BOOK SEVEN. THE BOOK OF YOGA
Canto Seven. ((( No title given by the Author.)))
In the little hermitage in the forest’s heart,
In the sunlight and the moonlight and the dark
The daily human life went plodding on
Even as before with its small unchanging works
And its spare outward body of routine
And happy quiet of ascetic peace.
उस वनस्थली के अन्तर में उस छोटे-से तपोवन में,
धूप में और चांदनी में और अमा के अन्धकार में
दैनिक मानव जीवन पहले के जैसे लघु कार्यों में
बिना किसी परिवर्तन के मन्थर गति से घिसट रहा था
अपने बाहरी सीमित नित्यकर्म सरल गतिचक्र के साथ
नीरव तापसी शान्तिपूर्ण सुख के साथ प्रसन्न बीत रहा था।
The old beauty smiled of the terrestrial scene;
She too was her old gracious self to men.
उस पार्थिव दृश्य कीवही पुरानी छटा मुस्कुराती
सावित्री भी मनुष्यों के प्रति कृपालु व्यक्तित्व से भरी रहती।
The Ancient Mother clutched her child to her breast
Pressing her close in her environing arms,
As if earth ever the same could for ever keep
The living spirit and body in her clasp,
As if death were not there nor end nor change.
आद्या धरतीमाता ने अपनी बालिका निज छाती से जकड़ रखी थी,
अपने परिवेश की बांहों के घेरे में ले कसकर चिपका ली थी,
मानों पृथ्वी सदा ऐसे ही उसे निज आलिंगन में छिपा
उसकी जीवन्त आत्मा और देह सदैव सुरक्षित रख सकती हो,
जैसे वहां पर मृत्यु और अन्त और परिवर्तन का कोई स्थान न हो।
Accustomed only to read outward signs
None saw aught new in her, none divined her state;
They saw a person where was only God’s vast,
A still being or a mighty nothingness.
केवल बहिर्-संकेत पढ़ने के अभ्यस्त मानव ने
उसमें कोई नवीनता नहीं पायी, कोई उसकी स्थिति जान न पाया;
वे तो केवल एक व्यक्ति देखते, जहां पर मात्र भगवत्ता का विस्तार था,
एक स्थिर शान्त सत्ता थी या एक शक्तिशाली शून्य था।
To all she was the same perfect Savitri:
A greatness and a sweetness and a light
Poured out from her upon her little world.
उन सबके लिए वही परिचिता परिपूर्णा सावित्री थी:
एक महत्ता, एक माधुरी और एक ज्योति थी
जो उससे प्रस्फुटित हो अपने छोटे संसार पर बरसती।
Life showed to all the same familiar face,
Her acts followed the old unaltered round,
She spoke the words that she was wont to speak
And did the things that she had always done.
जीवन में वह सबको वही परिचित मुखड़ा दिखाती
उसके कार्यों में वही पुरानी अविकारी गति थी,
जिन वचनों को वह बोलती आयी थी वही वाणी अभी भी बोलती
और उन्हीं वस्तुओं को करती जिन्हें वह सदैव करती आयी थी।
Her eyes looked out on earth’s unchanging face,
Around her soul’s muteness all moved as of old,
A vacant consciousness watched from within,
Empty of all but bare Reality.
उसके नयन धरा के अपरिवर्तित रूप को अपने अन्तर से अवलोकते,
उसकी आत्मा की मूकता के चहुंदिश सब पहले समान गतिशील था;
एक शून्य चेतना अन्तर से द्रष्टा बनी सब देखती,
जो सबसे रिक्त होकर भी केवल विशुद्ध परम सत्ता थी।
There was no will behind the word and act,
No thought formed in her brain to guide the speech:
An impersonal emptiness walked and spoke in her,
Something perhaps unfelt, unseen, unknown [551]
Guarded the body for its future work,
Or Nature moved in her old stream of force.
उसके शब्द और कर्म के पीछे कोई संकल्पशक्ति नहीं थी,
उसके वचनों को पथ दर्शाता कोई विचार उसकी बुद्धि में आकार नहीं लेता था:
एक व्यक्तित्वहीन शून्यता उसमें चलती और बोलती थी,
कुछ तत्त्व था जो अनुभवसे परे, अदृश्य, अज्ञात होकर भी
उसकी देह को अपने भावी कार्य हित सुरक्षित रखे था,
या प्रकृतिदेवी अपनी ऊर्जा के सनातन प्रवाह में उसमें गतिशील थी।
Perhaps she bore made conscious in her breast
The miraculous Nihil, origin of our souls
And source and sum of the vast world’s events,
The womb and grave of thought, a cipher of God,
A zero circle of being’s totality.
