्णीनेत्र लिये झुक आयी थी,
वे आकाश की तपती चितवन और धरा के ताप से निकल आ पहुंचे,
एक संकरी फाटन के पुष्पित हरियाले झरोखे से हो,
एक हरित धूमिल संध्या के विशाल घर के आंगन में।

There onward led by a faint brooding path
Which toiled through the shadow of enormous trunks
And under arches misers of sunshine,[466]
They saw low thatched roofs of a hermitage
Huddled beneath a patch of azure hue
In a sunlit clearing that seemed the outbreak
Of a glad smile in the forest’s monstrous heart,
A rude refuge of the thought and will of man
Watched by the crowding giants of the wood.

वहां से आगे का मार्ग एक धूमिल ध्यानमग्न पगडण्डी थी
जो विशाल वृक्ष-तनों की छाया से हो गुजरती
और छायापूर्णतोरणों के नीचे से निकलने के प्रयास में लगी थी,
अब उन्हें एक आश्रम की पर्णकुटियों की नीची छतें दिखीं
जो एक नीले नभ के तले सिमटी
एक प्रकाशपूर्ण खुले स्थल में परस्पर चिपकी थीं,
वन के भीषण हृदय पर एक मुदित स्मित सम खिली लग रही थीं,
यह मानव के विचार और संकल्प की एक वनवासी आश्रय-स्थली
वन के तरुवरों की घनता जिसे सुरक्षा प्रदान कर रही थी।

Arrived in that rough-hewn homestead they gave,
Questioning no more the strangeness of her fate,
Their pride and loved one to the great blind king,
A regal pillar of fallen mightiness
And the stately care-worn woman once a queen
Who now hoped nothing for herself from life,
But all things only hoped for her one child,
Calling on that single head from partial Fate
All joy of earth, all heaven’s beatitude.

जब वे इन माटी के कच्चे आवासों के आंगन में आ पहुंच गये
तो उन्होंने सावित्री के भाग्य-वैचित्र्य पर और प्रश्न नहीं उठाये,
और निज अतिप्रिय गौरवशालिनी पुत्री को उस महान् अन्धे राजा को सौंप दिया,
जो पराजित राज्य का एक राजसी स्तम्भ था
और उस चिंताग्रस्त भव्य नारी को, जो कभी एक महिषी थी,
पर अब अपने लिए जीवन से कुछ नहीं चाहती थी,
किन्तु अपनी अकेली सन्तान हित समस्त सुखों की आशा रखती थी,
पुत्र के एकमात्र भाल पर पक्षपाती विधाता से वरदान मांगती
पृथ्वी के सकल सुख, सम्पूर्ण स्वर्ग के दिव्यानन्द का।

Adoring wisdom and beauty like a young god’s,
She saw him loved by heaven as by herself,
She rejoiced in his brightness and believed in his fate
And knew not of the evil drawing near.

एक युवा देवता सम उसकी प्रतिभा और सौन्दर्य को पूजती,
जैसा वह उसे प्रिय था वैसा ही उसे देवताओं का प्रिय भाजन समझती,
उसकी तेजस्विता में मुदित उसके भाग्य के प्रति आश्वस्त
और समीप आते किसी अनिष्ट से वह अनजान थी।

Lingering some days upon the forest verge
Like men who lengthen out departure’s pain,
Unwilling to separate sorrowful clinging hands,
Unwilling to see for the last time a face,
Heavy with the sorrow of a coming day
And wondering at the carelessness of Fate
Who breaks with idle hands her supreme works,
They parted from her with pain-fraught burdened hearts;((( What is apparently an alternative version of the comparison found in the six preceding lines follows this line thus:
As forced by inescapable fate we part
From one whom we shall never see again;)))
Driven by the singularity of her fate,
Helpless against the choice of Savitri’s heart
They left her to her rapture and her doom
In the tremendous forest’s savage charge.

