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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Ten. Canto Four (Eng-Hindi)

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BOOK TEN. THE BOOK OF THE DOUBLE TWILIGHT

Canto Four. The Dream Twilight of the Earthly Real

 

There came a slope that slowly downward sank;
It slipped towards a stumbling grey descent.

वहां एक ढलान आ गयी जो धीरे-धीरे नीचे उतर डूब गयी थी,
यह एक लड़खड़ाते धूसर अवतरण की ओर फिसलती गयी।

The dim-heart marvel of the ideal was lost;
Its crowding wonder of bright delicate dreams
And vague half-limned sublimities she had left:
Thought fell towards lower levels; hard and tense
It passioned for some crude reality.

आदर्श लोक का मन्द प्राण चमत्कार अब खो चुका था;
सावित्री उन चमकते सुकोमल सपनों की अद्भुत भीड़ को
और उन धूमिल अर्ध-अंकित रेखाओं की भव्यताओं को पीछे छोड़ आयी थी:
विचारधारा निम्न स्तरों की ओर पतित हो बह रही थी;
कठोर और क्षुब्ध यह किसी अपरिष्कृत यथार्थ हित तनाव से भरी थी।

The twilight floated still but changed its hues
And heavily swathed a less delightful dream;
It settled in tired masses on the air;
Its symbol colours tuned with duller reds
And almost seemed a lurid mist of day.

वह द्वाभा अभी भी तैर रही थी किन्तु इसकी आभा अब बदली हुई थी
और एक लघु सुख के सपने के बोझ से दबी हुई थी;
इस वातावरण पर थकित बोझिलता के ढेरों सम छायी थी;
इसके प्रतीक के रंग अब फीकी आभा लिये थे
और प्राय: उस दिवस की एक कराल धूसरता से रंगे लग रहे थे।

A straining taut and dire besieged her heart;
Heavy her sense grew with a dangerous load,
And sadder, greater sounds were in her ears,
And through stern breakings of the lambent glare
Her vision caught a hurry of driving plains
And cloudy mountains and wide tawny streams,
And cities climbed in minarets and towers
Towards an unavailing changeless sky:
Long quays and ghauts and harbours white with sails
Challenged her sight awhile and then were gone.

सावित्री के हृदय पर एक घोर तनाव का खिंचाव घेरा डाले था;
एक संकटकारी बोझ से उसका चित्त अति बोझिल था,
उसके कानों में नैराश्यपूर्ण, महत्तर ध्वनियां गूंज रही थीं,
और उस झिलमिलाती चौंध के कठोर अवकाशों के मध्य
सावित्री की दृष्टि ने गतिशील स्तरों को द्रुतगति से गुजरते देखा
मेघाच्छादित पर्वतों को और कपिलारंगी जलधाराओं को देखा,
आरोहण करती नगरों की मीनारों और दुर्ग कोटों को,
जो एक अपरिवर्तनीय नभ की ओर उद़्घाटित थे:
दीर्घ बन्दरगाह और घाट थे जो श्वेत पोतों की भीड़ में धवल लग रहे थे
वे उसकी दृष्टि को चुनौती देते हुए सामने आये और लोप हो गये।

Amidst them travailed toiling multitudes
In ever shifting perishable groups,
A foiled cinema of lit shadowy shapes
Enveloped in the grey mantle of a dream.

इस सबके मध्य श्रमरत घोर पीड़ा से व्यथित
सतत बदलते नश्वर समूह खिसकते जा रहे थे,
यह सब एक स्वप्न के धूमिल लबादे में लिपटा
एक प्रकाशित छाया-आकारों का पारदर्शी आवरण से ढका चलचित्र था।

Imagining meanings in life’s heavy drift,
They trusted in the uncertain environment
And waited for death to change their spirit’s scene.

इस जीवन-धारा के बोझिल बहाव में सार्थकता की कल्पना करने को
वे इस अनिश्चित अस्थिर परिवेश पर विश्वास करते
और अपने आत्म-दृश्य के परिवर्तन हित मृत्यु की प्रतीक्षा करते।

A savage din of labour and a tramp
Of armoured life and the monotonous hum[641]
Of thoughts and acts that ever were the same,
As if the dull reiterated drone
Of a great brute machine, beset her soul,—
A grey dissatisfied rumour like a ghost
Of the moaning of a loud unquiet sea.

कठिन श्रम और एक बोझिल प्रयाण का एक अमंगली कोलाहल था
जो इसके सुसज्जित जीवन और नीरस ध्वनि की गति से भरा था।
यह ध्वनि उनके अपरिवर्तित विचारों और दोहराये जाते कर्मों की थी,
जैसे कि एक विशाल पाशविक यन्त्र की
नीरस पुनरावर्तीय भुनभुनाहट ने उसकी आत्मा को घेर लिया हो,
जो एक धूसर असन्तोषी अफवाह के भूत सम उड़ रही थी
या एक अशान्त दहाड़ते सागर की उच्छ्वासी कराह थी।

A huge inhuman Cyclopean voice,
A Babel-builder’s song towering to heaven,
A throb of engines and the clang of tools
Brought the deep undertone of labour’s pain.

मानों एक बृहद् अमानवीय घोर राक्षसी वाणी हो,
उत्पाती निर्माताओं का स्वर्ग की ओर चढ़ता गान हो
इंजनों की घनघनाहट और यन्त्रों की खनखनाहट
कठोर श्रम पीड़ा की गहन अन्तर्धारा उभार लायी थी।

As when pale lightnings tear a tortured sky,
High overhead a cloud-rimmed series flared
Chasing like smoke from a red funnel driven,
The forced creations of an ignorant Mind:
Drifting she saw like pictured fragments flee
Phantoms of human thought and baffled hopes,
The shapes of Nature and the arts of man,
Philosophies and disciplines and laws,
And the dead spirit of old societies,
Constructions of the Titan and the worm.

जैसे एक पीतवर्णी विद्युती रेखा ने क्षुब्ध नभ को चीर डाला हो,
उन्नत आकाश में एक मेघ-मेखला की पंक्तियां दहक उठीं
एक धूम्र समान जिन्हें एक लाल चिमनी से खदेड़ निकाल दिया हो
ये एक अविद्या की मनःशक्ति द्वारा बाध्य रचनाएं थीं:
सावित्री ने उस जग में बहते हुए मानवीय विचार और
क्षुब्ध आशाओं के प्रेतों को चित्र के फटे हुए अंशों सम उड़ते देखा,
इनमें भौतिक प्रकृति के आकार और मानव के शिल्प थे,
नियम और विधान थे और दर्शनशास्त्र थे,
प्राचीन समाज की मृत आत्माएं थीं
असुरों और कीटों की संरचनाएं थीं।

As if lost remnants of forgotten light,
Before her mind there fled with trailing wings
Dimmed revelations and delivering words,
Emptied of their mission and their strength to save,
The messages of the evangelist gods,
Voices of prophets, scripts of vanishing creeds.

मानों एक विस्मृत प्रकाश के लोप हुए अवशेष थे,
उसके मानस के सम्मुख ये सब पंख घसीटते उड़ जाते,
इनमें धूमिल अस्पष्ट दिव्य दर्शन और मुक्तिदायी शब्द थे,
वे अपने लक्ष्य से शून्य और संरक्षण देने को बल से हीन थे,
प्रचारक देवों के ये सन्देशवाहक थे
पैगम्बरों की वाणियां, लुप्त सम्प्रदायों के लेख थे।

Each in its hour eternal claimed went by:
Ideals, systems, sciences, poems, crafts
Tireless there perished and again recurred,
Sought restlessly by some creative Power.
But all were dreams crossing an empty vast.

अपने काल में प्रत्येक का शाश्वतता का दावा था जो अब शेष हो गया थाः
आदर्शवाद, सिद्धान्त, विज्ञान, कविताएं और कलाएं थीं
जो अथक भाव से वहां नष्ट हो पुनः पुनः उत्पन्न हो जातीं;
किसी सर्जनशील महाशक्ति द्वारा चंचलता से बार-बार संधान कर ली जातीं;
सभी विस्तृत शून्य को पार करते हुए स्वप्न थे।

Ascetic voices called of lonely seers
On mountain summits or on river banks
Or from the desolate heart of forest glades
Seeking heaven’s rest or the spirit’s worldless peace,
Or in bodies motionless like statues, fixed
In tranced cessations of their sleepless thought[642]
Sat sleeping souls, and this too was a dream.

एकाकी सन्तों की तापसी वाचाएं पर्वतशिखरों से
या नदी के तटों से आवाहन करती टेरतीं
या वनस्थली की झाड़ी के एकाकी अन्तर से पुकारतीं
ये स्वर्ग के विश्राम या आत्मा की निःशब्द शान्ति को खोजतीं,
या मूर्ति सम देह में अचल खड़ी,
अपने निद्राहीन विचार की समाधि के विराम में स्थित
निद्रामग्न आत्माएं बैठी थीं, और यह भी एक स्वप्न था।

All things the past has made and slain were there,
Its lost forgotten forms that once had lived,
And all the present loves as new-revealed
And all the hopes the future brings had failed
Already, caught and spent in efforts vain,
Repeated fruitlessly age after age.

अतीत में रचित और मृत सकल पदार्थ वहां थे,
उनके विलुप्त विस्मृत आकार जो कभी जीवित थे वहां विद्यमान थे,
और समस्त वर्तमान के प्रिय पदार्थ नूतन सम अभिव्यक्त होते
और वे सकल भावी आशाएं जो पहले से ही निष्फल हो गयी थीं,
उनके हित किये गये व्यर्थ प्रयास भी थे जो चुक गये थे,
पर फिर भी युगों से वे निष्फलता से दोहराये जा रहे थे।

Unwearied all returned insisting still
Because of joy in the anguish of pursuit
And joy to labour and to win and lose
And joy to create and keep and joy to kill.

सब अभी भी आग्रहपूर्वक अथक भाव से बारम्बार लौटकर आते
उस पीछे लगे रहने की यातना के हर्ष के लिए
घोर श्रम में और जय पराजय में बसे सुख के लिए
सृजन के आनन्द हित और अधिकार के व संहार के सुख के लिए।

The rolling cycles passed and came again,
Brought the same toils and the same barren end,
Forms ever new and ever old, the long
Appalling revolutions of the world.

वे लुढ़कते युग बीत जाते और पुनः लौट आते।
उसी पुराने कठोर श्रम को लाते और उसी पुरातन बंजर अन्त को,
नये आकार सतत बनते और अविराम पुरातन हो जाते,
इस लोक के ये भीषण विस्मयकारी आवर्तन-चक्र थे।

 

Once more arose the great destroying Voice:
Across the fruitless labour of the worlds
His huge denial’s all-defeating might
Pursued the ignorant march of dolorous Time.

एक बार पुनः वह विनाशकारी घोर गिरा गूंज उठी:
विफल घोर श्रम के इन लोकों को पार करती आयी
यह यम के विशाल निषेध की सर्वजयी शक्तिरूपा वाणी थी
जो दुःखदायी त्रिकालीय अज्ञ प्रयाण के पीछे लगी थी।

“Behold the figures of this symbol realm,
Its solid outlines of creative dream
Inspiring the great concrete tasks of earth.

‘‘देख इन प्रतीक साम्राज्य की इन आकृतियों को,
सर्जनशील सपने की इसकी स्थूल ठोस बहिर् रेखाओं को
यही पृथ्वी के मूर्त स्थूल महान् कार्यों की प्रणेता हैं।

In its motion-parable of human life
Here thou canst trace the outcome Nature gives
To the sin of being and the error in things
And the desire that compels to live
And man’s incurable malady of hope.

मानव जीवन को इसके गतिशील रूपक में
यहां पर तू अपरा प्रकृति द्वारा प्रदत्त परिणामों से आंक सकती है।
सत्ता के पाप परिणाम को और पदार्थों में उत्पन्न दोष को
और उस कामना को भी जो जीवित रहने को बाध्य करती है
और मानव की उपचारहीन आशारूपी व्याधि को देख सकती है।

In an immutable order’s hierarchy
Where Nature changes not, man cannot change:
Ever he obeys her fixed mutation’s law;
In a new version of her oft-told tale
In ever-wheeling cycles turns the race.

व्यवस्था की परम्परागत इस एक अटलता में
जहां पर विश्व-प्रकृति अपरिवर्तित है, वहां पर मानव बदल नहीं सकता है;
वह सतत उसके निश्चित विकारी विधान का अनुपालन करता है;
प्रकृति की प्रायः दोहरायी गयी कथा के नवीन संस्करण में;
निज जाति के सतत क्रमशील युगचक्रों को वह अनुसरता है।

His mind is pent in circling boundaries:
For mind is man, beyond thought he cannot soar.

उसका मन इन परिक्रमा करती सीमाओं से बंधा शिथिल है,
क्योंकि मन ही मानव है, विचार के परे वह उड़ नहीं सकता है।

If he could leave his limits he would be safe:[643]
He sees but cannot mount to his greater heavens;
Even winged, he sinks back to his native soil.

यदि वह अपनी सीमाएं तज सकता तो वह सुरक्षित रहता:
वह देखता तो है किन्तु अपने महत्तर स्वर्गों को पा नहीं सकता है;
एवं उड़ान भरने पर भी वह निज जन्मभूमि की माटी में आ डूबता है।

He is a captive in his net of mind
And beats soul-wings against the walls of life.

वह तो निज मन के पाश का बंधक दास है
और जीवन की भित्तियों को आत्मा के पंखों से पीटता है।

In vain his heart lifts up its yearning prayer,
Peopling with brilliant Gods the formless Void;
Then disappointed to the Void he turns
And in its happy nothingness asks release,
The calm Nirvana of his dream of self:
The Word in silence ends, in Nought the name.

निष्फल हो उसका अन्तर अपनी लालायित प्रार्थना ऊर्ध्व में पठाता है,
और इस निराकारी असत् शून्याकाश को दीप्तिमान देवताओं से भर देता है;
पर फिर निराश हो वह पुन: शून्य-निर्वाण की ओर मुड़ जाता है,
और इसकी सुखी निर्गुणता में मुक्ति चाहता है
आत्म-मोक्ष के उसके स्वप्न का यही शान्त निर्वाण है:
तब शब्दब्रह्म नीरवता में और, निहिल में नाम-व्यक्तित्व शेष हो जाता है।

Apart amid the mortal multitudes,
He calls the Godhead incommunicable
To be the lover of his lonely soul
Or casts his spirit into its void embrace,
Or he finds his copy in the impartial All;
He imparts to the Immobile his own will,
Attributes to the Eternal wrath and love
And to the Ineffable lends a thousand names.

नश्वर प्राणियों की भीड़ के मध्य पृथक् हो,
वह अप्रकट असंचारी परमात्व-तत्त्व को पुकारता है
निज एकाकी आत्मा का प्रेमी सहचर बन जाने को
या फिर उसकी चित्शक्ति को अपने शून्य आलिंगन में भर लेने को।
या वह निज प्रतिकृति उस निष्पक्ष सर्वेश्वर में आरोपित करके;
उस अचलेश्वर को वह निज संकल्प प्रदान कर देता है,
अविनाशी सनातन में रौद्र और प्रेम रूप आरोपित कर
उस अनिर्वचनीय परमेश को सहस्त्रों नामों से विभूषित कर देता है।

Hope not to call God down into his life:
How shalt thou bring the Everlasting here?

परमात्मा को तू मानव के जीवन में उतार लाने की आशा न करना।
उस चिरन्तन प्रभु को तू यहां कैसे लायेगी?

There is no house for him in hurrying Time.

इस दौड़ते युगकाल में उसके लिए कोई भवन नहीं है।

Vainly thou seek’st in Matter’s world an aim;
No aim is there, only a will to be.