संभव है सावित्री निज वक्ष में जिस अद्भुत निहिल को धारण किये थी,
जो हमारी आत्माओं का आदि और उद़्गम है,
और इस विशाल संसार की घटनाओं का कारण और योगफल है,
संकल्प-विकल्प का जन्मदाता और समाधि है, प्रभु का एक बीजांक है,
सत्ता की सम्पूर्णता का एक शून्य घेरा है।
It used her speech and acted in her acts,
It was beauty in her limbs, life in her breath;
The original Mystery wore her human face.
यह उसकी वाणी का उपयोग करता और उसके कर्मों में संचालित होता,
उसके अंगों की यह शोभा, उसके श्वास में यह प्राण था;
आद्य माया देवी ने सावित्री में अपना मानवीय रूप धर लिया था।
Thus was she lost within to separate self;
Her mortal ego perished in God’s night.
इस प्रकार वह निज अन्तर में पृथक् आत्मतत्त्व में निमग्न थी;
उसका मानवीय अहम् परमेश्वर की रात्रि में विलीन हो गया था।
Only a body was left, the ego’s shell
Afloat mid drift and foam of the world-sea,
A sea of dream watched by a motionless sense
In a figure of unreal reality.
उस अहंता का यह खोल केवल एक शरीर बचा था,
संसार-सागर के फेन और अपसरण के मध्य यह बह रहा था,
जो एक स्थिर बोध द्वारा देखा जाता एक स्वप्न का सागर था,
यह आकार अयथार्थ वास्तविकता में स्थित था।
An impersonal foresight could already see,—
In the unthinking knowledge of the spirit
Even now it seemed nigh done, inevitable,—
The individual die, the cosmos pass;
These gone, the transcendental grew a myth,
The Holy Ghost without the Father and Son,
Or, a substratum of what once had been,
Being that never willed to bear a world
Restored to its original loneliness,
Impassive, sole, silent, intangible.
इसे एक नि:संग व्यक्तित्वहीन भविष्य दृष्टि पहले ही देख चुकी थी,
कि यह आत्मा के विचारातीत आत्मबोध में भी स्थित था,
अब यहां भी यह सम्पादित जैसा दिख रहा था, अनिवार्य जैसा,-
कि व्यक्ति मरण को प्राप्त होता है, उसकी यह सृष्टि भी मिट जाती है;
इनके जाते ही, परात्परता एक पौराणिक गाथा बन जाती है,
विशुद्ध तत्त्व पवित्रात्मा बिना परम पिता और ईशपुत्र का है,
या, कभी जो अस्तित्व में था उसका एक मूलाधार है,
नि:संग परम सत्ता है जिसने कभी भी एक सृष्टि का भारवहन करने की इच्छा नहीं की
यह अपने आदिमूल एकाकी तत्त्व में पुनः प्रतिष्ठित हो जाती है,
जो उदासीन, एकाकी, मूक और स्पर्शातीत निर्गुण है।
Yet all was not extinct in this deep loss;
The being travelled not towards nothingness.
पर अभी तक इस गहन क्षति में सब विलीन नहीं हुआ था;
उसकी चैत्य सत्ता ने शून्य अभाव की ओर अभी प्रस्थान नहीं किया था।
There was some high surpassing Secrecy,
And when she sat alone with Satyavan,
Her moveless mind with his that searched and strove,
In the hush of the profound and intimate night
She turned to the face of a veiled voiceless Truth
Hid in the dumb recesses of the heart
Or waiting beyond the last peak climbed by Thought,—
Unseen itself it sees the struggling world[552]
And prompts our quest, but cares not to be found,—
Out of that distant Vast came a reply.