उसके पिता का परिवार उस वन की सीमा पर कुछ दिन ठहरा रहा
विदाई की घड़ी की पीड़ा को जैसे और दीर्घबना टाल रहा हो,
वेदनापूर्ण हाथों की पकड़ से पृथक् नहीं होना चाहता था,
एक प्रिय मुख का अन्तिम दर्शन करने को इच्छुक नहीं था,
आगामी दिवस की विदाई से उनका दुःखी मन बोझिल था
और विधाता की लापरवाही पर आश्चर्यचकित था
जो बिना प्रयोजन अपने हाथों ही अपनी सर्वोत्तम कृति तोड़ देता है,
व्यथा से विदीर्ण बोझिल हृदयों से उन्होंने सावित्री से विदा ली;
जैसे हम अटल भाग्य से बाध्य हो बिछुड़ने को विवश हो जाते हैं
उस अपने प्रियजन से जिसे हम फिर कभी देख नहीं पायेंगे;
पुत्री की नियति को विलक्षण विशिष्टता से वे बंधे थे,
सावित्री के हृदय के चुनाव से वे असहाय बने
उसे उसके प्रेमानन्द और सर्वनाश को सौंप चले गये,
उस घोर भीषण वन के पाशविक संरक्षण में छोड़ लौट गये।

All put behind her that was once her life,
All welcomed that henceforth was his and hers,[467]
She abode with Satyavan in the wild woods:
Priceless she deemed her joy so close to death;
Apart with love she lived for love alone.

उसका पुराना जीवन अब सब पीछे छूट गया,
अब से जो उसका और सत्यवान् का था उसने उस समस्त का स्वागत किया,
उन घने वनों में अब सत्यवान् के साथ उसका आवास था:
मृत्यु की छाया में पालित उस सुख की अमूल्यता का उसे भान था;
पृथकता में प्रेम के साथ बसती वह केवल प्रेम के लिए जीवित थी।

As if self-poised above the march of days,
Her immobile spirit watched the haste of Time,
A statue of passion and invincible force,
An absolutism of sweet imperious will,
A tranquillity and a violence of the gods
Indomitable and immutable.

मानों दिवसों के प्रयाण के ऊर्ध्व में आत्म-स्थित हो,
उसकी अचल व्रती आत्मा काल की तीव्र गति को अवलोकती,
प्रेमावेश की और अजेय शक्ति की एक प्रतिमा बनी,
मधुर निरंकुश संकल्प की एक प्रभुता-सी,
वह देवताओं की रौद्ररूपिणी और एक प्रशान्तिरूपा
अदमनीय और अविकारी थी।

 

At first to her beneath the sapphire heavens
The sylvan solitude was a gorgeous dream,
An altar of the summer’s splendour and fire,
A sky-topped flower-hung palace of the gods
And all its scenes a smile on rapture’s lips
And all its voices bards of happiness.

पहले पहल उन नील गगनों तले की वह तपोवनीय एकान्तिकता
उसको एक सुन्दर स्वप्न सम लगती,
ग्रीष्म का ताप और शोभा एक पूजावेदी
आकाशवितान से लटके पुष्प-गुच्छों से सज्जित एक देवों की अट्टालिका-सी
और इसके दृश्य सकल हर्ष-मुदित अधरों की एक मुस्कान थी
और समस्त ध्वनियां चारणों की मधुर वन्दना थीं।

There was a chanting in the casual wind,
There was a glory in the least sunbeam;
Night was a chrysoprase on velvet cloth,
A nestling darkness or a moonlit deep;
Day was a purple pageant and a hymn,
A wave of the laughter of light from morn to eve.

सामान्य समीर में भी एक आलाप की गूंज थी,
तुच्छ-सी सूर्य-रश्मि में एक महिमा समायी थी;
रजनी मखमली वस्त्र पर एक मणि समान शोभित
अन्धकार एक नीड़ की सुरक्षा या एक ज्योत्स्ना की गहनता
और दिवस एक नील-लालरंगी उत्सव और एक मन्त्र था,
प्रभात से संध्या तक उठती हास्य ज्योति की एक लहर जैसा।

His absence was a dream of memory,
His presence was the empire of a god.

सत्यवान् की अनुपस्थिति स्मृति का सुखद स्वप्न था,
उसकी उपस्थिति एक देवता का साम्राज्य बन जाता।

A fusing of the joys of earth and heaven,
A tremulous blaze of nuptial rapture passed,
A rushing of two spirits to be one,
A burning of two bodies in one flame.