व्यर्थ ही इस जड़ भौतिक जग में एक उद्देश्य खोज रही है;
यहां कोई ध्येय नहीं है, केवल अस्तित्व एक संकल्प मात्र है।

All walk by Nature bound for ever the same.
Look on these forms that stay awhile and pass,
These lives that long and strive, then are no more,
These structures that have no abiding truth,
The saviour creeds that cannot save themselves,
But perish in the strangling hands of the years,
Discarded from man’s thought, proved false by Time,
Philosophies that strip all problems bare
But nothing ever have solved since earth began,
And sciences omnipotent in vain
By which men learn of what the suns are made,
Transform all forms to serve their outward needs,
Ride through the sky and sail beneath the sea,[644]
But learn not what they are or why they came;
These polities, architectures of man’s brain,
That, bricked with evil and good, wall in man’s spirit
And, fissured houses, palace at once and jail,
Rot while they reign and crumble before they crash;
These revolutions, demon or drunken god,
Convulsing the wounded body of mankind
Only to paint in new colours an old face;
These wars, carnage triumphant, ruin gone mad,
The work of centuries vanishing in an hour,
The blood of the vanquished and the victor’s crown
Which men to be born must pay for with their pain,
The hero’s face divine on satyr’s limbs,
The demon’s grandeur mixed with the demi-god’s,
The glory and the beasthood and the shame;
Why is it all, the labour and the din,
The transient joys, the timeless sea of tears,
The longing and the hoping and the cry,
The battle and the victory and the fall,
The aimless journey that can never pause,
The waking toil, the incoherent sleep?

सकल प्राणी निज आत्मप्रकृति से बाध्य सतत एक समान ही गतिशील हैं
इन आकृतियों को देख जो अल्पकाल जीवित रह गुजर जाती हैं,
वे केवल उतनी अवधि में प्रयासरत जीवित थीं, अब नहीं हैं,
इन संरचनाओं को देख जिनमें कोई स्थायी सत्य नहीं बसता है,
इन जगत्राता सम्प्रदायों को जो स्वयं की रक्षा नहीं कर सके,
वरन् काल के हाथों दमित होकर मार दिये गये,
मानव के विचार से परित्यक्त हो, काल द्वारा मिथ्या करार दिये गये;
दर्शनशास्त्र जिन्होंने सकल समस्याओं को उघाड़ नग्न कर डाला
किन्तु जब से पृथ्वी का आरम्भ हुआ कुछ भी समाधान न पाया,
और वह सर्वशक्तिशाली विज्ञान-ज्ञान सब व्यर्थ हुआ
जिससे मानव ने सूर्यों की संरचना का ज्ञान तो पाया,
और सकल आकारों को निज बहिरावश्यकता-पूर्ति की सेवा में लगा दिया,
आकाश में उड़ने लगा सागर-तल में विचरण करता,
किन्तु वह क्या है और उसके जीवन-उद्देश्य क्या हैं जान नहीं पाया है;
ये राजतन्त्र, मानव-मस्तिष्क के इन निर्माताओं ने
पाप और पुण्य की ईंटों से, मानव की आत्मा में दीवार चिन दी है,
और, इसके लिए ये फटे हुए घर, जो महल के साथ जेल भी थे,
जो उनके राज्यकाल में ही नष्ट होकर उनके सामने ही ढह जाते हैं;
ये कालचक्र, दानव हैं या मदहोश देवता हैं,
जो मानव जाति की आहत देह को आलोड़ित करते रहते हैं
केवल एक पुरातन चेहरे पर नया रंग लगा नवीन बना देते हैं;
ये युद्ध, विजयी हत्याकाण्ड, उन्मादी विनाश-लीलाएं,
जो शताब्दियों के कार्य एक घड़ी में मिटा देती हैं
पराजित के रक्त का मोल और विजयी के मुकुट की कीमत
आने वाली संतति को अपनी पीड़ा द्वारा चुकानी पड़ती है,
अरे, कामी पशु-देह पर एक धीरवीर चेहरा लगा है,
और आसुरी वैभव को, अर्ध देवत्व से जोड़ दिया है।
इसमें यश और पशुता और लज्जा का समावेश है;
यह सब क्यों है, यह घोर श्रम और यह कोलाहल,
ये क्षणिक सुखों का हर्ष, अश्रुओं का यह कालातीत सागर,
ये आकाक्षाएं और ये आशाएं और यह चीत्कार-पुकार,
यह संघर्ष और जय-पराजय का यह उत्थान-पतन,
यह लक्ष्यहीन यात्रा जिसका कभी भी कहीं विराम नहीं है,
जागने पर घोर श्रम, यह व्यग्र असंगत निद्रा?

Song, shouts and weeping, wisdom and idle words,
The laughter of men, the irony of the gods?

गान, चीखें और क्रन्दन, प्रज्ञा और निष्प्रयोजन वचन,
यह मनुष्यों का हास्य है, या देवों की विडम्बना है?

Where leads the march, whither the pilgrimage?

इस प्रयाण का नेता कौन है, इस तीर्थयात्रा का लक्ष्य कहां है?

Who keeps the map of the route or planned each stage?

प्रत्येक पड़ाव का आयोजन किसने किया या इस मार्ग का मानचित्र किसके पास है?

Or else self-moved the world walks its own way,
Or nothing is there but only a Mind that dreams:
The world is a myth that happened to come true,
A legend told to itself by conscious Mind,
Imaged and played on a feigned Matter’s ground
On which it stands in an unsubstantial Vast.

या यह आत्मसंचारित संसार स्वयं अपने पथ पर चल रहा है,
या एक सपनाती मनःशक्ति के सिवाय यहां और किसी का अस्तित्व नहीं है:
यह संसार एक कपोल गाथा है जो येन केन प्रकारेण घटित हो गयी है,
या सचेत मनःशक्ति द्वारा स्वयं को ही सुनायी एक पुराणगाथा है,
जिसे एक मिथ्या जड़तत्त्व की भूमि पर कल्पित लीला सम खेला जाता है
जो एक सारहीन असत् विराट् विस्तार में स्थित है।

Mind is the author, spectator, actor, stage:
Mind only is and what it thinks is seen.

मनःशक्ति इसकी लेखक, दर्शक, अभिनेता और रंगमंच है:
मनःशक्ति केवल जो सोचती और देखती है वही स्वयं है।

If Mind is all, renounce the hope of bliss;
If Mind is all, renounce the hope of Truth.

यदि मनःशक्ति ही यहां सर्वस्व है, तो आनन्द हर्ष की आशा त्याग दे,
यदि मनःशक्ति ही यहां सर्वस्व है तो परम सत्य की आशा त्याग दे।

For Mind can never touch the body of Truth[645]
And Mind can never see the soul of God;
Only his shadow it grasps nor hears his laugh
As it turns from him to the vain seeming of things.

क्योंकि मनःशक्ति परम सत्य की काया कदापि स्पर्श नहीं कर पायेगी
और मानसिक शक्ति कभी परमेश्वर की आत्मा का दर्शन नहीं कर सकेगी;
यह केवल उसकी छाया भर धर पाती है उसका हास्य नहीं सुन पाती है
क्योंकि यह प्रभु से मुंह मोड़ सारहीन मिथ्या पदार्थों की ओर घूम जाती है।

Mind is a tissue woven of light and shade
Where right and wrong have sewn their mingled parts;
Or Mind is Nature’s marriage of covenance
Between truth and falsehood, between joy and pain:
This struggling pair no court can separate.

यह मन धूप और छाया से बुना एक जाल है
जिसे उचित और अनुचित ने अपने अंशों का मिश्रण कर बुन दिया है;
यह मन सत्य और मिथ्या के मध्य या हर्ष एवं पीड़ा के मध्य
विश्व-प्रकृति द्वारा रचित औचित्यपूर्ण विवाह-बंधन है:
इस संघर्षरत युगल को कोई भी कचहरी विलग नहीं कर सकी है।

Each thought is a gold coin with bright alloy
And error and truth are its obverse and reverse:
This is the imperial mintage of the brain
And of this kind is all its currency.

प्रत्येक विचार एक स्वर्ण-मुद्रा है, जिसमें चमकता पीतल मिला है
और सत्य और मिथ्या इसके चित और पट भाग हैं:
इस मस्तिष्क की यही राजसी छाप है
और इसके समस्त सिक्कों पर इसी तरह का मुद्रण है।

Think not to plant on earth the living Truth
Or make of Matter’s world the home of God;
Truth comes not there but only the thought of Truth,
God is not there but only the name of God.

पृथ्वी पर जीवन्त परम सत्य को आरोपित करने का विचार न करना
या जड़तत्त्व के लोक को प्रभु का धाम बनाने की नहीं सोचना;
वहां पर परम सत्य का वास नहीं है केवल उसका विचार मात्र है।
वहां परमात्मा नहीं है केवल उसका नाम मात्र है।

If Self there is, it is bodiless and unborn;
It is no one and it is possessed by none,
On what shalt thou then build thy happy world?

यदि वहां परमात्मा है तो यह निराकारी और अजन्मा है;
यह कोई भी नहीं है और यह किसी से अधिकृत नहीं है।
तब तू अपने सुखी संसार का निर्माण किस आधार पर करेगी?

Cast off thy life and mind, then art thou Self,
An all-seeing Omnipresence stark, alone,
If God there is he cares not for the world;
All things he sees with calm indifferent gaze,
He has doomed all hearts to sorrow and desire,
He has bound all life with his implacable laws;
He answers not the ignorant voice of prayer.

अपने प्राण और मन का मोह त्याग दे, तब तू परमात्मा तत्त्व स्वयं है,
एक सर्वदर्शी सर्वज्ञता नग्न यथार्थता, एकाकी है।
यदि वहां पर परमेश्वर है तो वह संसार की चिन्ता नहीं करता है;
सकल पदार्थों को वह शान्त उदासीन दृष्टि से देखता है,
उसने समस्त हृदयों को कामना और वेदना से भर दिया है,
उसने सकल प्राण को अपने कठोर नियमों से बांध दिया है;
प्रार्थना की अबोध वाणी का वह उत्तर नहीं देता है।

Eternal while the ages toil beneath,
Unmoved, untouched by aught that he has made,
He sees as minute details mid the stars
The animal’s agony and the fate of man:
Immeasurably wise, he exceeds thy thought;
His solitary joy needs not thy love.

वह चिरन्तन है जब कि युगान्तर नीचे कठोर श्रम में रत है,
अचल, वह निज सृष्टि को किंचित् मात्र भी स्पर्श नहीं करता है,
इन तारों नक्षत्रों के मध्य वह पशु की पीड़ा को
और मानव के दुर्भाग्य को अति तुच्छ विवरण सम देखता है:
वह अपरिमेय प्रज्ञा है, वह तेरे चिन्तन से परे है;
उसके एकाकी आनन्द हित तेरा प्रेम अनिवार्य नहीं है।

His truth in human thinking cannot dwell:
If thou desirest Truth, then still thy mind
For ever, slain by the dumb unseen Light.

उसका सत्य मानवीय विचारधारा में निवास नहीं करता है:
यदि तुझे चरम सत्य की अभीप्सा है, तो अपने मन को स्थिर बना ले
सदा के लिए, इस अगोचर मूक पराज्योति से उसका वध कर दे।

Immortal bliss lives not in human air:[646]
How shall the mighty Mother her calm delight
Keep fragrant in this narrow fragile vase
Or lodge her sweet unbroken ecstasy
In hearts which earthly sorrow can assail
And bodies careless Death can slay at will?

अमर आनन्द इस मानवीय परिवेश में कदापि जीवित नहीं रहता है:
शक्तिशालिनी जगन्माता कैसे निज शान्त आनन्द को
इस भंगुर माटी के पुष्पपात्र में सुगन्धित रख पायेगी,
या कैसे अपनी मधुर अक्षय भावविभोरता को दुःख से पीड़ित
इन मानवीय हृदयों में हर्षपूरित रख पायेगी
और इन नाशवान् देहों में जिन्हें मृत्यु कभी भी मार सकती है?

Dream not to change the world that God has planned,
Strive not to alter his eternal law.

प्रभु द्वारा आयोजित इस जरा परिवर्तन का सपना न देख,
उसके सनातन विधान को बदलने का प्रयास न कर।

If heavens there are whose gates are shut to grief,
There seek the joy thou couldst not find on earth;
Or in the imperishable hemisphere
Where Light is native and Delight is king
And Spirit is the deathless ground of Things,
Choose thy high station, child of Eternity.

यदि वहां पर स्वर्ग है तो इसके द्वार दुःख के लिए बन्द हैं
वहां उस सुख को तू खोज सकती है जो तुझे पृथ्वी पर नहीं मिला है;
या उस अविनाशी अर्धगोलार्ध में
दिव्य ज्योति का वास है और परमानन्द जहां अधिपति है
और परमात्मतत्त्व वस्तुओं की अमर आधारभूमि है,
हे अमरत्व की देवबालिके, अपने उच्च देवस्थान का वरण कर ले।

If thou art Spirit and Nature is thy robe,
Cast off thy garb and be thy naked self
Immutable in its undying truth,
Alone for ever in the mute Alone.

यदि तू परमेश्वरी है और यह अपरा-प्रकृति तेरा आवरण है,
तो इस वस्त्र को उतार दे और अपनी आत्मनग्नता में
अपने अमर सत्य की अविकारी स्थिति में
इस मूक अचल कैवल्य में सतत एकाकी स्थिर हो जा।

Turn then to God, for him leave all behind;
Forgetting Love, forgetting Satyavan,
Annul thyself in his immobile peace.

परमेश्वर की ओर प्रवृत्त हो, उसके हित सर्वस्व त्याग आगे बढ़ जा;
सत्यवान् को बिसार, इस पार्थिव प्रेम को भूल जा
स्वयं को सदा के लिए उसकी अचल शान्ति में लोप कर दे।

O soul, drown in his still beatitude.

हे आत्मा, स्वयं को उसके स्थिर आत्मानन्द में निमज्जित कर दे।

For thou must die to thyself to reach God’s height:
I, Death, am the gate of immortality.”

प्रभु की उच्चता प्राप्त करने को तुझे स्वयं का वध करना होगा:
मैं, मृत्युदेवता, अमरत्व तक पहुंचने का द्वार हूं।’’

But Savitri answered to the sophist God:
“Once more wilt thou call Light to blind Truth’s eyes,
Make knowledge a catch of the snare of Ignorance
And the Word a dart to slay my living Soul?

किन्तु सावित्री ने उस वाक्छली देवता को उत्तर दिया:
‘‘एक बार तू पुनः पराज्योति को पुकार परम सत्य को अन्धा बना रहा है,
विद्या का पाश बना अविद्या को फंसा रहा है
और मेरी जीवित आत्मा का शब्दों के बाण द्वारा वध कर रहा है?

Offer, O king, thy boons to tired spirits
And hearts that could not bear the wounds of Time,
Let those who were tied to body and to mind,
Tear off those bonds and flee into white calm
Crying for a refuge from the play of God,
Surely thy boons are great since thou art He!

हे नृपति, अपने वरदानों को तू थकित जीवों हित प्रदान कर
और उन हृदयों को दे जो इस त्रिकाल के घावों को नहीं सह पाते,
वे जो इस देह और मन से बंधे हैं,
उन्हें इन बंधनों से मुक्ति दिला दे
जिससे वे प्रभु की इस लीला से भाग इस श्वेत शान्ति में शरण पा जायें।
निश्चय ही तेरे वरदान महान् हैं, क्योंकि तू स्वयं ईश्वर है।

But how shall I seek rest in endless peace
Who house the mighty Mother’s violent force,
Her vision turned to read the enigmaed world,[647]
Her will tempered in the blaze of Wisdom’s sun
And the flaming silence of her heart of love?
The world is a spiritual paradox
Invented by a need in the Unseen,
A poor translation to the creature’s sense
Of That which for ever exceeds idea and speech,
A symbol of what can never be symbolised,
A language mispronounced, misspelt, yet true.