वहां एक अन्य महत्तर श्रेष्ठतर सत्य-गुह्यता उपस्थित थी,
और जब वह सत्यवान् के संग एकाकी बैठी थी,
उसका अचल मन उसके साथ खोज और प्रयास में जुटा था,
उस गहन और प्रणयी रात्रि के मौन में यह घूम गयी
इस एक आवृत निःशब्द परम-सत्य के मुख कीओर,
जो मानव हृदय के मूक कोटरों में गोपित रह
सत्य विचार द्वारा अन्तिम शिखर पार कर लेने की प्रतीक्षा में रहता है,-
यह स्वयं अपने से अदृश्य रह इस संघर्षरत संसार को देखता है
और हमारी खोज को प्रेरित करता है, किन्तु खोजे जाने की चिंता नहीं करता है,-
उसी सुदूर विराट् से एक उत्तर आया।
Something unknown, unreached, inscrutable
Sent down the messages of its bodiless Light,
Cast lightning flashes of a thought not ours,
Crossing the immobile silence of her mind:
In its might of irresponsible sovereignty
It seized on speech to give those flamings shape,
Made beat the heart of wisdom in a word
And spoke immortal things through mortal lips.
किसी अज्ञात, अगम्य, निगुह्यता ने
अपनी निराकारी दिव्य ज्योति के सन्देशों को नीचे पठाया,
हमारी पार्थिवता से परे के एक संकल्प कीविद्युती कौंधनों का प्रक्षेपण किया,
यह उसके अचल नीरव मानस में उत्तर आया:
इसने अपनी स्वेच्छाचारी प्रभुसत्ता की सामर्थ्य में
उन ज्योति सन्देशों को रूपायित करने हित उसकी वाणी पर अधिकार कर लिया।
प्रज्ञा ने हृदय को एक शब्द में स्पन्दित कर दिया
और मर्त्य अधरों के माध्यम से अमर-पदार्थों को उच्चारित किया।
Or, listening to the sages of the woods,
In question and in answer broke from her
High strange revealings impossible to men,
Something or someone secret and remote
Took hold of her body for his mystic use,
Her mouth was seized to channel ineffable truths,
Knowledge unthinkable found an utterance.
अथवा उस तपोवन के ऋषियों के साथ सत्संग में,
प्रश्नोत्तर के समय सावित्री के मुख से जो वचन उद़्घोषित होते
महान् चमत्कारी आत्मदर्शन करा देते, मनुष्यों के लिए जो सम्भव नहीं थे,
किसी सत्ता या व्यक्तित्व ने जो गुह्य और परात्पर से प्रकटा था,
उसके शरीरको अपने रहस्यमय कार्य की पूर्ति हित अधिकृत कर लिया,
उसके मुख का अनिर्वचनीय सत्यों के उद़्घाटन हेतु साधन बना लिया,
चिन्तन से परे की प्रज्ञा को अब एक उच्चारण मिल गया।
Astonished by a new enlightenment,
Invaded by a streak of the Absolute,
They marvelled at her, for she seemed to know
What they had only glimpsed at times afar.
उसके इस नव-ज्ञान-प्रकाश पर आश्चर्यचकित,
परात्पर-प्रभु की एक पावनधारा द्वारा मानों परिप्लावित,
मुनिजन उस पर चकित थे, क्योंकि वह तो उस समस्त की ज्ञाता लगती
जिस ज्ञान की झलकियां उन्हें दूर से यदाकदा ही मिल पाती थीं।
These thoughts were formed not in her listening brain,
Her vacant heart was like a stringless harp;
Impassive the body claimed not its own voice,
But let the luminous greatness through it pass.
ये सत्-विचार सावित्री की श्रोता बुद्धि में आकार नहीं लेते थे,
उसका रीता हृदय तो एक बिना तारों की वीणा थी;
उदासीन देह तो निज वाणी पर भी अधिकार नहीं दिखाती थी,
किन्तु उस प्रकाशमयी महत्ता को अपने अन्दर से गुजरने देती।
A dual Power at being’s occult poles
Still acted, nameless and invisible:
Her divine emptiness was their instrument.
सत्ता के गुह्य ध्रुवों पर एक द्विविधा महाशक्ति
अभी भी अनामी और अगोचर रह कार्य करतीः
सावित्री की दिव्य शून्यता उसका उपकरण थी।
Inconscient Nature dealt with the world it had made,
And using still the body’s instruments
Slipped through the conscious void she had become;
The superconscient Mystery through that Void
Missioned its word to touch the thoughts of men.