उनका मिलन धरती और स्वर्गिक सुखों का एक सम्मिश्रण था,
वैवाहिक हर्षातिरेक एक कम्पित ज्वालासम उन पर हो बह जाता,
दो आत्माओं की दौड़कर एक होने की कामना जगा जाता,
दो देहों को एक दीपशिखा सम प्रज्जवलित कर जाता।

Opened were gates of unforgettable bliss:
Two lives were locked within an earthly heaven
And fate and grief fled from that fiery hour.

अविस्मरणीय आनन्द के द्वार सब खुल गये:
एक पृथ्वी के स्वर्ग पर दो जीवन जुड़ गये
और उस तप्त प्रज्वलित घड़ी से नियति और दुःख उड़ गये।

But soon now failed the summer’s ardent breath
And throngs of blue-black clouds crept through the sky
And rain fled sobbing over the dripping leaves
And storm became the forest’s titan voice.
Then listening to the thunder’s fatal crash [468]
And the fugitive pattering footsteps of the showers
And the long unsatisfied panting of the wind
And sorrow muttering in the sound-vexed night,
The grief of all the world came near to her:
Night’s darkness seemed her future’s ominous face.

किन्तु अब शीघ्र ही ग्रीष्म का तीव्र श्वास शक्ति-हीन हो चला
और नील-श्याम मेघदलों ने आकाश को घेर लिया
टपकते पल्लवों पर वर्षा की बूंदें सिसकती उड़ती गिरतीं
और झंझावात आकर वन के तुमुल नाद बन गूंजते दहाड़ते
वह घातक उल्कापात का घोर ध्वनि से गिरना सुनती,
और बौछारों के भागते पदचापों की टपाटप को
एवं वायुदेव का दीर्घकाल तक असन्तुष्ट-सा हांफते भागना
और कोलाहल से पीड़ित रात्रि में दु:खों की बड़बड़ाहट सुनती,
सावित्री के पास जैसे समस्त संसार की वेदना समीप खिंच आती।
घोर रात्रि का वह अन्धकार उसे अपने भविष्य के अशुभ मुख सम दिखता।

The shadow of her lover’s doom arose
And fear laid hands upon her mortal heart.

उसके प्रियतम के सर्वनाश की परछाई जैसे सामने खड़ी हो
उसके मानवीय हृदय पर भय ने निज करों को धर दिया हो।

The moments swift and ruthless raced; alarmed
Her thoughts, her mind remembered Narad’s date.

निष्ठुर क्षण तीव्रता से दौड़ रहे थे; विचारों से व्याकुल हो,
उसके मन ने हठात् नारद की तिथि की उसे याद दिला दी।

A trembling moved accountant of her riches,
She reckoned the insufficient days between:
A dire expectancy knocked at her breast;
Dreadful to her were the footsteps of the hours:
Grief came, a passionate stranger to her gate:
Banished when in his arms, out of her sleep
It rose at morn to look into her face.

उसके वैभवों का खजांची एक कम्पन सेसिहर उठा,
सावित्री ने बचे हुए दिवसों की अपर्याप्त संख्या को गिना:
एक दारुण प्रत्याशा ने उसके वक्षस्थल पर आघात किया;
घड़ियों के पदचापों की ध्वनि उसके लिए अति दुःखदायी बन गयीः
एक आवेशपूर्ण अपरिचित दुःख उसके द्वार पर मूर्तिमान् खड़ा था:
जब वह निज प्रिय की बांहों में होती तो दूर हट जाता,
किन्तु जैसे ही वह जागती वह उसे घूरने समीप आ जाता।

Vainly she fled into abysms of bliss
From her pursuing foresight of the end.

इस पीछा करती भावी मृत्यु की दृष्टि से स्वयं को बचा
प्रेमानन्द की खाड़ी में अब उसका डूब छिप जाना भी निष्फल रहता।

The more she plunged into love that anguish grew;
Her deepest grief from sweetest gulfs arose.

प्रेम में जितनी गहराई में वह डूबती वेदना उतनी अधिक बढ़ जाती;
उसकीगहनतम व्यथा मधुरतम खाड़ियों से उठती।

Remembrance was a poignant pang, she felt
Each day a golden leaf torn cruelly out
From her too slender book of love and joy.