किन्तु मैं इस अनन्त शान्ति में कैसे विश्राम पाऊंगी
मेरे अन्तर में शक्तिशालिनी जगन्माता का उग्र तेज व्याप्त है,
उसकी दृष्टि तो इस संसार की समस्या के अध्ययन में लगी है,
उसका संकल्प प्रज्ञादेवी के सूर्य की धूप से परिपक्व है
और उसके प्रेमपूर्ण हृदय की मूक ज्वाला से सिंचित है-
यह संसार तो एक आध्यात्मिक विरोधाभास है
अदृश्य प्रभु में स्थित एक आवश्यकता ने इसका आविष्कार किया है,
प्राणी का बोध इस तत् सत् की अति तुच्छ परिभाषा कर पाता है
क्योंकि वह तो हमारी वाणी और धारणा से परे है,
जो कभी प्रतीकात्मक नहीं हो सकता है उसे वह एक प्रतीक बना देता है
यह एक भाषा है जिसका उच्चारण अशुद्ध है अक्षर दोषपूर्ण है फिर भी सत्य है।

Its powers have come from the eternal heights
And plunged into the inconscient dim Abyss
And risen from it to do their marvellous work.

इसकी शक्तियां सनातन शिखरों से अवतरित हैं
और इस घोर अचित् की धूमिल अगाध खाड़ी में आ डूबी हैं
और फिर अपने अद्भुत कार्य-पूर्ति हेतु यहीं से आरोहण करती हैं।

The soul is a figure of the Unmanifest,
The mind labours to think the Unthinkable,
The life to call the Immortal into birth,
The body to enshrine the Illimitable.

यह जीव इस निराकारी अव्यक्त ब्रह्म का एक आकार है,
यह हमारा मन अचिन्तनीय प्रभु के चिन्तन में श्रमरत रहता है,
यह प्राण अमरेश को जन्म लेने को पुकारता है,
यह शरीर असीम परम को निज में धारण करने का अभीप्सु है।

The world is not cut off from Truth and God.

यह संसार चरम सत्य और परमात्मा से पृथक् नहीं है।

In vain thou hast dug the dark unbridgeable gulf,
In vain thou hast built the blind and doorless wall:
Man’s soul crosses through thee to Paradise,
Heaven’s sun forces its way through death and night;
Its light is seen upon our being’s verge.

यम, व्यर्थ ही तूने अलंघनीय अन्धी खाड़ी मध्य में खोद डाली है,
व्यर्थ ही तूने काली द्वारहीन दीवार रच ली है:
यह सत्य है कि मानव की आत्मा तेरे द्वारा ही स्वर्ग की ओर जाती है,
स्वर्ग के सूर्य की ऊर्जाएं मृत्यु और रात्रि के मार्ग से उतरती हैं;
जिसकी ज्योति हमारी सत्ता की सीमा पर दिखायी दे जाती है।

My mind is a torch lit from the eternal sun,
My life a breath drawn by the immortal Guest,
My mortal body is the Eternal’s house.

मेरा मन तो शाश्वत सूर्य से प्रज्वलित एक मशाल है
मेरा जीवन अमर दिव्य अतिथि द्वारा श्वासित एक प्राण है,
मेरा नश्वर शरीर परमेश्वर का धाम है।

Already the torch becomes the undying ray,
Already the life is the Immortal’s force,
The house grows of the householder part and one.

यह मशाल तो अरे, पहले से ही अमर किरण बन चुकी है,
यह जीवन तो पहले से ही चिरन्तन प्रभु की ऊर्जा है,

और यह काया-गेह इस दिव्य गृही का हिस्सा बन एक हो गया है।
How sayst thou Truth can never light the human mind
And Bliss can never invade the mortal’s heart
Or God descend into the world he made?

तू कैसे कहता है कि मानव मन परम सत्य से कभी प्रकाशित नहीं होगा
और यह मर्त्य हृदय परमानन्द से कदापि अधिकृत न होगा।
या स्वयं अपने द्वारा रचित इस संसार में ईश अवतरित न होगा?

If in the meaningless Void creation rose,
If from a bodiless Force Matter was born,
If Life could climb in the unconscious tree,
If green delight break into emerald leaves
And its laughter of beauty blossom in the flower,
If sense could wake in tissue, nerve and cell,[648]
And Thought seize the grey matter of the brain,
And soul peep from its secrecy through the flesh,
How shall the nameless light not leap on men,
And unknown powers emerge from Nature’s sleep?

यदि सृष्टि इस अर्थहीन असत् शून्य में उदित हो सकती है,
यदि एक निराकारी चित्शक्ति से भौतिक तत्त्व उत्पन्न हो सका,
यदि अचेत वृक्ष में प्राण आरोहण कर सका,
इसका हरित-हर्ष पन्नगी पल्लवों में प्रस्फुटित हो गया
और इसका लावण्यपूर्ण हास्य पुष्प बन खिल उठा,
यदि अचित् त्वचा, तंत्री और कोषाणु में बोध जागा,
और संकल्प इस जड़-बुद्धि के धूसर-रंगी तत्त्व को जान गया है,
और चैत्य पुरुष इस मांसलता के मध्य अपनी गुह्यता से बाहर झांक सका है,
तब वह अनामी पराज्योति मानव को झपट क्यों न धर लेगी,
और अपरा प्रकृति के गर्भ में सोयी अपरिचित शक्तियां क्यों न उदित होंगी?

Even now hints of a luminous Truth like stars
Arise in the mind-mooned splendour of Ignorance;
Even now the deathless Lover’s touch we feel:
If the chamber’s door is even a little ajar,
What then can hinder God from stealing in
Or who forbid his kiss on the sleeping soul?

अभी भी यहां पर द्युतिमान परम सत्य के संकेत तारों समान
अविद्या के चन्द्र-प्रकाशित मानस के वैभव पर उदित हो उठते हैं;
अभी भी यहां अविनाशी दिव्य प्रेमी का स्पर्श हम अनुभव करते हैं:
यदि हमारे अन्तर का द्वार तनिक-सा खुला रह जाये,
तो उस चितचोर प्रभु का प्रवेश कौन रोक सकता है
और हमारी सोयी चैत्यात्मा को चूमने में बाधा दे सकता है?

Already God is near, the Truth is close:
Because the dark atheist body knows him not,
Must the sage deny the Light, the seer his soul?

परमेश्वर तो अभी भी हमारे समीप है, यहां परम सत्य का सान्निध्य भी है:
क्योंकि एक निरीश्वरवादी की काली काया उसको नहीं पहचानती है,
क्या आत्मद्रष्टा ऋषि भी पराज्योति का निषेध करेगा, निज आत्मा को नकार देगा?

I am not bound by thought or sense or shape;
I live in the glory of the Infinite,
I am near to the Nameless and Unknowable,
The Ineffable is now my household mate.

मैं तो विचार या बोध या रूप की बंदिनी नहीं हूं;
मैं तो चिरन्तन की महिमा में बसती हूं,
मैं अनामी प्रभु और परम अज्ञेय के सान्निध्य में रहती हूं,
अनिर्वचनीय ईश्वर ही अब मेरी गृहस्थी का सहचर है।

But standing on Eternity’s luminous brink
I have discovered that the world was He;
I have met Spirit with spirit, Self with self,
But I have loved too the body of my God.

किन्तु आज शाश्वतता के दीप्तिमान तट पर खड़े होकर
मैं जान गयी हूं कि यह संसार वह स्वयं ही है;
मैं परमात्मा से जीव बन और विराट् सत्ता से आत्म-सत्ता बन के भेंटी हूं,
किन्तु अपने ईश्वर की इस काया से भी मैं प्रेम करती हूं।

I have pursued him in his earthly form.

उसी की पार्थिव काया में मैं उसके पीछे पीछे चली हूं।

A lonely freedom cannot satisfy
A heart that has grown one with every heart:
I am a deputy of the aspiring world,
My spirit’s liberty I ask for all.”

एक एकाकी मुक्ति मुझे सन्तुष्ट कैसे कर पायेगी
मेरा हृदय तो प्रत्येक हृदय के साथ एकात्मता में विकसित है:
इस अभीप्सु जगत् की मैं एक प्रतिनिधि हूं,
अपनी आत्म-सत्ता की मुक्ति मैं अखिल संसार हित मांगती हूं।’’

 

Then rang again a deeper cry of Death.

पुनः वहां यमराज की घनघोर वाणी गूंज उठी।

As if beneath its weight of sterile law
Oppressed by its own obstinate meaningless will,
Disdainful, weary and compassionate,
It kept no more its old intolerant sound,
But seemed like life’s in her unnumbered paths,
Toiling for ever and achieving nought
Because of birth and change, her mortal powers
By which she lasts, around the term posts fixed[649]
Turning of a wide circling aimless race
Whose course for ever speeds and is the same.

मानों अपने बंजर विधान के बोझ से दबी
यह अपनी ही हठधर्मिता के अर्थहीन संकल्प से दमित
अवहेलना करती, क्लान्ति और करुणा से भरी,
अब यह अपना पुराना असहिष्णु स्वर और नहीं रख सकी,
किन्तु जीवन के असंख्य मार्गों में यह भटकती-सी लग रही थी
जो जन्म और परिवर्तन में सतत श्रमरत रहकर भी
कुछ सिद्ध नहीं कर पायी थी,
उसकी नश्वर शक्तियां जिनसे वह जीवित रहती है, कालचक्र की खूंटी से बंधी
एक विशाल परिधि में निष्फल हो घूमती दौड़ती रहती हैं
इनका मार्ग सदा एक जैसा है और अविराम गतिशील है।

In its long play with Fate and Chance and Time
Assured of the game’s vanity lost or won,
Crushed by its load of ignorance and doubt
Which knowledge seems to increase and growth to enlarge,
The earth-mind sinks and it despairs and looks
Old, weary and discouraged on its work.

यह अपनी दैवनियति और संयोग एवं त्रिकाल के दीर्घ खेल में
चाहे जीते या हारे पर खेल के गौरव के प्रति आश्वस्त है,
यह अपने अज्ञान और शंका के बोझ से दमित है
इसे ज्ञान और बढ़ा देता और विकास और वर्धित करता लगता है,
भौतिक मन और गहरी निराशा में डूब चहुं ओर खोजता है
पर वृद्ध, जीर्ण और निज कार्य से हतोत्साहित हो जाता है।

Yet was all nothing then or vainly achieved?

तथापि क्या सब नगण्य था या कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है?

Some great thing has been done, some light, some power
Delivered from the huge Inconscient’s grasp:
It has emerged from night; it sees its dawns
Circling for ever though no dawn can stay.

फिर भी कोई महान् सिद्धि हुई है, किसी ज्योति ने, किसी ऊर्जा ने
इस घोर अचित् की पकड़ से मुक्ति पायी है:
यह अन्धरात्रि से उदित हो गयी है; इसने निज उषाओं को देख लिया है
जो अविराम परिक्रमा कर रही थीं पर स्थिर एक भी नहीं हो पायी है।

This change was in the godhead’s far-flung voice;
His form of dread was altered and admitted
Our transient effort at eternity,
Yet flung vast doubts of what might else have been
On grandiose hints of an impossible day.

यही परिवर्तन अब उस देवता की सुदूर से आती वाणी में भी था;
उसका भयंकर रूप अब परिवर्तित था
और शाश्वतता की ओर हमारे नश्वर प्रयास को स्वीकार रहा था,
फिर भी अनेक सम्भावनाओं की विशाल शंकाएं
एक असम्भव दिवस के भव्य चिह्नों पर क्षेपित कर रहा था।

The great voice surging cried to Savitri:
“Because thou knowst the wisdom that transcends
Both veil of forms and the contempt of forms,
Arise delivered by the seeing gods.

वह महती गहराती वाणी सावित्री की ओर उमड़ती गूंजीः
‘‘क्योंकि तू उस प्रज्ञा की ज्ञाता है जो आकारों पर पड़े
पर्दों से और आकारों की अवज्ञा से परात्पर है,
तो उठ और देवों के दर्शन प्राप्त कर मुक्ति पा ले।

If free thou hadst kept thy mind from life’s fierce stress,
Thou mightst have been like them omniscient, calm.

यदि तूने निज चित्त को जीवन के घोर तनाव से मुक्त रखा होता,
तो तू भी सर्वज्ञानी, देवों सम शान्त रहती।

But the violent and passionate heart forbids.

किन्तु तेरा उग्र और आवेशी प्राण तेरा अवरोधक है।

It is the storm bird of an anarch Power
That would upheave the world and tear from it
The indecipherable scroll of Fate,
Death’s rule and Law and the unknowable Will.

यह तो एक निरंकुश महाशक्ति का एक तूफानी विहग है
जो इस संसार को उभाड़कर इससे फाड़ निकाल लेगा
दैवी विधान की अपठित दुर्बोध पत्रिका को,
जो यम-साम्राज्य और परम नियम की और अज्ञेय परम संकल्प की है।

Hasteners to action, violators of God
Are these great spirits who have too much love,
And they who formed like thee, for both art thou,
Have come into the narrow bounds of life
With too large natures overleaping time.

कर्म को उग्रता से गति देने को उतावली में ये महान् आत्माएं हैं,
वे प्रभु को अतिक्रमण करती हैं क्योंकि उनके हृदयों में अपार प्रेम है,
और वे तेरे समान रूपायित हैं, क्योंकि तू तो उभय पक्ष को जानती है,
वे जब जीवन की इन संकीर्ण सीमाओं में आ जाती हैं,
तब उनकी अतिविशाल प्रकृतियां युगकाल की सीमा उलांघ जाती हैं।

Worshippers of force who know not her recoil,
Their giant wills compel the troubled years.[650]

वे उस शक्ति को पूजती हैं पर वे उसके प्रतिक्षेपण से अनजान हैं,
उनके महान् घोर संकल्प इन उत्तेजित वर्षों को कष्ट से विवश कर देते हैं।

The wise are tranquil; silent the great hills
Rise ceaselessly towards their unreached sky,
Seated on their unchanging base, their heads
Dreamless in heaven’s immutable domain.

पर विज्ञजन शान्त रहते हैं; ये उन्नत गिरि-शिखर नीरव रह
अपने अलभ्य नभ की ओर अविराम उन्नत चढ़ते हैं,
अपने अचल अपरिवर्तित आधार पर आसीन, उनके शीश
स्वर्ग के अविकारी साम्राज्य में स्वप्नहीन समाधि में लीन रहते हैं।

On their aspiring tops, sublime and still,
Lifting half-way to heaven the climbing soul
The mighty mediators stand content
To watch the revolutions of the stars.
Motionlessly moving with the might of earth,
They see the ages pass and are the same.

अपने अभीप्सारत शिखरों पर, स्थिर और उदात्त बने,
आरोहण करते जीव को स्वर्ग के आधे मार्ग तक उठा उन्नत कर देते हैं
ये बली मध्यस्थ सन्तुष्ट और स्थिर भाव से शान्त खड़े
इन तारों की परिक्रमाओं का निरीक्षण करते हैं:
पृथ्वी की शक्ति के साथ अचल रह गति करते,
युगों को गुजरते देखते हैं पर सदैव अविकारी रहते हैं।

The wise think with the cycles, they hear the tread
Of far-off things; patient, unmoved they keep
Their dangerous wisdom in their depths restrained,
Lest man’s frail days into the unknown should sink
Dragged like a ship by bound leviathan
Into the abyss of his stupendous seas.

विज्ञजन इन युगचक्रों पर एकचित्त हो मनन करते हैं,
वे आगामी सुदूर की वस्तुओं की पगध्वनि सुनते हैं;
अटल दृढ़ वे अपनी प्रचण्ड प्रज्ञा को निज गहनताओं में नियन्त्रित रखते हैं,
जिससे मानव की क्षीण दिनचर्या कहीं अज्ञात में न डूब जाये
एक समुद्री यान सम जो तिमिंगल से बंधा है
और जिसे भीषण सिन्धु के गर्त में खींच ले जाया जाये।

Lo, how all shakes when the gods tread too near!