अपरा प्रकृति की अचित्-शक्ति अपने द्वारा रचित इस जग-व्यापार में व्यस्त रहती,
और अभी तक इस देह के अवयवों का उपयोग करती
इस सचेत रिक्तता से वह जो बन गयी थी, अब फिसल बाहर निकल आयी;
गुह्य परात्पर चित्शक्ति ने इस महाशून्य के माध्यम से
मनुष्य के विचारों को स्पर्श करने हेतु अपना शब्द प्रेषित कर पठाया।
As yet this great impersonal speech was rare.
तथापि यह महती निर्वैयक्तिक वाचा विरली थी।
But now the unmoving wide spiritual space
In which her mind survived tranquil and bare,[553]
Admitted a traveller from the cosmic breadths:
A thought came through draped as an outer voice.
किन्तु अब उस अचल विस्तृत आध्यात्मिक आकाश में
जिसमें उसका मन शान्त और कोरा शून्य सुरक्षित था,
ब्रह्माण्डीय विस्तारों से एक यात्री ने प्रवेश किया:
एक विचार एक बहिर्वाचा का रूप धर अन्दर आ गया।
It called not for the witness of the mind,
It spoke not to the hushed receiving heart;
It came direct to the pure perception’s seat,
An only centre now of consciousness,
If centre could be where all seemed only space;
No more shut in by body’s walls and gates,
Her being a circle without circumference,
Already now surpassed all cosmic bounds
And more and more spread into infinity.
इसने मन को साक्षी बनने को आमन्त्रित नहीं किया,
यह मौन ग्रहणशील हृदय से भी नहीं बोला;
यह सीधा विशुद्ध प्रत्यक्ष-बोध के आसन पर पहुंच गया,
चेतना का अब केवल यहीं केन्द्र शेष बचा था,
यदि इसे केन्द्र कह सकते अन्यथा वहां केवल सब आकाश ही लगता;
उसकी सत्ता अब देह की दीवारों और द्वारों में बन्द नहीं थी,
यह तो परिधि-हीन एक अनन्त घेरा थी
अब तक यह समस्त वैश्विक सीमाओं को पार कर चुकी थी
और अनन्तता में उत्तरोत्तर अधिक फैलती जाती थी।
This being was its own unbounded world,
A world without form or feature or circumstance,
It had no ground, no wall, no roof of thought,
Yet saw itself and looked on all around
In a silence motionless and illimitable.
यह सत्ता अपना मुक्त आत्मतत्त्व संसार थी,
बिना आकार या रूप या घटना का एक जगत् थी,
इसकी कोई भूमि, कोई सीमा, विचार की कोई छत नहीं थी,
फिर भी स्वयं को देखती और चहुं ओर अवलोकती
एक गतिहीन नीरव स्थिरता में औ’ असीम, अपरिमेय थी।
There was no person there, no centred mind,
No seat of feeling on which beat events
Or objects wrought and shaped reaction’s stress.
वहां कोई व्यक्तित्व नहीं था, केन्द्रित मन का भी अभाव था
भावनाओं का कोई स्थान नहीं था जिन पर घटनाओं का आघात होता
या विषयों का गठन होता और प्रतिक्रिया का तनाव आकार लेता।
There was no motion in this inner world,
All was a still and even infinity.
इस अन्तर्जगत् में कोई हलचल नहीं थी,
सब एक स्थिरता और एक अनन्तता थी।
In her the Unseen, the Unknown waited his hour.
सावित्री के अन्तर में अगोचर प्रभु, परम अज्ञेय अपनी घड़ी की प्रतीक्षा में था।
But now she sat by sleeping Satyavan
Awake within, and the enormous Night
Surrounded her with the Unknowable’s vast.
किन्तु इस समय वह सोये सत्यवान् के समीप बैठी
अन्तर में जाग्रत् थी और घोर कालरात्रि उसे चारोंओर से
उस परम-ज्ञानातीत शून्य विस्तार के साथ घेरे थी।
A voice began to speak from her own heart
That was not hers, yet mastered thought and sense.
तभी उसके अपने हृदय से एक वाणी गुंजित हो उठी
यह उसकी अपनी नहीं थी फिर भी उसके विचार औ’ अनुभूति की स्वामिनी थी।
As it spoke all changed within her and without;
All was, all lived; she felt all being one;
The world of unreality ceased to be:
There was no more a universe built by mind,
Convicted as a structure or a sign;
A spirit, a being saw created things
And cast itself into unnumbered forms
And was what it saw and made; all now became[554]
An evidence of one stupendous truth,
A Truth in which negation had no place,
A being and a living consciousness,
A stark and absolute Reality.