स्मृति एक मर्मस्पर्शी पीडा़ थी, प्रत्येक दिवस उसे लगता
जैसे निर्दयतासे नोच कर एक और स्वर्ण पृष्ठ फाड़ दिया हो
उसके प्रेम और सुख की अतिक्षीण पुस्तिका से।

Thus swaying in strong gusts of happiness,
And swimming in foreboding’s sombre waves,
And feeding sorrow and terror with her heart,—
For now they sat among her bosom’s guests
Or in her inner chamber paced apart,—
Her eyes stared blind into the future’s night.

इस तरह वह प्रसन्न सौभाग्य के शक्तिशाली झोंकों में झूलती
और भावी दुर्भाग्य की काली उदास लहरों में तैरती
इस दुःख एवं आतंक को निज हृदय में पोस रही थी,-
क्योंकि अब वे उसके अन्तर में अतिथियों सम वहांविराजते
या पृथक्-भाव से उसके हृदय-कक्ष में चहलकदमी करते,-
अपने भविष्य की काली रात्रि को घूरते उसके नेत्र अन्धे हो जाते।

Out of her separate self she looked and saw,
Moving amid the unconscious faces loved,
In mind a stranger though in heart so near,
The ignorant smiling world go happily by
Upon its way towards an unknown doom
And wondered at the careless lives of men.

तब अपनी आत्म-सत्ता में पृथक् हो द्रष्टाभाव से उसने बाहर झांका और देखा,
उन प्रिय अचेत मुखों के मध्य विचरण करता एक मुख,
जो मन के लिए अपरिचित था पर हृदय के अति समीप,
यह अज्ञानी मुस्कुराते जगत् का था जो सुख से अपने अज्ञात
विनाश के मार्ग पर चढ़ता जा रहा था
और तब उसे मानव के निश्चिन्त असावधान जीवन पर आश्चर्य हुआ।

As if in different worlds they walked, though close,[469]
They confident of the returning sun,
They wrapped in little hourly hopes and tasks,—
She in her dreadful knowledge was alone.

मानों अन्य लोकों में ये विचरण कर रहे थे, जब कि मौत के अति समीप थे,
वे आगामी प्रभात के आने के विषय में आश्वस्त,
क्षणिक छोटी-छोटी आशाओं और कर्मों में लिप्त रहते,-
केवल वही अपने भीषण भावी ज्ञान में नितान्त अकेली थी।

The rich and happy secrecy that once
Enshrined her as if in a silver bower
Apart in a bright nest of thoughts and dreams
Made room for tragic hours of solitude
And lonely grief that none could share or know,
A body seeing the end too soon of joy
And the fragile happiness of its mortal love.

वह वैभवशाली और मोदभरी गुप्त रहस्यमयी निर्जनता
जिसने कभी उसे मानों एक चांदी के कुञ्ज तले बैठाया था
पृथकता से विचारों और सपनों के एक चमकते नीड़ सम आश्रय दिया था,
अब उसी ने एकान्त की दुःखी घड़ियों हित स्थान बना दिया
उसकी एकाकी वेदना हित जिसका कोई भागीदार या ज्ञाता नहीं था,
एक शरीर निज सुख का अन्त अति शीघ्रता से आते देख रहा था
और अपने मर्त्य प्रेमानन्द की क्षणिकता को लक्ष्य कर रहा था।

Her quiet visage still and sweet and calm,
Her graceful daily acts were now a mask;
In vain she looked upon her depths to find
A ground of stillness and the spirit’s peace.

सावित्री का शान्त-मुखमण्डल स्थिर और मधुर एवं शान्त था,
अब उसके शालीनतापूर्ण दैनिक कार्य एक आवरणमात्र थे:
निज गहनताओं के अन्तर में डूबकर एक स्थिर धरातल की
और आत्मशान्ति हित उसकी खोज निष्फल रही।

Still veiled from her was the silent Being within
Who sees life’s drama pass with unmoved eyes,
Supports the sorrow of the mind and heart
And bears in human breasts the world and fate.

अभी तक मौन परम-सत्ता अन्तर में उससे छिपी थी
जो जीवन के नाटक को अविचल नेत्रों से गुजरते देखती है,
जो मन और प्राणिक वेदना में सहारा बनती है
और मानव के अन्तर में छिपी इस जगत् और नियति को वहन करती है।

A glimpse or flashes came, the Presence was hid.