अरी देख तो, जब देवता समीप आ जाते हैं तो सब कैसे कांपते हैं।

All moves, is in peril, anguished, torn, upheaved.

सब क्षुब्ध, व्याकुल कटे-मरे से, मानों संकट में हों, गति करते हैं।

The hurrying aeons would stumble on too swift
If strength from heaven surprised the imperfect earth
And veilless knowledge smote these unfit souls.

क्षिप्र धारा सम दौड़ते युग रौंदते, लड़खड़ाते निकल जाते हैं
यदि स्वर्ग की दैवशक्ति इस अधबनी धरती पर शीघ्र आ चौंका देगी
तो आवरणहीन तीव्र प्रज्ञा इन अयुक्त जीवों को कुचल डालेगी।

The deities have screened their dreadful power:
God hides his thought and, even, he seems to err.

देवों ने निज घोर शक्तियों को पट के पीछे छिपा रखा है:
ईश्वर निज संकल्प को गोपित रखता है, फिर भी वह दोषी सम लगता है।

Be still and tardy in the slow wise world.

इस धीमी, विज्ञ जगती में तू भी स्थिरता और धीरज से काम ले।

Mighty art thou with the dread goddess filled,
To whom thou criedst at dawn in the dim woods.

चण्डिका देवी से परिपूर्ण तू उसकी घोर शक्ति से पूर्ण है,
जिस देवी का तूने वन के अंधेरे प्रभात में आवाहन किया था।

Use not thy strength like the wild Titan souls!

तू निज शक्ति को वन्य आसुरी आत्मओं सम उपयोग न कर!

Touch not the seated lines, the ancient laws,
Respect the calm of great established things.”

इन गुह्य मुहरबंद सीमाओं में इस सनातन विधान को भंग न कर।
इन महान् स्थापित वस्तुओं के सत्य और शान्ति का सम्मान कर।’’

But Savitri replied to the huge god:
“What is the calm thou vauntst, O Law, O Death?

किन्तु सावित्री ने उस घोर विशाल देवता को उत्तर दिया:
‘‘यह किस शान्ति का तू वर्णन कर रहा है, ओ विधाता, यमदेवता?

Is it not the dull-visioned tread inert
Of monstrous energies chained in a stark round
Soulless and stone-eyed with mechanic dreams?

क्या यह तेरी धूमिल दृष्टि का जड़ प्रयाण ही तो नहीं है
इन भीषण ऊर्जाओं का, जो एक घोर परिक्रमा से बंधी
निर्जीव और पथराये नेत्रों से यान्त्रिक सपनों में घूमती रहती हैं?

Vain the soul’s hope if changeless Law is all:
Ever to the new and the unknown press on [651]
The speeding aeons justifying God.

इस जीव हित आशा करना व्यर्थ है यदि यह अपरिवर्तनीय विधान ही सब कुछ है:
सतत नूतन और अपरिचित की ओर अविराम दबाव डालना
इन युगों का द्रुतगति से दौड़ना प्रभु का औचित्य सिद्ध करता है।

What were earth’s ages if the grey restraint
Were never broken and glories sprang not forth
Bursting their obscure seed, while man’s slow life
Leaped hurried into sudden splendid paths
By divine words and human gods revealed?

इस पृथ्वी के युगों का क्या अर्थ है यदि इन अन्धे बन्धनों को कभी भंग न होना था
और भव्यताएं अपने धूमिल बीज-कोष को भंग कर
कभी प्रस्फुटित नहीं होतीं, क्यों मानव का यह दीर्घसूत्री जीवन
हठात् रम्य शोभित पथों पर तीव्र गति से उछलता दौड़ पड़ा
जिसने दिव्य पराशब्दों को और मानवीय देवताओं को प्रकटा दिया?

Impose not upon sentient minds and hearts
The dull fixity that binds inanimate things.

इन संवेदनशील मन और हृदयों पर इस कुण्ठित जड़-विधान को
आरोपित न कर जो निर्जीव पदार्थों पर बाध्य है।

Well is the unconscious rule for the animal breeds
Content to live beneath the immutable yoke;
Man turns to a nobler walk, a master path.

तेरा यह अचेत विधान पशु-जाति हेतु उचित है
जो तेरे अविकारी नियम दण्ड तले सन्तुष्ट रहते हैं;
मानव तो एक श्रेष्ठतर जीवन और एक गुरुतर मार्ग का पथिक है।

I trample on thy law with living feet;
For to arise in freedom I was born.

मैं तेरे विधान को अपने जीवित चरण तले कुचलती हूं;
क्योंकि मैं तो बन्धनहीन स्वतन्त्र जीवन जीने को जन्मी हूं।

If I am mighty let my force be unveiled
Equal companion of the dateless powers,
Or else let my frustrated soul sink down
Unworthy of Godhead in the original sleep.

यदि मैं शक्तिशालिनी हूं तो मेरी सामर्थ्य प्रकट हो प्रकाश में आयेगी
और इन अकाल शक्तियों की समकक्ष सहयोगिनी बन जायेगी,
अन्यथा मेरी विक्षुब्ध व्यथित आत्मा धूलि में मिल जायेगी
देवत्व की अनुपयुक्त यह निज आदि-निद्रा में सो जायेगी।

I claim from Time my will’s eternity,
God from his moments.” Death replied to her,
“Why should the noble and immortal will
Stoop to the petty works of transient earth,
Freedom forgotten and the Eternal’s path?

मैं महाकाल से अपने संकल्प की नित्यता को,
और ईश्वर को इस क्षणिकता से मुक्त करने का अधिकार मांगती हूं।’’
तब यमराज ने उसे उत्तर दिया, ‘‘क्यों इस नश्वर धरा के हित
इसके तुच्छ कार्यों के लिए वह महान् और अमर दिव्य संकल्प
निज स्वतन्त्रता को विस्मृत कर और शाश्वतता को तज नीचे झुकेगा?

Or is this the high use of strength and thought,
To struggle with the bonds of death and time
And spend the labour that might earn the gods
And battle and bear agony of wounds
To grasp the trivial joys that earth can guard
In her small treasure-chest of passing things?

या तेरी शक्ति और संकल्प का यही महान् उपयोग है,
कि मृत्यु और काल के बन्धनों से संघर्ष करना
और उस परिश्रम को व्यय कर देना जिससे देवत्व अर्जित हो सकता है
और दुःख के व्रणों को सहना और युद्ध करना
मात्र उन तुच्छ सुखों की निधि प्राप्त करने के लिए
जिन्हें पृथ्वी विनाशी वस्तुओं की निज लघु तिजोरी में सुरक्षित रख सके?

Child, hast thou trodden the gods beneath thy feet
Only to win poor shreds of earthly life
For him thou lov’st cancelling the grand release,
Keeping from early rapture of the heavens
His soul the lenient deities have called?

हे बालिके, तू देवों को निज पदतले कुचल रही है
केवल संसारी जीवन के दीन-हीन चीथड़ों को जय करने के लिए
और उसे जिसे तू प्रेम करती है उसकी महान् मुक्ति को रद्द कर रही है,
उसे स्वर्ग के आदि आनन्द के आह्लाद से वंचित कर रही है
उसकी आत्मा को उदार देवताओं ने निमन्त्रित कर बुलाया है।

Are thy arms sweeter than the courts of God?”

क्या तेरे आलिंगन का सुख प्रभु के साम्राज्य से अधिक मधुर है?’’

She answered, “Straight I trample on the road
The strong hand hewed for me which planned our paths.[652]

सावित्री ने उत्तर दिया, ‘‘मैं तो सीधी अपने मार्ग पर चल रही हूं
यह पथ उसी के शक्तिशाली हाथ ने हमारे लिए योजना बना, रचा है।

I run where his sweet dreadful voice commands
And I am driven by the reins of God.

जहां उसकी मधुर गंभीर वाणी आज्ञा देती है मैं तो उसी पथ पर दौड़ती हूं
और मुझे मेरा ईश लगाम द्वारा खींच हांकता है।

Why drew he wide his scheme of mighty worlds
Or filled infinity with his passionate breath?

उसने इन शक्तिशाली लोकों को क्यों निज विस्तृत योजना से आंका है
या इस अनन्त सृष्टि को क्यों निज तेजस्वी प्राण से भरा है?

Or wherefore did he build my mortal form
And sow in me his bright and proud desires,
If not to achieve, to flower in me, to love,
Carving his human image richly shaped
In thoughts and largenesses and golden powers?

या उसने मेरे नश्वर आकार को किसलिए रचा
और मुझमें क्यों निज प्रतिभाशाली एवं गौरवपूर्ण कामनाओं को बोया,
यदि इन्हें सिद्ध कर, मुझमें प्रस्फुटित कर, प्रेम को यहां विकसित न करना था।
अपनी मानवीय भव्य छवि को अति सुन्दरता से गढ़कर
अपने विचारों और महत्ताओं और स्वर्णिम शक्तियों से पूर्ण न बनाना था?

Far Heaven can wait our coming in its calm.

सुदूर के स्वर्ग हमारे आगमन की धैर्य से प्रतीक्षा कर सकते हैं।

Easy the heavens were to build for God.

इन स्वर्गों का सर्जन प्रभु के लिए अति सहज कार्य था।

Earth was his difficult matter, earth the glory
Gave of the problem and the race and strife.

यह पृथ्वी ही उसका दुष्कर विषय है, पृथ्वी की महत्ता ने
और मानवजातिवाद और संघर्ष ने प्रभु हित अति समस्या खड़ी कर दी है।

There are the ominous masks, the terrible powers;
There it is greatness to create the gods.

यहां अति अशुभ मुखौटे हैं, अति भीषण बल है;
यहां एक महानता भी है जो देवताओं की रचना करती है।

Is not the spirit immortal and absolved
Always, delivered from the grasp of Time?

क्या यह आत्मा सतत अमर और मुक्त नहीं है,
इस महाकाल की पकड़ से क्या यह सदैव बंधनमुक्त नहीं है?

Why came it down into the mortal’s Space?

इसे इस मर्त्य दिक्काल में अवतरित होने की क्या आवश्यकता थी?

A charge he gave to his high spirit in man
And wrote a hidden decree on Nature’s tops.

मानव में स्थित निज उन्नत चैत्य सत्ता को प्रभु ने एक कार्यभार सौंपा है
और परा प्रकृति के शिखरों पर एक गुप्त आदेश लिखा है।

Freedom is this with ever seated soul,
Large in life’s limits, strong in Matter’s knots,
Building great stuff of action from the worlds
To make fine wisdom from coarse scattered strands
And love and beauty out of war and night,
The wager wonderful, the game divine.

सतत स्थित अन्तरात्मा की यही स्वतन्त्रता है,
जीवन की सीमाएं विस्तार से उदार हों, पर जड़तत्त्व की ग्रन्थियों में कठोरता से बंधी रहें,
इस संसार के कर्मों द्वारा महत्ताओं की रचना करें
इन छितरे और रूखे मोटे सूत्रों से महीन कोमल प्रज्ञा को बुने,
इस कालिमा और संघर्ष में से प्रेम और सौन्दर्य का निर्माण करे,
यही दिव्य लीला है, यही अद्भुत शर्त है, इस संसार-रचना की।

What liberty has the soul which feels not free
Unless stripped bare and cannot kiss the bonds
The Lover winds around his playmate’s limbs,
Choosing his tyranny, crushed in his embrace?

उस जीव के लिए मुक्ति का क्या मोल है यदि वह इसका अनुभव नहीं पाता है
जब तक वह सबसे रीता नहीं हो जाता और उन बन्धनों को चूम नहीं सकता है
जो उसके दिव्य प्रेमी ने अपनी सखी को अंगों में भर लेने को बांधे हैं;
उसके अत्याचार का वरण कर उसके आलिंगन में कुचले जाने में क्या मुक्ति नहीं है?

To seize him better with her boundless heart
She accepts the limiting circle of his arms,
Bows full of bliss beneath his mastering hands
And laughs in his rich constraints, most bound, most free.

अपने मुक्त हृदय से परिपूर्णता से उसे धर लेने को
वह उसकी बांहों के सीमित घेरे को स्वीकारती है,
उसके प्रभुताशाली कर के तले वह आनन्द से भर नमित हो जाती है
और उसके वैभवशाली नियन्त्रणों में हंसती है, वह सर्वाधिक बंधने में भी पूर्णत: मुक्त है।

This is my answer to thy lures, O Death.”[653]

हे यमदेवता तेरे प्रलोभनों का मेरा यही उत्तर है।’’

 

Immutable, Death’s denial met her cry:
“However mighty, whatever thy secret name
Uttered in hidden conclave of the gods,
Thy heart’s ephemeral passion cannot break
The iron rampart of accomplished things
With which the great Gods fence their camp in Space.

निर्विकारी यमदेवता उसके निषेध पर चीत्कार कर बोला:
‘‘तू कितनी भी शक्तिशालिनी क्यों न हो, और तेरा
गुह्य नाम देवताओं की गोपित निर्वाचिका सभा में भी लिखा हो,
फिर भी तेरे हृदय का नश्वर क्षणिक आवेश भंग नहीं कर पायेगा
चिर-स्थापित पदार्थों की लौह सीमा के परकोटे को
जिसकी सहायता से देवता स्वर्गलोक में निज भुवनों पर बाड़ बनाये रखते हैं।

Whoever thou art behind thy human mask,
Even if thou art the Mother of the worlds
And pegg’st thy claim upon the realms of Chance,
The cosmic Law is greater than thy will.

अपने इस मानवीय मुखौटे के पीछे तू चाहे जो हो
त्रिलोक की स्वामिनी मां भगवती ही क्यों न हो
और पृथ्वी के इस दैवयोग के साम्राज्य पर निज अधिकार भी रखती हो,
तथापि ब्रह्माण्डीय विधान तेरे संकल्प से महत्तर है।

Even God himself obeys the Laws he made:
The Law abides and never can it change,
The Person is a bubble on Time’s sea.

विधाता स्वयं निज रचित नियमों का अनुसरण करता है:
यह परम विधान अटल है और कदापि बदल नहीं सकता है,
महान् व्यक्तित्व इस महाकाल के सागर पर मात्र एक बुलबुला है।

A forerunner of a greater Truth to come,
Thy soul creator of its freer Law,
Vaunting a Force behind on which it leans,
A Light above which none but thou hast seen,
Thou claimst the first fruits of Truth’s victory.

एक महत्तर आगामी परा सत्य का वह मात्र एक सन्देशवाहक है,
तेरी आत्मा इसके मुक्ततर दिव्य विधान की स्रष्टा है
एक दैवीशक्ति जिस पर तू गर्वित है वह पीछे से इसे सहारा दे रही है
ऊर्ध्व में एक दिव्य प्रकाश है जिसे सिवाय तेरे किसी ने नहीं देखा है,
परा सत्य के विजित प्रथम फलों की तू अधिकारिणी है।

But what is Truth and who can find her form
Amid the specious images of sense,
Amid the crowding guesses of the mind
And the dark ambiguities of a world
Peopled with the incertitudes of Thought?

किन्तु यह परम सत्य क्या है और कौन इसके स्वरूप को
इन्द्रियबोध की इन सत्याभासी छवियों के मध्य खोज सकता है,
मानव चित्त के अनुमानों की इस रेलपेल के मध्य
और इस संसार की गहन संदिग्ध द्वयर्थकता के मध्य
जो संकल्प विचार की अनिश्चयता से भरपूर है?

For where is Truth and when was her footfall heard
Amid the endless clamour of Time’s mart
And which is her voice amid the thousand cries
That cross the listening brain and cheat the soul?