ज्यों हीवह बोली सावित्री का अन्तर-बाहर सब बदल गया;
सब जीवित हो अस्तित्व में आ गया; उसने समष्टि के साथ एकात्म अनुभव किया
इस संसार की अयथार्थता का बोध मिट गया:
वहां अब उस सृष्टि का बोध नहीं रहा जिसे मन ने रचा था,
जिस पर एक ढांचा मात्र या एक संकेत होने का दोषारोपण था;
एक आत्मा, एक सत्ता ने सृष्ट पदार्थों कीओर देखा
और स्वयं को अनगिनत रूपों में ढाल दिया
और जो देखा और बनाया वह स्वयं सत्ता थी;
अब सकल सृष्टि एक विराट् सत्य का एक प्रत्यक्ष प्रमाण थी,
एक परम सत्य थी जिसमें निषेध हित कोई स्थान नहीं था,
एक सत्ता और एक जीवन्त चेतना थी,
एक साक्षात् नग्न सत्य और परिपूर्ण भागवत वास्तविकता थी।
There the unreal could not find a place,
The sense of unreality was slain:
There all was conscious, made of the Infinite,
All had a substance of Eternity.
जहां पर अयथार्थ के लिए कोई स्थान शेष नहीं था,
अवास्तविकका तो बोध ही मर गया था:
अब सकल सचेतनता थी, जो परम नित्य से निर्मित थी,
चिरन्तनता का एक सार-तत्त्व सबमें विद्यमान था।
Yet this was the same Indecipherable;
It seemed to cast from it universe like a dream
Vanishing for ever into an original Void.
तथापि यह वही गुह्य अविवेचनीय-परमतत्त्व था;
जो विश्व को एक स्वप्न सम अपने से निकालता लगता
और एक आदि शून्य ब्रह्म में सदा के लिए लोप हो रहा था।
But this was no more some vague ubiquitous point
Or a cipher of vastness in unreal Nought.
किन्तु अब यह कोई अस्पष्ट सर्वव्यापक बिन्दु नहीं रहा था
या अयथार्थ घोर निषेधतत्त्व में एक शून्य विस्तार नहीं था।
It was the same but now no more seemed far
To the living clasp of her recovered soul.
यह वही था किन्तु अब उसकी स्वस्थ पुनः उपलब्ध आत्मा के लिए
यह जाग्रत् जीवन्त आलिंगन हित अति दूर नहीं लगता था।
It was her self, it was the self of all,
It was the reality of existing things,
It was the consciousness of all that lived
And felt and saw; it was Timelessness and Time,
It was the Bliss of formlessness and form.
यह उसका अपना आत्मपुरुष, यही समष्टि का आत्मपुरुष था,
यही वर्तमान सृष्ट पदार्थों का मूल-यथार्थ था,
समस्त प्राणियों का यह अनुभवकर्ता और द्रष्टा-चेतन था;
यह अकाल तत्त्व और महाकाल था,
यह निराकार का और साकार का आत्मानन्द था।
It was all Love and the one Beloved’s arms,
It was sight and thought in one all-seeing Mind,
It was joy of being on the peaks of God.
यह अखिल विश्वप्रेम और अद्वितीय दिव्य प्रेमी की बांहें थीं,
यह सर्वद्रष्टा मानस में बसी चितवन और विचार था,
प्रभु-शिखरों पर पहुंची चैत्यात्मा का आह्लाद था।
She passed beyond Time into eternity,
Slipped out of space and became the Infinite;
Her being rose into unreachable heights
And found no end of its journey in the Self.
सावित्री काल की सीमा उलांघ शाश्वतता में पहुंच गयी,
दिशाओं से फिसल स्वयं चिरन्तनता बन गयी;
उसकी चैत्यात्मा अगम्य उच्चताओं तक उन्नत हो गयी
और परमात्मतत्त्व में इस अनन्त यात्रा का अन्त खोज न पायी।
It plunged into the unfathomable deeps
And found no end to the silent mystery
That held all world within one lonely breast,
Yet harboured all creation’s multitudes.