एक झलक या चमक कभी दिखा जाती, परम-सत्ता छिपी रहती।

Only her violent heart and passionate will
Were pushed in front to meet the immutable doom;
Defenceless, nude, bound to her human lot
They had no means to act, no way to save.

केवल उसके प्रबल हृदय और आवेशपूर्ण इच्छाशक्ति को
उस अटल सर्वनाश का सामना करने आगे धकेल दिया गया था;
पर वे सुरक्षाहीन, नग्न, उसकी मानवीयता से बंधे
उनके पास कार्य हेतु साधन नहीं था, रक्षा का कोई उपाय नहीं था।

These she controlled, nothing was shown outside:
She was still to them the child they knew and loved;
The sorrowing woman they saw not within;
No change was in her beautiful motions seen:
A worshipped empress all once vied to serve,
She made herself the diligent serf of all,
Nor spared the labour of broom and jar and well,
Or close gentle tending or to heap the fire
Of altar and kitchen, no slight task allowed
To others that her woman’s strength might do.

उन पर भी उसका संयम था, बहिर्जगत् को कुछ भी दिखाया नही जाता:
उनके लिए वह अभी भी प्रिय परिचित बालिका थी जिसे वे जानते थे;
अन्तर की उस शोक संतप्त नारी को वे देख नहीं पाते थे।
उसके रम्य गतिसंचालनों में कहीं कोई परिवर्तन दिखायी नहीं देता था:
वह सबकी पूजित एक साम्राज्ञी जिसकी सेवा हित सब स्पर्धा करते,
उसने भी स्वयं को सबके लिए क्रीतदासी बना लिया था,
झाड़ू, बर्तन और जल लाने का कोई भी कार्य उसने बाकी नहीं छोड़ा था,
या घनिष्ठ कोमल परिचर्या या रसोई और यज्ञवेदी की अग्नि सहेजना,
छोटे-से-छोटे कार्य का जिसे वह कर सकती थी,
किसी अन्य को करने नहीं देती थी।

In all her acts a strange divinity shone:
Into a simplest movement she could bring
A oneness with earth’s glowing robe of light,
A lifting up of common acts by love.[470]

उसके प्रत्येक कार्य में एक अनूठी दिव्यता की चमक होती:
एक अत्यन्त साधारण चेष्टा में भी वह ले आती
पृथ्वी के ज्योति-मण्डलाकार की द्युति के साथ एकात्मता को,
प्रेम द्वारा वह सामान्य कार्यों को उन्नत कर महत्ता प्रदान करती।

All-love was hers and its one heavenly cord
Bound all to all with her as golden tie.

सकल सृष्टि का प्रेम उसका था और इसकी एक दिव्य डोर ने
सबको सबके साथ जोड़ उसे एक स्वर्ण ग्रन्थि सम बांध दिया था।

But when her grief to the surface pressed too close,
These things, once gracious adjuncts of her joy,
Seemed meaningless to her, a gleaming shell,
Or were a round mechanical and void,
Her body’s actions shared not by her will.

किन्तु जब उसका दुःख सतह पर अति समीप आ दबाव डालता,
ये सब पदार्थ, जो कभी उसके सुख के अनुग्रही सहायक थे,
उसे एक अर्थहीन, एक भड़कीली खोल सम लगते,
या एक यान्त्रिक और रीते दैनिक गतिचक्र बन रह जाते,
तब उसकी इच्छा-शक्ति उसके शारीरिक कर्मों का साथ न देती।

Always behind this strange divided life
Her spirit like a sea of living fire
Possessed her lover and to his body clung,
One locked embrace to guard its threatened mate.

सदा ही इस विचित्र विभाजित जीवन के पीछे छिपी
उसकी आत्मा एक जीवन्त-अग्नि के सागर समान गम्भीर बनी
अपने प्रियतम को अधिकृत करती और उसकी देह से चिपकी रहती,
आलिंगन में जकड़ अपने सहचर के संकट को टालने में लगी रहती।

All night she woke through the slow silent hours
Brooding on the treasure of his bosom and face,
Hung o’er the sleep-bound beauty of his brow
Or laid her burning cheek upon his feet.