और यह परम सत्य कहां पर है उसकी पदचाप कब किसने सुनी है
युगों के इस हाट बाजार के अनन्त कोलाहल की आपाधापी में
और इन सहस्त्रों ध्वनियों में उसकी वाचा कौन-सी है
जो इस श्रोता के मस्तिष्क को पार कर अन्तरात्मा को छलती है?

Or is Truth aught but a high starry name,
Or a vague and splendid word by which man’s thought
Sanctions and consecrates his nature’s choice,
The heart’s wish donning knowledge as its robe,
The cherished idea elect among the elect,
Thought’s favourite mid the children of half-light
Who high-voiced crowd the playgrounds of the mind
Or people its dormitories in infant sleep?

या यह सत्य केवल एक उन्नत नाम है नभ के तारों में विचरता,
या एक अस्पष्ट भव्य शब्द है जिसके द्वारा मानव के विचार
अपने स्वभावानुसार चुनाव को स्वीकृति दे अभिषेक करते हैं,
निज हृदय की कामना को ज्ञान बना वस्त्र सम धारण करते हैं
अपने सर्वप्रिय भाव को चुने हुए भावों में से चुन लेते हैं,
मन के प्रिय विचार को जो अर्धज्ञानी बालकों समान अर्धज्योतित हैं
जो मन रूपी खेल के मैदान में भीड़ लगाये चिल्लाते हैं,
या इसके शयनकक्ष में बालनिद्रा में एकत्रित सोते हैं?

All things hang here between God’s yes and no,[654]
Two Powers real but to each other untrue,
Two consort stars in the mooned night of mind
That towards two opposite horizons gaze,
The white head and black tail of the mystic drake,
The swift and the lame foot, wing strong, wing broken
Sustaining the body of the uncertain world,
A great surreal dragon in the skies.

अरे, यहां तो समस्त पदार्थ प्रभु की ‘हां’ या ‘ना’ पर निर्भर हैं,
ये दोनों शक्तियां वास्तविक हैं पर एक दूसरे के लिए मिथ्या हैं,
मन की चन्द्र रात्रि के ये दो सहचर तारे हैं
जो सदैव दो विपरीत क्षितिजों की ओर अपलक देखते हैं,
गुह्य नर सारस का एक श्वेत मुख एवं दूसरी काली पूंछ है,
एक लंगड़ाता और दूसरा दौड़ता पैर है, एक शक्तिशाली और दूसरा टूटा पंख है
जो इस अनिश्चित संसार की काया को धारण किये हैं,
आकाशों पर छाया महान् अति-भौतिक एक पौराणिक पक्षी है।

Too dangerously thy high proud truth must live
Entangled in Matter’s mortal littleness.

तेरे इस उच्च गर्वीले सत्य को इस जड़तत्त्व की नश्वर लघुताओं में
उलझ फंसकर घोर विपत्तियों का सामना करते रहना होगा।

All in this world is true, yet all is false:
Its thoughts into an eternal cipher run,
Its deeds swell to Time’s rounded zero sum.

इस संसार में सकल सत्य है, फिर भी सकल मिथ्या भी है:
इसके विचार संकल्प सब एक शाश्वत शून्य में समा जाते हैं,
इसकी कृतियों का जोड़ त्रिकाल का एक फूला हुआ गोल शून्य है।

Thus man at once is animal and god,
A disparate enigma of God’s make
Unable to free the Godhead’s form within,
A being less than himself, yet something more,
The aspiring animal, the frustrate god;
Yet neither beast nor deity but man,
But man tied to the kind earth’s labour strives to exceed,
Climbing the stairs of God to higher Things.

इस प्रकार मानव पशु होने के साथ-साथ देवता भी है,
प्रभु की रचना की वह एक विषम पहेली है
जो अन्तर के देवत्व को मुक्त करने में अशक्त है,
यह प्राणी स्वयं से न्यून है, फिर भी स्वयं की अपेक्षा कुछ अधिक भी है,
अभीप्सा करता पशु है, कुण्ठित देवता है,
तथापि न तो यह पशु है न देवता है बल्कि मानव है,
किन्तु यह इस पार्थिव श्रम से बंधा स्वयं को अतिक्रमित करने के प्रयास में है
प्रभु के सोपान पार करता यह उन्नततर पदार्थों की ओर बढ़ रहा है।

Objects are seemings and none knows their truth,
Ideas are guesses of an ignorant god.

इनके उद्देश्य आभासित तो हैं किन्तु एक भी अपना सत्य नहीं जानता है,
इस अज्ञानी देवता के सब विभाव केवल अनुमान हैं।

Truth has no home in earth’s irrational breast:
Yet without reason life is a tangle of dreams,
But reason is poised above a dim abyss
And stands at last upon a plank of doubt.

धरती के इस असंगत अन्तर में परासत्य का कोई स्थान नहीं हैः
तथापि बिना विवेक के जीवन सपनों की एक उलझन है,
किन्तु अन्त में विवेक भी तो एक धूमिल खाड़ी के ऊपर रखे
शंका के एक तख्ते पर खड़ा है।

Eternal truth lives not with mortal men.

शाश्वत सत्य इस नश्वर मनुष्य के साथ नहीं रह सकता है।

Or if she dwells within thy mortal heart,
Show me the body of the living Truth
Or draw for me the outline of her face
That I too may obey and worship her.

या यह यदि तेरे मर्त्य हृदय के अन्तर में बसता है,
तो मुझे इस जीवंत सत्य की काया के दर्शन करा दे,
या मेरे लिए इसके आनन की बहिर्रूपरेखा आंक दे
जिससे मैं भी उसकी पूजा कर उसका अनुपालन करूं।

Then will I give thee back thy Satyavan.

तब मैं तुझे तेरा सत्यवान् लौटा दूंगा।

But here are only facts and steel-bound Law.

किन्तु यहां तो अभी यथार्थ और लौहबद्ध दैवी विधान है।

This truth I know that Satyavan is dead
And even thy sweetness cannot lure him back.

मैं तो इस सत्य को जानता हूं कि सत्यवान् मर चुका है
और तेरा माधुर्य भी उसे लौटने को लालायित नहीं कर सकता है।

No magic Truth can bring the dead to life,[655]
No power of earth cancel the thing once done.
No joy of the heart can last surviving death,
No bliss persuade the past to live again.

कोई भी जादुई परम सत्य मृतक को जीवन नहीं दे सकता है,
धरा की कोई भी शक्ति एक बार सम्पादित वस्तु को रद्द नहीं कर सकती है,
हृदय का कोई सुख मृत्यु से बच अन्त तक जीवित नहीं रहता है,
कोई भी परमानन्द अतीत को पुनः जीवित होने को बाध्य नहीं कर सकता है।

But Life alone can solace the mute Void
And fill with thought the emptiness of Time.

किन्तु केवल जीवन ही इस मूक असत् रिक्तता में शान्ति दे सकता है
और त्रिकाल के रीतेपन को विचार संकल्प से पूर्ण कर देता है।

Leave then thy dead, O Savitri, and live.”

अत: हे सावित्री, अपने मृतक को छोड़ जा, और जीवन यापन कर।’’

The Woman answered to the mighty Shade,
And as she spoke, mortality disappeared;
Her Goddess self grew visible in her eyes,
Light came a dream of heaven into her face.

उस सामर्थ्यशाली प्रेत-छाया को उस नारी-शक्ति ने उत्तर दिया,
जैसे ही उसने बोलना आरम्भ किया, उसकी नश्वरता लोप हो गयी;
उसकी दिव्यता अब उसके नेत्रों में आभासित हो उठी,
स्वर्ग के स्वप्न समान पराज्योति अवतरित हो उसके मुख पर छा गयी।

“O Death, thou too art God and yet not He,
But only his own black shadow on his path
As leaving the Night he takes the upward Way
And drags with him its clinging inconscient Force.

‘‘हे यमदेवता, तू ईश्वर है और फिर भी परमतत्त्व नहीं है
किन्तु केवल उसकी अपनी ही काली छाया है जिसे वह अपने मार्ग पर
घोर कालरात्रि सम पीछे छोड़ जाता है जब वह ऊर्ध्वाकाश में आरोहण करता है
और अपने पीछे अचित् महाशक्ति को जो उससे चिपकी है घसीटता है।

Of God unconscious thou art the dark head,
Of his Ignorance thou art the impenitent sign,
Of its vast tenebrous womb the natural child,
On his immortality the sinister bar.

प्रभु का तू काला और संज्ञाहीन पक्ष है,
तू उसकी अविद्या अज्ञ शक्ति है पश्चातापहीन चिह्न है
उसके विराट्, जटिल गर्भाशय का तू एक स्वाभाविक पुत्र है,
उसके अमरत्व पर लगी अवरोधक शलाका है।

All contraries are aspects of God’s face.

प्रभु के सकल विरोधी तत्त्व भी उसी के अंश हैं।

The Many are the innumerable One,
The One carries the multitude in his breast;
He is the Impersonal, inscrutable, sole,
He is the one infinite Person seeing his world;
The Silence bears the Eternal’s great dumb seal,
His light inspires the eternal Word;
He is the Immobile’s deep and deathless hush,
Its white and signless blank negating calm,
Yet stands the creator Self, the almighty Lord
And watches his will done by the forms of gods
And the desire that goads half-conscious man
And the reluctant and unseeing Night.

ये अनेक देवता भी उसके असंख्य परमैकम् ही हैं,
वह कैवल्य प्रभु निज वक्ष में असंख्यों की भीड़ वहन किये है,
वह अवैयक्तिक है, अबोधगम्य, एकाकी है,
वह नित्य व्यक्तित्व पुरुषोत्तम है, अपने इस जगत् का द्रष्टा है;
परम नीरवता अविनाशी परमेश की मूक मुद्रा धारण किये है,
इसी की पराज्योति शाश्वत परम शब्द को प्रेरित करती है,
वह परम अचल गहनता है, अमर मौन है,
इसका श्वेत गुणहीन शून्य शान्ति का निषेध करता है,
तथापि परमात्मा स्वयं स्रष्टा, सर्वशक्तिशाली प्रभु है
और देवों द्वारा निज संकल्प को सिद्ध होते अवलोकता है
और उस कामना का निरीक्षण करता है जो अर्धचेतन मानव को हांकती है
और इस अन्धी अनिच्छुक कालरात्रि को देखता है।

These wide divine extremes, these inverse powers
Are the right and left side of the body of God;
Existence balanced twixt two mighty arms
Confronts the mind with unsolved abysms of Thought.

ये विस्तृत दिव्य चरमताएं, ये विरोधी शक्तियां
उसी एक प्रभु-काया का वाम और दक्षिणी अंग हैं;
यह सकल सृष्टि इन दो शक्तिशाली भुजाओं के मध्य स्थित है
जो चिन्तन मनन की असमाधेय अगाधताओं के साथ मन के समक्ष चुनौती देती खड़ी हैं।

Darkness below, a fathomless Light above,[656]
In Light are joined, but sundered by severing Mind
Stand face to face, opposite, inseparable,
Two contraries needed for his great World-task,
Two poles whose currents wake the immense World-Force.

रसातल में घोर अचित् अन्धकार है, ऊर्ध्व में अनन्त पराज्योति का आकाश है,
पराज्योति में सब जुड़े हैं, किन्तु विभक्तकारी मनःशक्ति द्वारा पृथक् हो गये
आमने-सामने विरोधी, अविभाज्य बन खड़े हैं,
ये दो विरोधी प्रभु के महान् विश्व-कार्य हित अनिवार्य हैं
दो ध्रुव हैं जिनकी गति-तरंगें विशाल जग-ऊर्जा को जाग्रत् कर देती हैं।

In the stupendous secrecy of his Self,
Above the world brooding with equal wings,
He is both in one beginningless, without end:
Transcending both, he enters the Absolute.

वह अपने परमात्म-तत्त्व की भीषण गुह्यता में,
इस संसार के ऊर्ध्व में समद्रष्टा आत्मलीन समाधि में,
वह दोनों में एक रूप है, अनादि, अनन्त है,
दोनों से परात्पर, वह आत्मपरंतप पूर्ण शिव है।

His being is a mystery beyond mind,
His ways bewilder mortal ignorance;
The finite in its little sections parked,
Amazed, credits not God’s audacity
Who dares to be the unimagined All
And see and act as might one Infinite.

उसकी सत्ता मन से परे एक गुह्य रहस्य है,
उसकी विभिन्न विधियां मर्त्य अविद्या को भ्रमित कर देती हैं;
यह नश्वरता इसके लघु अंशों में स्थित है,
आश्चर्यचकित, यह परमेश्वर की साहसी ढिठाई को श्रेय नहीं देती है
अकल्पित अखिल समष्टि में यह व्यक्त होने का साहस करती है,
और स्वयं को चिरन्तन प्रभु सम देखती और कर्म करती है।

Against human reason this is his offence;
Being known to be for ever unknowable,
To be all and yet transcend the mystic whole,
Absolute, to lodge in a relative world of Time,
Eternal and all-knowing, to suffer birth,
Omnipotent, to sport with Chance and Fate,
Spirit, yet to be Matter and the Void,
Illimitable, beyond form or name,
To dwell within a body, one and supreme
To be animal and human and divine:
A still deep sea, he laughs in rolling waves:
Universal, he is all,—transcendent, none.

मानवीय विवेक के विरुद्ध यही प्रभु का अपराध है,
सर्वज्ञ सत्ता होने पर भी सर्वदा अज्ञात रहता है,
समस्त में व्यक्त है और फिर भी गुह्य सम्पूर्णता से परात्पर है,
परिपूर्ण शिव है, फिर भी दिक्काल में सापेक्ष भाव में बसता है,
सनातन और सर्वज्ञानी होकर भी जन्म-मरण भोगता है,
सर्वशक्तिशाली है, पर दैवयोग और विधाता की लीला में रमा रहता है,
परमात्म तत्त्व है, फिर भी जड़तत्त्व और शून्याकाश हो जाता है,
असीम, अपरिमेय, आकार या नाम से परे होकर भी
एक देह के अन्तर में वास करता है, परमैकम्, सर्वेश्वर होकर भी
पशु और मानव और देवता बन जाता हैः
एक शान्त गहन सिंधु, वह उमड़ती-घुमड़ती लहरों में हंसता है;
विश्वरूप, वह सर्वेश्वर है, परात्पर है, शून्य नि:शेष है।

To man’s righteousness this is his cosmic crime,
Almighty beyond good and evil to dwell
Leaving the good to their fate in a wicked world
And evil to reign in this enormous scene.

मानव के औचित्य हित यही उसका वैश्विक अपराध है,
वह धर्म और अधर्म से परे सर्वशक्तिमत्ता में स्थित है
और एक क्रूर जगत् में सत्पुरुष को वह अपने भाग्य के भरोसे छोड़ देता है
और अधर्म को इस विशाल दृश्य पर साम्राज्य स्थापित करने देता है।

An aimless labour with but scanty sense,
All opposition seems and strife and chance
To eyes that see a part and miss the whole;
The surface men scan, the depths refuse their search:
A hybrid mystery challenges the view,
Or a discouraging sordid miracle.[657]

यहां पर समस्त विरोध संघर्ष और दैवयोग सम लगते हैं,
एक लक्ष्यहीन परिश्रम सम अल्प सार्थकता लिये
हमारी दृष्टि को दिखते हैं क्योंकि यह अंशमात्र देखती है, पूर्ण को खो देती है;
मानव ऊपरी सतह निरखता है, गहनताएं खोजे जाने से इन्कार कर देती हैं:
उसकी चितवन को एक मिश्रित संकर गुह्यता चुनौती देती है,
या यह सब एक अधम नैराश्यपूर्ण इन्द्रजाल लगता है।

Yet in the exact Inconscient’s stark conceit,
In the casual error of the world’s ignorance
A plan, a hidden Intelligence is glimpsed.