इसने अगाध अतल गहनताओं में डुबकी मारी
पर उस नीरव रहस्य का कोई अन्त न पा सकी
जिस गुह्यता ने सकल जगत् को अपने एकाकी वक्ष में धारण कर रखा था,
फिर भी सकल सृष्टि की बहुलता का पोषण करती थी।
She was all vastness and one measureless point,
She was a height beyond heights, a depth beyond depths,
She lived in the everlasting and was all
That harbours death and bears the wheeling hours.
वह समस्त विस्तार थी और एक अमेय बिन्दु थी,
वह उच्चताओं से परे एक ऊंचाई थी, गहराइयों से परे एक गहराई थी,
वह चिरन्तनता में बसती थी और समष्टि थी
जो मृत्यु को पोषती है और घड़ियों के गति-चक्र को वहन करती है।
All contraries were true in one huge spirit[555]
Surpassing measure, change and circumstance.
समस्त विरोधाभास एक विशाल आत्मसत्ता में सत्य हो उठे
वह माप, परिवर्तन और स्थिति का अतिक्रमण कर गयी।
An individual, one with cosmic self
In the heart of the Transcendent’s miracle
And the secret of World-personality
Was the creator and the lord of all.
एक व्यक्ति-सत्ता होकर भी,विश्वात्मा के साथ एक थी
परात्पर परमात्मा के आद़्भुत्य के हृदय में
और विश्व-व्यक्तित्व की गुह्यता में
वही विश्वकर्मा और सम्पूर्ण का स्वामी है।
Mind was a single innumerable look
Upon himself and all that he became,
Life was his drama and the Vast a stage,
The universe was his body, God its soul.
अनेकानेक रूप में व्यक्त सत्यमानस एक अकेला ही था
जो स्वयं अपना रूप धारण किये था और उन सब का भी जो वह बन गया था।
विश्व-जीवन उसी का नाटक था, और यह विराट् उसका रंगमंच,
यह विश्व उसकी काया, परमात्मा इसकी अन्तरात्मा थी।
All was one single immense reality,
All its innumerable phenomenon.
यह सकल एक अकेली अपरिमेय यथार्थता थी,
समस्त इसी की असंख्य अभिव्यक्तियां हैं।
Her spirit saw the world as living God;
It saw the One and knew that all was He.
सावित्री की आत्मा ने इस जगत् को जीवन्त ईश्वर सम देखा;
इसने परमैकम् को देखा और जान लिया कि सब उसी के रूप थे।
She knew him as the Absolute’s self-space,
One with her self and ground of all things here
In which the world wanders seeking for the Truth
Guarded behind its face of ignorance:
She followed him through the march of endless Time.
सावित्री ने इसको परम-तत्त्व के आत्मप्रसारण सम जाना,
यही कैवल्य उसके अन्तर में और यहां के सकल पदार्थों का मूलाधार है
जिसके अन्तर में स्थित यह संसार परम सत्य की खोज में भटकता है
अविद्या रूपी अपने मुख के पीछे छिपा स्वयं को सुरक्षित समझता है:
वह अपनी अनन्त युगान्तरीय यात्रा में उसी प्रभु के पीछे चली थी।
All Nature’s happenings were events in her,
The heart-beats of the cosmos were her own,
All beings thought and felt and moved in her;
She inhabited the vastness of the world,
Its distances were her nature’s boundaries,
Its closeness her own life’s intimacies.
सकल विश्व-प्रकृति में घटित घटनाएं भी उसके अपने अन्तर में घटित होतीं,
ब्रह्माण्ड के हृदय की धड़कनें उसकी अपनी ही थीं,
सकल प्राणी उसमें सोचते, अनुभव करते ओर उसी में गतिशील थे;
इस संसार के विस्तार में वह समायी,
इसकी दूरियां सब उसी की प्रकृति की सीमाएं,
इसकी समीपताएं उसके अपने जीवन की अभिन्नताएं थीं।
Her mind became familiar with its mind,
Its body was her body’s larger frame
In which she lived and knew herself in it
One, multitudinous in its multitudes.
सावित्री का चित्त अब विश्व-मानस से अंतरंग हो गया था,
इसका शरीर उसकी देह का बृहत्तर आकार था
वह इसके अन्तर में वास करती और स्वयं को इसमें परमैकम्सम जानती,
वह इसकी बहुलता में और बहुविध रूपों में अपने को पहचानती।
She was a single being, yet all things;
The world was her spirit’s wide circumference,
The thoughts of others were her intimates,
Their feelings close to her universal heart,
Their bodies her many bodies kin to her;
She was no more herself but all the world.