रात्रि में वह उन शिथिल नीरव घण्टों के मध्य जागती
अपने प्रिय के वक्ष और मुखकान्ति की निधि का चिन्तन करती,
उसके निद्रा में डूबे भाल की मोहिनी में खो जाती
या फिर अपने तप्त कपोल को उसके चरणों पर धर देती।

Waking at morn her lips endlessly clung to his,
Unwilling ever to separate again
Or lose that honeyed drain of lingering joy,
Unwilling to loose his body from her breast,
The warm inadequate signs that love must use.

प्रभात में जागने पर उसके अधर प्रिय अधरों से चिपके,
फिर से अलग होने की इच्छा नहीं रखते थे
या उस मधुरस पान के सुख से वंचित नहीं होना चाहते थे,
अपने वक्ष से प्रियतम की देह को वह पृथक् करने को अनिच्छुक थी,
प्रेम-सुख हित ये सब तप्त कामचिह्न उसके लिए अपर्याप्त थे।

Intolerant of the poverty of Time
Her passion catching at the fugitive hours
Willed the expense of centuries in one day
Of prodigal love and the surf of ecstasy;
Or else she strove even in mortal time
To build a little room for timelessness
By the deep union of two human lives,
Her soul secluded shut into his soul.

समयाभाव की दैन्यता पर अति असन्तुष्ट हो
उनका प्रेमावेश उन दौड़ती घड़ियों को धर लेने को आतुर हो
सदियों के विस्तार को एक दिन के प्रेमाधिक्य में
और आनन्दोन्माद के ज्वार में समा लेने की इच्छा रखता था;
अन्यथा वह इस मर्त्य काल में भी प्रयासरत
कालातीत हित एक नन्हा-सा कक्ष रचने के श्रम में लगी थी,
दो मानवीय प्राणी को परम गहन एकत्व में जोड़ कर,
अपनी आत्मा को उसकी अन्तरात्मा में सदा के लिए बन्दी बना कर।

After all was given she demanded still;
Even by his strong embrace unsatisfied,
She longed to cry, “O tender Satyavan,
O lover of my soul, give more, give more
Of love while yet thou canst, to her thou lov’st.

उससे सब पा जाने पर भी और अधिक की मांग करती;
उसके प्रगाढ़ आलिंगन में बंधकर भी वह असन्तुष्ट रहती,
‘‘हे सौम्य सत्यवान्’’, वह पुकार कर कहना चाहती,
‘‘ओ मेरे प्राणों के प्रियतम, मुझे प्यार दो, और दो, रुको नहीं,
जब तक अपनी प्रिया को दे सकते हो, अविराम देते जाओ।

Imprint thyself for every nerve to keep
That thrills to thee the message of my heart.

देह यन्त्रिका में संजो रखने को प्रत्येक नाड़ी पर, अपनी छाप छोड़ दो
जो मेरे हृदय के सन्देश तुम तक पहुंचा तुम्हें पुलकित करती है।

For soon we part and who shall know how long
Before the great wheel in its monstrous round[471]
Restore us to each other and our love?”

क्योंकि शीघ्र ही हम बिछुड़ेंगे और कौन जाने कितना समय बीतने पर
यह विशाल कालचक्र अपना भीषण घेरा पूरा कर
हमें एक दूजे से मिलायेगा और हमारा प्यार लौटायेगा?’’

Too well she loved to speak a fateful word
And lay her burden on his happy head;
She pressed the outsurging grief back into her breast
To dwell within silent, unhelped, alone.

पर उसके लिए सावित्री का प्रेम इतना अधिक था कि वह उस
घातक वाणी का उच्चारण कर उसके प्रसन्न मस्तक पर निज भार न रख पाती;
वह अपने उमड़ते दुःख को दबा पुनः हृदय में धर लेती
और अन्तर में निःशब्द, असहाय, एकाकी रहती।

But Satyavan sometimes half understood,
Or felt at least with the uncertain answer
Of our thought-blinded hearts the unuttered need,
The unplumbed abyss of her deep passionate want.