फिर भी यथातथ्य जड़-अचित् के प्रत्यक्ष दिखते छलावे में,
संसारी अविद्या के अविचारित दोष में भी
एक योजना है, एक आच्छादित प्रज्ञा की झलक मिलती है।

There is a purpose in each stumble and fall;
Nature’s most careless lolling is a pose
Preparing some forward step, some deep result.

वहां प्रत्येक ठोकर एवं पतन में एक सार निहित है;
विश्व-प्रकृति का अति असावधान आलोड़न एक विशेष मुद्रा है
किसी आगामी चरण की, किसी गहन परिणाम की तैयारी है।

Ingenious notes plugged into a motived score,
These million discords dot the harmonious theme
Of the evolution’s huge orchestral dance.

विचक्षण स्वरों को एक अभिप्रेरक संगीत-लिपि में बन्द कर,
लाखों असंगत दिखते ये स्वर एक स्वरसंगति के प्रकरण हैं
इस विकासक्रम चक्र के विशाल नृत्य के समवेत संगीत में।

A Truth supreme has forced the world to be;
It has wrapped itself in Matter as in a shroud,
A shroud of Death, a shroud of Ignorance.

एक सर्वोच्च दिव्य सत्य ने इस संसार को अस्तित्व में आने को बाध्य किया है;
इसने स्वयं को जड़तत्त्व में कफन के जैसे लपेट लिया है,
यह मृत्यु का एक कफन है; अविद्या का एक कफन है।

It compelled the suns to burn through silent Space,
Flame-signs of its uncomprehended Thought
In a wide brooding ether’s formless muse:
It made of Knowledge a veiled and struggling light,
Of Being a substance nescient, dense and dumb,
Of Bliss the beauty of an insentient world.

इसने सूर्यों को मूक-विराट् अन्तरिक्ष में जलने को विवश कर दिया,
ये इसके अबोधगम्य परासंकल्प के ज्वलन्त प्रतीक
एक विस्तृत विद्युतीय आकाश की निराकारी समाधि में लीन हैं;
इसने सरस्वती देवी को एक पटाच्छादित संघर्षरत ज्योति बना दिया,
चित्-सत्ता को एक निश्चेतन, घनीभूत, मूक तत्त्व बना दिया,
परमानन्द को एक संज्ञाहीन संसार की सुषमा बना दिया।

In finite things the conscious Infinite dwells:
Involved it sleeps in Matter’s helpless trance,
It rules the world from its sleeping senseless Void;
Dreaming it throws out mind and heart and soul
To labour crippled, bound, on the hard earth;
A broken whole it works through scattered points;
Its gleaming shards are Wisdom’s diamond thoughts,
Its shadowy reflex our ignorance.

इन अनित्य पदार्थों में सचेत नित्यप्रभु रहता है:
संलग्न यह जड़तत्त्व की निस्सहाय समाधि में सोया है,
यह अपनी अबोध सुषुप्ति की महाशून्यता से इस संसार पर शासन करता है;
सपनाते हुए यह मन, प्राण और चैत्यात्मा का क्षेपण करता है
श्रम करने को अपंग, बंदी बन इस कठोर धरती से जुड़ गया है;
खण्डित होकर भी यह सम्पूर्ण-तत्त्व अपने बिखरे बिन्दुओं में कार्य करता है;
इसके दीप्तिमान खण्ड प्रज्ञादेवी के हीरक संकल्प हैं,
इसके छायाभासी आभास हमारी अविद्या हैं।

It starts from the mute mass in countless jets,
It fashions a being out of brain and nerve,
A sentient creature from its pleasures and pangs.

यह मूक अम्बार की अनगिनत धाराओं में आरम्भ हो फूटता है,
यह मस्तिष्क और नाड़ी की एक सत्ता को रूपायित करता है,
यह अपने सुखों और पीड़ाओं से एक सचेत प्राणी बनाता है।

A pack of feelings obscure, a dot of sense
Survives awhile answering the shocks of life,
Then crushed or, its force spent, leaves the dead form,
Leaves the huge universe in which it lived
An insignificant unconsidered guest.
But the soul grows concealed within its house;
It gives to the body its strength and magnificence;[658]
It follows aims in an ignorant aimless world,
It lends significance to earth’s meaningless life.

यह धूमिल भावनाओं की एक गठरी है बोध का एक बिन्दु मात्र है
जो जीवन के आघातों का प्रत्युत्तर देते हुए कुछ काल जीवित रहता है,
या कुचला जाता है, ऊर्जा-निःशेष हो यह मृत काया को छोड़ जाता है,
इस विराट् विश्व को जिसका यह वासी था
एक महत्त्वहीन और उपेक्षित अतिथि समान उसे छोड़ जाता है,
किन्तु चैत्यात्मा निज गेह में छिपी विकसित होती रहती है;
यह इस काया को निज शक्ति और महत्त्व प्रदान करती है;
यह एक अज्ञानी लक्ष्यहीन जगत् में लक्ष्यों का अनुसरण करती है,
यह पृथ्वी के निरर्थक जीवन को सार्थकता उधार देती है।

A demi-god animal, came thinking man.
He wallows in mud, yet heavenward soars in thought;
He plays and ponders, laughs and weeps and dreams,
Satisfies his little longings like the beast;
He pores upon life’s book with student eyes.

एक अर्धदेव पशु, मनीषी मानव आया;
वह अधम कीचड़ में लोट लगाता, तथापि विचारों द्वारा स्वर्ग की ओर उड़ान भरता;
वह खेलता और मनन करता, हंसता और रोता एवं स्वप्न देखता,
अपनी क्षुद्र कामनाओं को पशु समान सन्तुष्ट करता है;
वह जीवन की पुस्तक को विद्यार्थी की दृष्टि से अध्ययन करता है।

Out of this tangle of intellect and sense,
Out of the narrow scope of finite thought
At last he wakes into spiritual mind;
A high liberty begins and luminous room:
He glimpses eternity, touches the infinite,
He meets the gods in great and sudden hours,
He feels the universe as his larger self,
Makes Space and Time his opportunity
To join the heights and depths of being in light,
In the heart’s cave speaks secretly with God.

बुद्धि और इन्द्रियानुभव की इस उलझन के बाहर,
नश्वर विचार के इस संकीर्ण प्रयोजन के बाहर
अन्त में वह आध्यात्मिक मन में जागता है;
तब एक उच्च मुक्ति और द्युतिमान् जीवन-सत्र आरम्भ होता है:
वह चिरन्तन की झलक पाता है, नित्य का स्पर्श पाता है,
वह महती और आकस्मिक घड़ियों में देवों को भेंटता है,
वह विश्व को अपने बृहत्तर स्वभाव सम अनुभव करता है,
दिक्काल और अन्तराकाश को अपना सुअवसर बना
सत्ता की उच्चताओं और गहनताओं को आत्मज्योति से जोड़ देता है,
निज हृदय-कन्दरा में प्रभु के साथ गोपनीयता में वार्तालाप करता है।

But these are touches and high moments lived;
Fragments of Truth supreme have lit his soul,
Reflections of the sun in waters still.

किन्तु ये मात्र स्पर्श हैं और जीवंत उच्च भागवत पल हैं;
सर्वोच्च परा सत्य के अंशों ने उसकी आत्मा को ज्योतित कर दिया है,
शान्त जल पर पड़ते सत्य सूर्य के आभास हैं।

A few have dared the last supreme ascent
And break through borders of blinding light above,
And feel a breath around of mightier air,
Receive a vaster being’s messages
And bathe in its immense intuitive Ray.

केवल अल्पजन इस अन्तिम सर्वोच्च आरोहण पर साहस कर चढ़ पाते हैं
और ऊर्ध्व की चौंधियाती पराज्योति की सीमाएं पार कर सके हैं,
और महत्तर वातावरण के श्वास का अनुभव ले पाये,
एक विराट् सत्ता के सन्देशों को ग्रहण कर पाये
और आत्म-प्रेरणा की अपनी महती परारश्मि में स्नान कर पाये हैं।

On summit Mind are radiant altitudes
Exposed to the lustre of Infinity,
Outskirts and dependencies of the house of Truth,
Upraised estates of Mind and measureless.

मनःशक्ति के शिखर पर दीप्तिमान उन्नतांश
चिरन्तन के तेजस्वी प्रकाश में उद़्घाटित,
परा सत्य के धाम बहिर्क्षेत्र और आश्रित राज्य हैं,
ये सत्य मन के उन्नत साम्राज्य अमेय हैं।

There man can visit but there he cannot live.

वहां मानव दर्शक बन जा सकता है किन्तु बस नहीं सकता है।

A cosmic Thought spreads out its vastitudes;
Its smallest parts are here philosophies
Challenging with their detailed immensity,
Each figuring an omniscient scheme of things.

एक वैश्विक सत्य संकल्प ने अपने विस्तारों को बाहर फैलाया है;
इसी के लघुतम अंश यहां के दर्शनशास्त्र हैं
जो अपने विस्तृत विवरण की विशालता द्वारा चुनौती देते हैं,
प्रत्येक अपने में पदार्थों की एक शक्तिशाली परियोजना का दर्शन कराता है।

But higher still can climb the ascending light;
There are vasts of vision and eternal suns, [659]
Oceans of an immortal luminousness,
Flame-hills assaulting heaven with their peaks,
There dwelling all becomes a blaze of sight;
A burning head of vision leads the mind,
Thought trails behind it its long comet tail;
The heart glows, an illuminate and seer,
And sense is kindled into identity.

किन्तु आरोहणकारी अन्तःप्रकाश और भी उच्चतर चढ़ सकता है,
वहां अन्तर्दर्शनों का विस्तार है और शाश्वत आदित्य हैं,
एक अमर परादीप्ति के सागर हैं,
प्रज्वलित पर्वत निज चोटियों से स्वर्ग पर आक्रमण करते हैं,
वहां पर समस्त भवन एक दीप्ति के दर्शन सम चमकते हैं;
अन्तर्दर्शन का एक ज्वलन्त मुख मन को पथ दर्शाता,
संकल्प इसके पीछे निज दीर्घ धूमकेतु सम पूंछ घसीटता चलता;
हृदय उल्लसित एक तेजस्वी और द्रष्टा बन दमकता,
और इन्द्रियबोध तदात्मता में प्रज्वलित हो जाता है।

A highest flight climbs to a deepest view:
In a wide opening of its native sky
Intuition’s lightnings range in a bright pack
Hunting all hidden truths out of their lairs,
Its fiery edge of seeing absolute
Cleaves into locked unknown retreats of self,
Rummages the sky-recesses of the brain,
Lights up the occult chambers of the heart;
Its spear-point ictus of discovery
Pressed on the cover of name, the screen of form,
Strips bare the secret soul of all that is.

एक उच्चतम उड़ान गहनतम दृष्टि तक उन्नत हो जाती:
अपने स्वाभाविक अन्तरिक्ष की एक विशालता में उद़्घाटित
अन्तर्प्रेरणा की बिजलियां चमकते झुण्डों में चली आतीं
और मांदों में छिपे समस्त सत्यों को खदेड़ बाहर निकाल लातीं,
इसकी परिपूर्णता को देखती अग्निल तीव्र धार
अन्तरव्यक्तित्व की अज्ञात बंद गुह्य शरण स्थलियों को काट डालती,
मस्तिष्क की आकाशीय कन्दराओं को ढूंढ़ निकालती है,
हृदय के गुह्य कक्षों को प्रकाशित कर देती है;
इसके अनुसंधानी भाले की तीखी नोक,
नाम रूपी ढकने पर दबाव डाल आकार का पट चीर देती है,
और गुह्यात्मा को उसके समस्त रूपों से उघाड़ नग्न कर देती है।

Thought there has revelation’s sun-bright eyes;
The Word, a mighty and inspiring Voice,
Enters Truth’s inmost cabin of privacy
And tears away the veil from God and life.

संकल्प वहां पर सूर्य-सम दीप्तिपूर्ण नेत्रों से सब प्रकट कर सकता है;
आदि शब्द, एक शक्तिशाली प्रेरक दिव्य वाचा है,
जो सत्य लोक के अन्तरतम कक्ष के एकान्त में प्रवेश पा जाता है
और परमेश्वर और विश्वप्राण पर पड़े पट को छिन्न-भिन्न कर देता है।

Then stretches the boundless finite’s last expanse,
The cosmic empire of the Overmind,
Time’s buffer state bordering Eternity,
Too vast for the experience of man’s soul:
All here gathers beneath one golden sky:
The Powers that build the cosmos station take
In its house of infinite possibility;
Each god from there builds his own nature’s world;
Ideas are phalanxed like a group of sums,
Thought crowds in masses seized by one regard;
All Time is one body, Space a single book:
There is the Godhead’s universal gaze
And there the boundaries of immortal Mind:
The line that parts and joins the hemispheres [660]
Closes in on the labour of the Gods
FencingEeternity from the toil of Time.

तब अनन्त अनित्य को अन्तिम सीमाओं तक विस्तृत कर देता है,
यह अधिमन का वैश्विक साम्राज्य है,
चिरन्तन की सीमा से लगा त्रिकाल का प्रतिरोधक राज्य है,
यह मानव की चैत्यात्मा के अनुभव के लिए अतिविशाल है:
यहां पर सब एक स्वर्ण गगन तले एकत्रित हैं:
वे महाशक्तियां जिन्होंने इस ब्रह्माण्डीय अवस्थान का निर्माण किया है
वे अपने इस धाम में अनन्त सम्भावनाओं को ले सकती हैं;
प्रत्येक देवता वहां निज स्वभावानुसार संसार रचता है,
सकल विभावनाएं सूर्यों के समूह सम संगठित हैं
प्रत्येक अपने वर्ग की किरणों को व्यवस्थित कर संप्रेषित करते हैं।
संकल्प समूहों में भीड़ लगाये हैं और एक चितवन द्वारा धर लिये जाते हैं,
समस्त युगकाल की काया एक है, पूर्णाकाश एक अकेली दृष्टि है:
वहीं परमात्म-तत्त्व की वैश्विक दृष्टि है
और वहीं पर अमर सत्य मन की सीमाएं हैं:
वह रेखा जो इन ध्रुवों को विलग करती एवं जोड़ती है
देवों के परिश्रम के अति समीप है
वह दिक्काल के कठिन श्रम से शाश्वतता को पृथक् करती सीमा बन गयी है।

In her glorious kingdom of eternal light
All-ruler, ruled by none, the Truth supreme,
Omnipotent, omniscient and alone,
In a golden country keeps her measureless house;
In its corridor she hears the tread that comes
Out of the Unmanifest never to return
Till the Unknown is known and seen by men.

चिरन्तन प्रकाश की उसकी भव्य श्री-समृद्धि में
सब शासक हैं, कोई शासित नहीं है, ऋत की देवी सर्वोच्च है,
सर्व-समर्थ, सर्वज्ञ और एकाकी,
एक स्वर्ण देश में अपने अमित धाम में बसती है;
अपने दालानों में वह उस आगन्तुक की चरणचाप पर कान लगाये है
जो अव्यक्त ब्रह्म से बाहर आ फिर कभी लौटकर नहीं जायेगा
जब तक परम अज्ञेय ज्ञात हो मनुष्यों के लिए अन्तर्प्रकाश नहीं हो जाता है।

Above the stretch and blaze of cosmic Sight,
Above the silence of the wordless Thought,
Formless creator of immortal forms,
Nameless, investitured with the name divine,
Transcending Time’s hours, transcending Timelessness,
The Mighty Mother sits in lucent calm
And holds the eternal Child upon her knees,
Attending the day when he shall speak to Fate.