वह एक एकाकी सत्ता होकर भी, अखिल में समायी थी;
यह संसार उसकी आत्मा की ही विशाल परिधि थी,
अन्यों के विचार भी उसके अपने आत्मीय थे
उनकी भावनाएं उसके अपने विश्व-हृदय के समीप थीं,
उनके शरीर उसके अपने अनेक शरीरों जैसे परिचित थे;
अब वह मात्र एक व्यक्तिसत्ता नहीं रही बल्कि समष्टि थी।
Out of the infinitudes all came to her,
Into the infinitudes sentient she spread,[556]
Infinity was her own natural home.
अनन्तताओं से निकल अब सब उसके पास आते,
वह स्वयं अनन्तताओं से सचेत सबमें व्याप्त हो फैल गयी,
नित्यता ही उसका अपना स्वाभाविक धाम बन गयी।
Nowhere she dwelt, her spirit was everywhere,
The distant constellations wheeled round her;
Earth saw her born, all worlds were her colonies,
The greater worlds of life and mind were hers;
All Nature reproduced her in its lines,
Its movements were large copies of her own.
वह कहीं बसती नहीं थी, उसकी चैत्य शक्ति सर्वत्र थी,
सुदूर के तारामण्डल उसके चतुर्दिक परिक्रमा करते;
भूदेवी ने उसे जन्मते देखा, सकल लोक उसके उपनिवेश थे,
प्राण और मन के महत्तर संसार भी उसके थे;
सकल प्रकृति देवी ने अपनी रेखाओं में उसे ही पुनः रचा,
इसकी गतियां सावित्री के संचरण की ही विशाल अनुकृतियां थीं।
She was the single self of all these selves,
She was in them and they were all in her.
इन समस्त व्यक्ति-सत्ताओं की वह एकाकी आत्मा थी,
वह उनमें थी और वे सब उसमें थे।
This first was an immense identity
In which her own identity was lost:
What seemed herself was an image of the Whole.
यह पहले पहल एक बृहत् एकात्मता थी
जिसमें उसके निज व्यक्तित्व की पहचान खो गयी थी:
जो उसका निज रूप दिखता वह सर्वेश्वर का एक प्रतिबिम्ब था।
She was a subconscient life of tree and flower,
The outbreak of the honied buds of spring;
She burned in the passion and splendour of the rose,
She was the red heart of the passion-flower,
The dream-white of the lotus in its pool.
वह वृक्ष और सुमन का एक अवचेतन प्राण थी,
वसन्त की मधुमयी कलियों का एक प्रस्फुटन थी;
वह गुलाब के रंग और शोभा में प्रज्वलित थी,
अनुराग-पुष्प का वह रक्तवर्ण हृदय थी,
इसके सरोवर में खिलेश्वेत-स्वप्न का कमल थी।
Out of subconscient life she climbed to mind,
She was thought and the passion of the world’s heart,
She was the godhead hid in the heart of man,
She was the climbing of his soul to God.
अवचेतन जीवन से निकल वह मन कीओर उठ गयी,
इस संसार के हृदय का विचार और आवेश वह बन गयी,
मानव के अन्तर में गोपित वह चैत्य-सत्ता थी,
प्रभु कीओर आरोहण करती वह मानव की अन्तरात्मा थी।
The cosmos flowered in her, she was its bed.
उसके अन्तर में ब्रह्माण्ड पुष्पित होता, वही इसकी धरती थी।
She was Time and the dreams of God in Time;
She was Space and the wideness of his days.
वह त्रिकाल थी और त्रिकाल में देखा गया प्रभु का स्वप्न थी;
वह व्योमाकाश थी और उसके दिवसों का विस्तार थी।
From this she rose where Time and Space were not;
The superconscient was her native air,
Infinity was her movement’s natural space;
Eternity looked out from her on Time.[557]
तब जहां दिक्काल का अस्तित्व नहीं था वह उससे ऊपर उठ गयी;
यह पराचैतन्य अब उसका सहज परिवेश हो गया,
अनन्तता सावित्री की गतिशीलता की स्वाभाविक सहज दिशा थी;
चिरन्तनता उसके माध्यम से अब त्रिकाल को अवलोकती।
END OF CANTO SEVEN
END OF BOOK SEVEN