किन्तु कभी-कभी सत्यवान् उसकी व्यथा आधी अधूरी-सी समझ जाता,
या कम-से-कम चिन्ताग्रस्त अन्धे हृदय की अनकही आवश्यकता को
अनुभव करता जो हमारे चिन्तित हृदयों के अस्थिर उत्तर से जानी जा सकती है,
उसकी अथाह गर्त की गहन भावावेशी कामना को समझ जाता।

All of his speeding days that he could spare
From labour in the forest hewing wood
And hunting food in the wild sylvan glades
And service to his father’s sightless life
He gave to her and helped to increase the hours
By the nearness of his presence and his clasp,
And lavish softness of heart-seeking words
And the close beating felt of heart on heart.

अतः वन की लकड़ी काटने के श्रम में व्यस्त दिवस से
और भोजन हित जंगली वन्यपशुओं के शिकार से
और अपने अन्धे पिता की दृष्टिहीन जीवन परिचर्या से
वह इन भागते दिवसों से जो भी अवकाश पाता
उस समय को सावित्री को दे उसकी घड़ियों को वर्धित करने में
और अपनी उपस्थिति और आलिंगन द्वारा बढ़ाने में सहायता करता,
और हृदय के अनुरागी शब्दों की उदार मधुरता से
औ’ हृदय पर हृदय रख निज निकटतम धड़कनों को अनुभूति से सहारा देता।

All was too little for her bottomless need.
If in his presence she forgot awhile,
Grief filled his absence with its aching touch,
She saw the desert of her coming days
Imaged in every solitary hour.

किन्तु यह सब उसकी अतल आवश्यकता हित अति अल्प होता,
यदि उसकी निकटता में वह सब कुछ देर भूली रहती
तो उसकी अनुपस्थिति में घोर पीड़ा अपने शूल डंक चुभोती;
उसे अपने आगामी दिवसों की मरुभूमि की छवि
प्रत्येक एकाकी घण्टे में प्रतिबिम्बित दिखायी देती।

Although with a vain imaginary bliss
Of fiery union through death’s door of escape
She dreamed of her body robed in funeral flame,
She knew she must not clutch that happiness
To die with him and follow, seizing his robe
Across our other countries, travellers glad
Into the sweet or terrible Beyond.

यद्यपि एक अर्थहीन कल्पित आनन्द का सहारा ले
वह मृत्यु के द्वार से पलायन कर अग्निल मिलन की सोचती
वह निज देह को चिता की ज्वाला में सज्जित होने का स्वप्न देखती,
उसे ज्ञात था कि यह सुख भी उसके लिए नहीं था,
कि मृत्यु का वरण कर उसका अनुसरण करना,
अथवा उसका हाथ पकड़ अन्य लोकों को पार कर
सुखदायी यात्राओं या घोर परलोकों में प्रवेश करे।

For those sad parents still would need her here
To help the empty remnant of their day.

क्योंकि उन दुःखी माता-पिता को यहां उसकी आवश्यकता होगी
उनके बचे दिवसों का रीतापन भरने में वह सहारा बनेगी।

Often it seemed to her the ages’ pain
Had pressed their quintessence into her single woe
Concentrating in her a tortured world.

कभी-कभी उसे लगता कि जैसे युगों की पीड़ा ने
अपनेसम्पूर्ण सारतत्त्व को उसकी एकाकी व्यथा में कूट कूट भर दिया है,
और उसके अन्तर में एक त्रासदायी जगत् संकेन्द्रित कर दिया है।

Thus in the silent chamber of her soul
Cloistering her love to live with secret grief
She dwelt like a dumb priest with hidden gods[472]
Unappeased by the wordless offering of her days,
Lifting to them her sorrow like frankincense,
Her life the altar, herself the sacrifice.

इस प्रकार अपनी अन्तरात्मा के नीरव कक्ष में
अपने प्रेम को गुप्त वेदना की छत्रछाया में संजोये
वह एक पुजारिन सम अपने प्रच्छन्न देवताओं के साथ रहती
जो उसके दिवसों के मूक समर्पण से असन्तुष्ट थे,
वह अपने शोक को आरती सम उनकीओर उठाती
और अपने प्राण की वेदी पर स्वयं अपनी आहुति चढ़ा देती।

Yet ever they grew into each other more
Until it seemed no power could rend apart,
Since even the body’s walls could not divide.