ब्रह्मांडीय पूर्ण दृष्टि के इस विस्तार और तेजस्विता के ऊर्ध्व में,
नि:शब्द विचार-संकल्प के मौन ऊर्ध्व में,
निराकारी स्रष्टा इन अमर आकृतियों का निर्माता,
अनामी होकर भी दिव्यनाम से विभूषित है,
त्रिकाल की घड़ियों से परे, कालातीत से परात्पर
वह सर्वशक्तिमयी जगज्जननी दीप्ति-प्रशान्ति में आसीन है
और उस अमर दिव्य शिशु को निज गोद में धारण किये
उस दिवस की प्रतीक्षा में है जब वह विधाता से वार्तालाप करेगा।

There is the image of our future’s hope;
There is the sun for which all darkness waits,
There is the imperishable harmony;
The world’s contradictions climb to her and are one:
There is the Truth of which the world’s truths are shreds,
The Light of which the world’s ignorance is the shade
Till Truth draws back the shade that it has cast,
The Love our hearts call down to heal all strife,
The Bliss for which the world’s derelict sorrows yearn:
Thence comes the glory sometimes seen on earth,
The visits of Godhead to the human soul,
The Beauty and the dream on Nature’s face.

वहां यही छवि है हमारी भावी आशा की;
वही सूर्य है जिसके हित सकल अन्धकार प्रतीक्षारत है,
वहां ही वह अविनाशी सुसामंजस्य है;
जिस तक संसार की विरोधिताएं उन्नत हो एक हो जाती हैं:
वहीं पर चिर सत्य है जिसके ये संसारी सत्य मात्र चीथड़े हैं,
वह पराज्योति है जिसकी जगत्-अविद्या मात्र परछाईं है, और तब तक रहेगी
जब तक चिर सत्य की देवी निज छाया को अपने में समेट नहीं लेगी,
वह दिव्य प्रेम है जिसे हमारे हृदय संघर्ष मिटाने को टेरते हैं,
वह आत्मानन्द है जिसके हित संसार की पुरानी अपराधी वेदना लालायित है:
वहीं से वह कृपा आती है जो कभी-कभी धरा पर दिखायी दे जाती है,
वहीं से देवता मानव की अन्तरात्मा को भेंटने आता है,
विश्व-प्रकृति के मुख पर वही दिव्य सौन्दर्य और सपना बन रहता है।

There the perfection born from Eternity
Calls to it the perfection born in Time,
The truth of God surprising human life,
The image of God overtaking finite shapes.

वहां पर शाश्वतता से उत्पन्न परिपूर्णता
त्रिकाल में जन्मी पूर्णता को पुकारती है,
प्रभु का चिर-सत्य मानव जीवन को चकित कर जाता है,
प्रभु की छवि अनित्य रूपों में बस जाती है।

There in a world of everlasting Light,
In the realms of the immortal Supermind
Truth who hides here her head in mystery,[661]
Her riddle deemed by reason impossible
In the stark structure of material form,
Unenigmaed lives, unmasked her face and there
Is Nature and the common law of things.

चिर पराज्योति के उस जगत् में,
अमर अतिमन के उस साम्राज्य में,
चिर-सत्य का धाम है जो यहां गुह्यता में निज शीश छिपाये रहता है,
और तर्क-विवेक जिसकी पहेली इन निर्जीव जीवनों में,
जड़ाकार की इन प्रकट आकृतियों में सुलझाने में असमर्थ है,
वहां सत्य, सुबोध निज मुख को खोलकर विचरता है,
और वहां पर यह सत्य स्वभाव है एवं पदार्थों का सहज विधान है।

There in a body made of spirit stuff,
The hearth-stone of the everlasting Fire,
Action translates the movements of the soul,
Thought steps infallible and absolute
And life is a continual worship’s rite,
A sacrifice of rapture to the One.

वहां आत्मतत्त्व से रचित एक देह में,
चिरजीवी देवाग्नि की गृह-वेदी है,
वहां कर्म स्वयं को आत्मगति में संचारित करता है,
विचार के चरण निर्दोष और आत्म-परिपूर्णता लिये हैं।
और जीवन पूजार्चना का सतत संस्कार है,
परमैकम् प्रभु के प्रति एक आह्लाद-भरा समर्पण है।

A cosmic vision, a spiritual sense
Feels all the Infinite lodged in finite form
And seen through a quivering ecstasy of light
Discovers the bright face of the Bodiless,
In the truth of a moment, in the moment’s soul
Can sip the honey-wine of Eternity.

एक विश्व-दर्शन है, एक आध्यात्मिक बोध है
अखिल अनन्त प्रभु को नश्वर आकार में अनुभव करता है
और एक दीप्तिपूर्ण भावसमाधि की सिहरन के मध्य दर्शन पा
यह निराकार प्रभु के उज्ज्वल आनन का संधान करता है,
एक पलभर के सत्य में, एक आत्मा की घड़ी में
यह चिरन्तन की सोमसुधा-रस का घूंट भर लेता है।

A Spirit who is no one and innumerable,
The one mystic infinite Person of his world
Multiplies his myriad personality,
On all his bodies seals his divinity’s stamp
And sits in each immortal and unique.

एक परमात्म-तत्त्व जो कोई नहीं है और असंख्य है,
उसके जग का वह एक गुह्य चिर पुरुषोत्तम है
जो स्वयं को अपने असंख्य विविध व्यक्तित्वों में बहुगुणा कर देता है,
उसके समस्त शरीरों पर उसकी दिव्यता की छाप लगी है
और प्रत्येक में अमर और अद्वितीय विराजमान है।

The Immobile stands behind each daily act,
A background of the movement and the scene,
Upholding creation on its might and calm
And change on the Immutable’s deathless poise.

यह अचल प्रभु प्रत्येक दैनिक कर्म के पीछे स्थित है,
हमारी गति और परिदृश्य की वह एक भूमिका है,
यह सृष्टि को निज शक्ति और शान्ति में धारण किये है
और अविकारी के अमर आसन पर वह विकारी रूप में स्थित है।

The Timeless looks out from the travelling hours;
The Ineffable puts on a robe of speech
Where all its words are woven like magic threads
Moving with beauty, inspiring with their gleam,
And every thought takes up its destined place
Recorded in the memory of the world.

इन यात्री घड़ियों के मध्य से वह अकाल पुरुष बाहर झांकता है;
यह अनिर्वचनीय प्रभु-वाचा का एक चोला पहन लेता है
जिसमें इसी के समस्त शब्द जादुई सूत्रों सम बुने हैं
सुन्दरता से गति करते अपनी दीप्ति से प्रेरित करते हैं,
और इसमें प्रत्येक विचार अपने नियत स्थान पर नियुक्त है
इस संसार के स्मृति-कक्ष में अंकित एवं दर्ज रहता है।

The Truth supreme, vast and impersonal
Fits faultlessly the hour and circumstance,
Its substance a pure gold ever the same
But shaped into vessels for the spirit’s use,
Its gold becomes the wine jar and the vase.[662]

सर्वोच्च परम सत्य, विशाल और अवैयक्तिक
जो निर्दोष भाव से काल की घड़ी और घटना के अन्तर में बैठा है,
इसका सारतत्त्व सदैव समानभाव में विशुद्ध स्वर्ण है
किन्तु जीव-तत्त्व के उपयोग हित विभिन्न पात्रों में ढल जाता है,
यही इसका स्वर्ण पुष्पदान और मदिरापात्र बन जाता है।

All there is a supreme epiphany:
The All-Wonderful makes a marvel of each event,
The All-Beautiful is a miracle in each shape;
The All-Blissful smites with rapture the heart’s throbs,
A pure celestial joy is the use of sense.

वहां पर सब एक सर्वोत्तम दिव्य प्रकाश है:
सर्व-अद़्भुतेश्वर प्रत्येक घटना को एक चमत्कार बना देता है,
सर्व श्रीशोभा प्रत्येक आकार में एक चमत्कार है;
सर्व आनन्दघन प्रभु सकल हृदय धड़कनों को प्रेमावेश से नचाता है,
इन्द्रिय का उपयोग तब एक विशुद्ध स्वर्गिक सुख हो जाता है।

Each being there is a member of the Self,
A portion of the million-thoughted All,
A claimant to the timeless Unity,
The many’s sweetness, the joy of difference
Edged with the intimacy of the One.

प्रत्येक सत्ता वहां पर पुरुषोत्तम का ही अंग है,
असंख्य विचारधारी सर्वभूतेश्वर के ही एक अंश हैं,
अकाल पूर्ण-एकत्व का प्रत्येक अधिकारी है,
उनके हृदयों में रहता माधुर्य, अनेकता में बसा आनन्द
परमैकम् से मेखला सम जुड़ा अभिन्न है।

But who can show to thee Truth’s glorious face?

‘‘किन्तु तुझे अमर सत्य का यशस्वी मुख कौन दिखा सकता है?

Our human words can only shadow her.

हमारे भौतिक शब्द तो उसका प्रतिबिम्ब भर दर्शाते हैं।

To thought she is an unthinkable rapture of light,
To speech a marvel inexpressible.

मनीषी के लिए तो यह चिन्तन से परे की दीप्तिमयी भाव-समाधि है,
वाणी का एक वर्णनातीत चमत्कार है।

O Death, if thou couldst touch the Truth supreme
Thou wouldst grow suddenly wise and cease to be.

हे मृत्युदेव, यदि तू परम सत्य का स्पर्श पा जाता
तो हठात् परमज्ञानी बन जाता और तेरा अस्तित्व मिट जाता।

If our souls could see and love and clasp God’s Truth,
Its infinite radiance would seize our hearts,
Our being in God’s image be remade
And earthly life become the life divine.”

यदि हमारे जीव प्रभु के सत्य को देख प्रेम कर पाते, और धारण कर सकते,
तो इसकी चिर तेजस्विता से हमारे हृदय अधिकृत हो जाते,
हमारी सत्ताएं प्रभु की छवि में पुनर्निर्मित हो जातीं,
और यह पार्थिव जीवन तब दिव्य जीवन में रूपान्तरित हो जाता।’’

Then Death the last time answered Savitri:
“If Truth supreme transcends her shadow here
Severed by Knowledge and the climbing vasts,
What bridge can cross the gulf that she has left
Between her and the dream-world she has made?

तब यमराज ने अन्तिम बार सावित्री को उत्तर दिया:
‘‘यदि सर्वोच्च परम सत्य निज दिव्य ज्ञान से और इन आरोहणकारी विशालताओं से
कटकर यहां निज छाया से उन्नत हो अवतरित हो जाये,
तो उसके और उसके द्वारा रचित इस स्वप्नमाया-जग के मध्य बने
इस घोर गर्त को कौन सेतु बना पाट पायेगा?

Or who could hope to bring her down to men
And persuade to tread the harsh globe with wounded feet,
Leaving her unapproachable glory and bliss,
Wasting her splendour on pale earthly air?

या उस परम सत्य को कौन मानव तक नीचे उतार लायेगा
और उसे आहत चरणों से इस कठोर भूमि पर चलने को बाध्य करेगा,
निज अगम्य यश और आत्मानन्द को त्यागकर,
इस क्षीण पार्थिव परिवेश पर निज श्री-शोभा लुटाने हित?

Is thine that strength, O beauty of mortal limbs,
O soul who flutterest to escape my net?

क्या तुझमें वह शक्ति है, नश्वर काया की हे सुन्दरी,
मेरे जाल से पलायन हित फड़फड़ाती, हे आत्मा?

Who then art thou hiding in human guise?

इस मानव-रूप में छिपी तू कौन है?

Thy voice carries the sound of infinity,
Knowledge is with thee, Truth speaks through thy words;
The light of things beyond shines in thy eyes.

तेरी वाचा में चिरन्तन की ध्वनि गुंजित है,
तेरे पास दिव्य-ज्ञान भी है, चिर-सत्य तेरे शब्दों में बोलता है;
तेरे नेत्रों में अलौकिक तत्त्वों की ज्योति प्रकाशमान है।

But where is thy strength to conquer Time and Death?[663]

किन्तु इस काल और विधाता को जय करने हेतु तेरी शक्ति कहां है?

Hast thou God’s force to build heaven’s values here?

यहां पर स्वर्गिक गरिमाएं सर्जन करने की क्या तुझमें दिव्य सामर्थ्य है?

For truth and knowledge are an idle gleam,
If Knowledge brings not power to change the world,
If Might comes not to give to Truth her right.

क्योंकि सत्य और ज्ञान स्वयं में एक फलहीन ज्योति-किरण हैं
पराज्ञान बिना शक्ति के इस संसार को बदल नहीं सकता है,
और सामर्थ्यहीन अमर सत्य निज अधिकार से च्युत हो जाता है।

A blind Force, not Truth has made this ignorant world,
A blind Force, not Truth orders the lives of men:
By Power, not Light, the great Gods rule the world;
Power is the arm of God, the seal of Fate.

इस अज्ञानी संसार की रचनाकार एक अंधी महाशक्ति है, अमर सत्य नहीं;
एक अन्धी महाशक्ति मानव जीवनों की संचालिका है, अमर सत्य नहीं:
देवता बल सामर्थ्य से इस संसार पर शासन करते हैं, सत्य-प्रकाश से नहीं;
दिव्य शक्ति ही प्रभु की भुजा है, विधाता की मुहर है।

O human claimant to immortality,
Reveal thy power, lay bare thy spirit’s force,
Then will I give back to thee Satyavan.

अमरतत्त्व पर अधिकार दिखाती हे मानवीय आत्मा,
निज शक्ति को प्रकटा, निज आत्म-सत्ता की सामर्थ्य दिखा,
केवल तभी मैं तुझे सत्यवान् लौटा दूंगा।

Or if the Mighty Mother is with thee,
Show me her face that I may worship her;
Let deathless eyes look into the eyes of Death,
An imperishable Force touching brute things
Transform earth’s death into immortal life.

और यदि सर्वसमर्थ मां भगवती तेरे साथ है,
तो मुझे उसका दर्शन करा जिससे मैं भी उसे पूज लूं;
उन अमर नेत्रों के दर्शन इस मृत्यु देव के नयनों को भी करा दे,
एक अविनाशी पराशक्ति का स्पर्श पा इन अनगढ़ वस्तुओं का
पार्थिव धरा की नश्वरता अमर जीवन में परिवर्तित हो जायेगी।

Then can thy dead return to thee and live,
The prostrate earth perhaps shall lift her gaze
And feel near her the secret body of God
And love and joy overtake fleeing Time.”

तभी तेरा मृतक सहचर तेरे जीवन में लौट आयेगा।
तब यह दलित धरा सम्भव है निज दृष्टि ऊर्ध्व में उठा पायेगी
और प्रभु की गुह्य काया को अपने समीप अनुभव कर पायेगी।
और इस पलायनकारी काल के चरणों को प्रेम एवं हर्ष से बांध पायेगी।’’

 

And Savitri looked on Death and answered not.
और सावित्री ने यम की ओर ताका पर उत्तर नहीं दिया।
Almost it seemed as if in his symbol shape
The world’s darkness had consented to Heaven-light
And God needed no more the Inconscient’s screen.

वह अपने प्रतीक रूप में लगभग ऐसा दिख रहा था
कि उस विश्व-अन्धकार ने स्वर्गिक प्रकाश को स्वीकार लिया था।
और प्रभु का स्वयं को अचित् पट के पीछे छिपाना आवश्यक नहीं रहा।

A mighty transformation came on her.

सावित्री में एक शक्तिशाली तत्त्वान्तरण होने लगा।

A halo of the indwelling Deity,
The Immortal’s lustre that had lit her face
And tented its radiance in her body’s house,
Overflowing made the air a luminous sea.

अन्तरस्थ परमादेवी के एक प्रभामण्डल ने,
अमर दिव्यता की तेजस्विता ने उसके मुख को ज्योतित कर दिया
उसके काया-गेह में अपने तेज का खेमा गाड़ दिया,
उस दिव्य प्रकाश ने उमड़ सकल वातावरण को ज्योति-सागर में बदल दिया।

In a flaming moment of apocalypse
The Incarnation thrust aside its veil.

इस रहस्योद़्घाटन के एक अग्निल मुहूर्त में
उस अवतारी आत्मा ने पर्दा हटा स्वयं को प्रकटा दिया।

A little figure in infinity
Yet stood and seemed the Eternal’s very house,
As if the world’s centre was her very soul
And all wide space was but its outer robe.[664]

अभी भी अनन्तता में एक लघु आकार खड़ा था
तथापि अमरता अपने निज भवन में आसीन होती लग रही थी,
जैसे कि इस सृष्टि का केन्द्र स्वयं उसकी अपनी आत्मा हो
और यह विस्तृत आत्माकाश उसी के निज-परिधान का फैलाव था।

A curve of the calm hauteur of far heaven
Descending into earth’s humility,
Her forehead’s span vaulted the Omniscient’s gaze,
Her eyes were two stars that watched the universe.

सुदूर स्वर्ग के शान्त दर्प का एक कोना
पृथ्वी की विनम्र दीनता पर उतर आया,
सावित्री के मस्तक का विस्तार चिरन्तन की चितवन को छलांग पार कर गया,
उसके नेत्र दो तारों समान इस विश्व का निरीक्षण कर रहे थे।

The Power that from her being’s summit reigned,
The Presence chambered in lotus secrecy,
Came down and held the centre in her brow
Where the mind’s Lord in his control-room sits;
There throned on concentration’s native seat
He opens that third mysterious eye in man,
The Unseen’s eye that looks at the unseen,
When Light with a golden ecstasy fills his brain
And the Eternal’s wisdom drives his choice
And eternal Will seizes the mortal’s will.

उसकी सत्ता के शिखर पर आसीन महाशक्ति का शासन था,
कमलासन में गुह्यता पर विराजमान यह परमा उपस्थिति
अब अवतरित हो उसके भ्रूमध्य को धारण किये थी
जहां पर मन का स्वामी निज-नियन्त्रण कक्ष में आसीन था;
वहीं निज समाधि में एकाग्रता में अधिष्ठित
वह दैवीशक्ति मानव में गुह्य तृतीय नेत्र को उद़्घाटित कर देती है,
यह अगोचर दिव्य नेत्र है जो अदृश्य को देख सकता है
जब पराज्योति एक स्वर्णिम दिव्य हर्ष से उसकी बुद्धि को भर देती है
और चिरन्तन की प्रज्ञा उसकी कामनाओं का संचालन करती है
और चिरन्तन का पूर्ण संकल्प मानव संकल्प को अधिकृत कर लेता है।

It stirred in the lotus of her throat of song,
And in her speech throbbed the immortal Word,
Her life sounded with the steps of the World-Soul
Moving in harmony with the cosmic Thought.

अब यह शक्ति उसके संगीतमय कण्ठ से गतिशील हो उठी,
और सावित्री की वाचा अमर पराशब्द से स्पन्दित हो गयी,
उसके प्राण में अब विश्वात्मा की पग-ध्वनि गुंजित थी
और यह विश्व संकल्प से एकताल हो समस्वरता में गतिशील थी।

As glides God’s sun into the mystic cave
Where hides his light from the pursuing gods,
It glided into the lotus of her heart
And woke in it the Force that alters Fate.

जैसे कि प्रभु का सूर्य उस गुह्य अन्तर-कन्दरा में धीमी गति से सरकता है
जहां पर उसका प्रकाश पीछे लगे देवताओं से छिप रहता है,
वैसे ही दिव्य महिमा सावित्री के हृदय-कमल पर फिसलती आयी
और हृदय की सोयी आत्मशक्ति को जगा दिया जो परम विधान बदल सकी।

It poured into a navel’s lotus depth,
Lodged in the little life-nature’s narrow home,
On the body’s longings grew heaven-rapture’s flower
And made desire a pure celestial flame,
Broke into the cave where coiled World-Energy sleeps
And smote the thousand-hooded serpent Force
That blazing towered and clasped the World-Self above,
Joined Matter’s dumbness to the Spirit’s hush
And filled earth’s acts with the Spirit’s silent power.

अब वह उसके नाभि-चक्र की गहराई में उंडेल दी गयी,
सीमित प्राण-प्रकृति के लघु घेरे में बस गयी,
शारीरिक लालसाओं पर स्वर्गिक आनन्द के पुष्प प्रस्फुटित हो उठे
जिसने कामना को एक अलौकिक ज्वाला में बदल दिया,
अब यह उस गुह्य कन्दरा में जहां पार्थिव ऊर्जा सोती है प्रवेश कर गयी
और सहस्त्रफनी शक्तिशाली कुण्डलिनी शक्ति को आघात कर जगा दिया
जो प्रज्वलित हो खड़ी हो गयी और ऊर्ध्व में विश्वात्मा को जा धर लिया,
जिसने जड़तत्त्व की मूढ़ता को आत्मा की मूकता से जोड़ दिया
और धरा के कार्यों का परमात्मा की नीरव शक्ति से भर दिया।

Thus changed she waited for the Word to speak.

इस प्रकार रूपान्तरित वह परावाचा की प्रतीक्षा करने लगी।

Eternity looked into the eyes of Death,
And Darkness saw God’s living Reality.

चिरन्तनता ने महामृत्यु के नेत्रों में देखा
और उस विश्व-अन्धकार ने प्रभु की जीवन्त यथार्थता को देख लिया।

Then a Voice was heard that seemed the stillness’ self
Or the low calm utterance of infinity[665]
When it speaks to the silence in the heart of sleep.

तब एक देववाणी सुनायी दी जो नीरवता की आत्मा सम थी
या चिरन्तन की मद्धिम शान्त उच्चारण सम थी
जब वह निद्रा के गुह्य अन्तर में मौन से वार्तालाप करती है।

“I hail thee almighty and victorious Death,
Thou grandiose Darkness of the Infinite.

‘‘हे विजयी, सर्वबली मृत्युदेव, मैं तेरा अभिनन्दन करती हूं,

चिरन्तन प्रभु का तू प्रतापी अन्धकार रूप है।
O Void that makest room for all to be,
Hunger that gnawest at the universe
Consuming the cold remnants of the suns
And eat’st the whole world with thy jaws of fire,
Waster of the energy that has made the stars,
Inconscience, carrier of the seeds of thought,
Nescience in which All-Knowledge sleeps entombed
And slowly emerges in its hollow breast
Wearing the mind’s mask of bright Ignorance.

हे महाशून्य तू समस्त भावी हित स्थान बनाता है
तू घोर क्षुधा है जो विश्व को कुतरता रहता है
और आदित्यों के शीतल अवशेषों का भोक्ता है
और सकल संसार को निज अग्निल दाढ़ों से चबा जाता है,
तू उस ऊर्जा का जिसने तारामंडल का सर्जन किया है अपक्षयकर्ता है,
असत् अचित् है, संकल्प के बीजाणु का धारणकर्ता है,
वह घोर निश्चेतना है जिसमें सकल ज्ञान दबा हुआ सोया है
और फिर शनै: शनै: इसके खोखले वक्ष से उदित होता है
यह मन के ऊपर प्रतिभाशाली अविद्या का मुखौटा लगाये आता है।

Thou art my shadow and my instrument.

हे यम, तू मेरी ही छाया है और मेरा यन्त्र है।

I have given thee thy awful shape of dread
And thy sharp sword of terror and grief and pain
To force the soul of man to struggle for light
On the brevity of his half-conscious days.

मैंने ही तुझे भय का भीषण आकार दिया है
और दुःख और पीड़ा और आतंक की तीक्ष्ण कटार सौंपी है
जिससे तू मानव की आत्मा को प्रकाश हित संघर्ष करने
उसके अर्धचेतन दिवसों की क्षरता के मध्य बाध्य कर दे।

Thou art his spur to greatness in his works,
The whip to his yearning for eternal bliss,
His poignant need of immortality.
Live, Death, awhile, be still my instrument.

उसके कर्मों को महत्त्व प्रदान करने तू उसे एड़ लगाता है,
उसके शाश्वत अमरानन्द की लालसा हित तू चाबुक मारता है,
तू अमरत्व की उसकी आवश्यकता को गहन-गम्भीर बना देता है
हे मृत्यु, अभी तू कुछ काल और जीवित रह, मेरा यन्त्र बन कार्य कर।

One day man too shall know thy fathomless heart
Of silence and the brooding peace of Night
And grave obedience to eternal Law
And the calm inflexible pity in thy gaze.

एक दिन मानव तेरे अगाध, नीरव हृदय को अवश्य जान जायेगा
और शान्ति की समाधि में मग्न कालरात्रि का ज्ञान पायेगा
और शाश्वत विधान के अनुपालन की गम्भीरता को
और तेरी दृष्टि में छिपी स्थिर शान्त करुणा को जानेगा।

But now, O timeless Mightiness, stand aside
And leave the path of my incarnate Force.

किन्तु अभी, हे अकाल महाबली, तू एक ओर हट जा
और मेरी अवतारी महाशक्ति का मार्ग छोड़, दूर हो जा।

Relieve the radiant god from thy black mask;
Release the soul of the world called Satyavan
Freed from thy clutch of pain and ignorance
That he may stand master of life and fate,
Man’s representative in the house of God,
The mate of Wisdom and the spouse of Light,
The eternal bridegroom of the eternal bride.”

अपने काले मुखौटे से मेरे तेजस्वी देवता को मुक्त कर दे:
संसार जिसे सत्यवान् कह पुकारता है उस आत्मा को छोड़ दे
जिससे वह तेरी पीड़ा और अज्ञान के चंगुल से स्वतन्त्र हो
जीवन और नियति के ऊपर अधिपति बन खड़ा हो जाये,
प्रभु के भवन में वह मानव का प्रतिनिधि है,
प्रज्ञा का सहचर और दिव्य ज्योति का पति है,
शाश्वत वधू का शाश्वत वर है।’’

She spoke; Death unconvinced resisted still,
Although he knew refusing still to know,[666]
Although he saw refusing still to see.

सावित्री की वाणी गूंजी; पर मृत्युदेव का विश्वास नहीं जागा और अड़ा रहा,
यद्यपि वह जान गया था पर जानने से इन्कार कर रहा था,
यद्यपि वह देख रहा था पर देखने को अस्वीकार रहा था।

Unshakable he stood claiming his right.

अचल वह निज अधिकार का दावा करता अडिग खड़ा था।

His spirit bowed; his will obeyed the law
Of its own nature binding even on Gods.

उसकी आत्मचेतना नमित थी; किन्तु उसका संकल्प विधान का आज्ञाकारी था,
यह उसके अपने स्वभाव का विधान था जो देवों पर भी बाध्य होता है।

The two opposed each other face to face.

दोनों एक-दूसरे के विरोधी आमने-सामने खड़े थे।

His being like a huge fort of darkness towered;
Around it her life grew, an ocean’s siege.

यम की सत्ता एक अन्धकार के दुर्ग समान आकाश छू रही थी;
इसके चारों ओर सावित्री की दीप्ति एक सागर सम उमड़ती घेरा डाले थी।

Awhile the Shade survived defying heaven:
Assailing in front, oppressing from above,
A concrete mass of conscious power, he bore
The tyranny of her divine desire.

कुछ देर वह प्रेत-छाया दिव्यता की अवज्ञा करती खड़ी रही:
सामने से आक्रमण करती, ऊपर से दबाव डालती,
एक सचेत शक्ति की स्थूल ज्योतिपुंज-सी,
उसकी दिव्य कामना की उस यन्त्रणा को, वह खड़ा सहता रहा।

A pressure of intolerable force
Weighed on his unbowed head and stubborn breast;
Light like a burning tongue licked up his thoughts,
Light was a luminous torture in his heart,
Light coursed, a splendid agony, through his nerves;
His darkness muttered perishing in her blaze.

सहनीय महाशक्ति का एक दबाव था
जो उसके उद्दण्ड शीश और दृढ़ वक्ष को दबा रहा था;
परा-ज्योति ने एक ज्वलन्त जिह्वा सम यम के विचारों को चाट लिया था,
यह ज्योति उसके हृदय में एक ज्वलन्त यन्त्रणा थी,
यह ज्योति, एक भव्य पीड़ा सम उसकी नाड़ियों में घूम रही थी;
उसकी ज्वाला में नष्ट होता यम का अन्धकार भुनभुना रहा था।

Her mastering Word commanded every limb
And left no room for his enormous will
That seemed pushed out into some helpless space
And could no more re-enter but left him void.

सावित्री का प्रभुतापूर्ण परम-वचन उसके प्रत्येक अंग पर शासन कर रहा था
और उसके निजी घोर संकल्प हित कोई स्थान नहीं बचा था,
वह असहाय सम किसी आकाश में धकेल दिया गया लग रहा था
और अब उसके अन्तर में प्रवेश नहीं पा सका और उसे रीता छोड़ गया।

He called to Night but she fell shuddering back,
He called to Hell but sullenly it retired:
He turned to the Inconscient for support,
From which he was born, his vast sustaining self:
It drew him back towards boundless vacancy
As if by himself to swallow up himself:
He called to his strength, but it refused his call.

उसने निज अन्धरात्रि को पुकारा किन्तु वह कांपती पीछे हट गयी,
उसने नरक को पुकारा किन्तु उसने निराश हो अवकाश ले लिया:
वह निज जड़-अचित् की ओर सहारे हित मुड़ा,
जिससे वह जन्मा था, जो उसके आत्म-अस्तित्व का विशाल आधार था,
किन्तु उसने इसे अपनी अनन्त शून्यता में पीछे खींचा
मानों वह स्वयं को अपने ही आत्मतत्त्व के अन्तर में निगल लेना चाहता था
उसने अपने बल को पुकारा, किन्तु इसने उसकी पुकार को ठुकरा दिया।

His body was eaten by light, his spirit devoured.

यम की काया ज्योति द्वारा निगल ली गयी, उसकी आत्मसत्ता का भक्षण हो गया।

At last he knew defeat inevitable
And left crumbling the shape that he had worn,
Abandoning hope to make man’s soul his prey
And force to be mortal the immortal spirit.

अन्त में वह जान गया कि पराजय निश्चित है
और उस आकार को जो उसने धारण कर रखा था क्षार-क्षार होते छोड़ चला गया,
मानव की आत्मा को अपना शिकार बनाने की आशा उसने त्याग दी
और अमर चैत्य सत्ता को मर्त्यता में बांध रखने की इच्छा भी।

Afar he fled shunning her dreaded touch
And refuge took in the retreating Night.

अब सावित्री के स्पर्श से बचने को, भयभीत वह दूर पलायन कर गया
और उस पीछे लौटती कालरात्रि में शरण ले छिप गया।

In the dream twilight of that symbol world[667]
The dire universal Shadow disappeared
Vanishing into the Void from which it came.

उस प्रतीक लोक के स्वप्निल धूमिल प्रकाश में
वह भीषण वैश्विक मृत्युछाया लोप हो गयी
जिस शून्य से यह निकली थी उसी में विलुप्त हो गयी।

As if deprived of its original cause,
The twilight realm passed fading from their souls,
And Satyavan and Savitri were alone.

मानों अपने आदि कारण से च्युत हो,
वह द्वाभा का राज्य उनकी आत्माओं से क्षीण हो मिट गया,
अब सत्यवान् और सावित्री वहां अकेले थे।

But neither stirred: between those figures rose
A mute invisible and translucent wall.

किन्तु दोनों में से कोई हिला नहीं; उन दो आकृतियों के मध्य जैसे
एक मूक अदृश्य और पारदर्शी दीवार उठ आयी।

In the long blank moment’s pause nothing could move:
All waited on the unknown inscrutable Will.[668]

उस दीर्घ रिक्त क्षण के ठहराव में कुछ भी गति नहीं कर सका:
सकल अज्ञात निगूढ़ दैवी संकल्प की प्रतीक्षा में स्थिर था।

END OF CANTO FOUR
END OF BOOK THEN