तथापि वे एक-दूसरे में और पूर्णता से विकसित होते गये
ऐसा लगता जैसे कोई शक्ति इनको पृथक् नहीं कर सकती थी,
उन्हें यह देह की दीवारें विभाजित नहीं कर पाती थीं।

For when he wandered in the forest, oft
Her conscious spirit walked with him and knew
His actions as if in herself he moved;
He, less aware, thrilled with her from afar.

क्योंकि जब वह वन में विचरण करता होता, सावित्री की
चित्शक्ति अधिकतर उसके साथ होती और पूर्ण ज्ञान रखती
उसकीसकल चेष्टाओं का, जैसे वह स्वयं उसके अन्तर में गतिशील हो;
वह उससे कम सचेत था, किन्तु दूर रहकर भी उसकी पुलकन से रोमांचित होता।

Always the stature of her passion grew;
Grief, fear became the food of mighty love.

सावित्री के प्रेमावेश का आकार सचेत हो बढ़ता गया,
उस शक्तिशाली प्रेम का दुःख या भय भोजन बन गया था।

Increased by its torment it filled the whole world,
It was all her life, became her whole earth and heaven.

और अपने आततायी से पोषित वर्धित हो इसने सकल संसार को भर दिया;
प्रेम उसका सम्पूर्ण जीवन था, अब यह उसकी सकल पृथ्वी और स्वर्गबन गया।

Although life-born, an infant of the hours,
Immortal it walked unslayable as the gods:
Her spirit stretched measureless in strength divine
An anvil for the blows of Fate and Time:
Or tired of sorrow’s passionate luxury,
Grief’s self became calm, dull-eyed, resolute
Awaiting some issue of its fiery struggle,
Some deed in which it might for ever cease,
Victorious over itself and death and tears.

यद्यपि उसका जन्म प्राण में होता है, समय के घण्टों में पलता एक शिशु है,
पर सावित्री में देवों समान अवध्य यह अमरपुत्र विचरण करता:
सावित्री की आत्मा चित्शक्ति में विस्तृत हो असीम बन गयी,
विधाता और काल के आघातों को सह सकने हित एक कसौटी बन गयी:
अथवा शोक के आदेशात्मक आधिक्य से क्लान्त हो,
दुःख की चेतना शान्त हो गयी, धूमिल नयन, जड़ स्थिरता में दृढ़ हो,
अपने किसी ज्वलनशील संघर्ष के विषय की प्रतीक्षा करने लगी,
किसी दस्तावेज की जिसके द्वारा सदा के लिए उसका अस्तित्व समाप्त हो जाये,
और यह अपने अहम् और मृत्यु और अश्रुओं पर विजय पा जाये।

The year now paused upon the brink of change.

यह वर्ष अब परिवर्तन के तट पर स्थिर खड़ा था।

No more the storms sailed with stupendous wings
And thunder strode in wrath across the world,
But still was heard a muttering in the sky
And rain dripped wearily through the mournful air
And grey slow-drifting clouds shut in the earth.

तूफान अब अपने घोर पंखों को फैलाये और नहीं उड़ता था
औ’ क्रोधभरा वज्रगर्जन नाद भी अब और सुनायी नहीं देता था,
पर अभी भी नभ में एक घड़घड़ाहट सुनायी दे जाती
और उस उदास परिवेश के मध्य वर्षा की बूंदें क्लान्त-सी टपक पड़तीं
और मटमैलेशिथिल बहते मेघों के समूह धरा को घेरे थे।

So her grief’s heavy sky shut in her heart.
A still self hid behind but gave no light:
No voice came down from the forgotten heights;
Only in the privacy of its brooding pain
Her human heart spoke to the body’s fate.[473]

इसी तरह दुःख के बोझिल गगन में उसका हृदय कैद था,
एक मूक आत्मपुरुष पीछे छिपा था किन्तु तनिक भी प्रकाश नहीं दे रहा था:
उन विस्मृत उच्चताओं से कोई भी देवगिरा नीचे नहीं उतरी;
केवल अपनी पीड़ा की चिन्तामग्न गोपनीयता में
सावित्री का मानव-हृदय अपनी देह की नियति से वार्तालाप करता।

END OF CANTO ONE