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At the Feet of The Mother

SAVITRI Book Twelve. Epilogue (Eng-Hindi)

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BOOK TWELVE. THE RETURN TO EARTH

Epilogue. The Return to Earth

 

Out of abysmal trance her spirit woke.

उस घोर अगाध समाधि से सावित्री की आत्मा जागी।

Lain on the earth-mother’s calm inconscient breast
She saw the green-clad branches lean above
Guarding her sleep with their enchanted life,
And overhead a blue-winged ecstasy
Fluttered from bough to bough with high-pitched call.

धरती माता की शान्त अचित् छाती पर लेटे हुए उसने ऊर्ध्व में देखा
अपने ऊपर हरित परिधान में लिपटी शाखाओं को नीचे झुके पाया
जो अपने मन्त्रमुग्ध जीवन से उसकी सुषुप्ति में रक्षा कर रही थीं,
और उसके ऊपर एक नीलपंखी प्रेममग्न विहगी
उच्च स्वर में पुकारती डाल-डाल फुदक रही थी।

Into the magic secrecy of the woods
Peering through an emerald lattice-window of leaves,
In indolent skies reclined, the thinning day
Turned to its slow fall into evening’s peace.

उस वनस्थली के जादुई रहस्य में
पत्तों की एक मरकती जाली की खिड़की के मध्य से
झांकते शिथिल गगन अधलेटे से पसरे थे, क्षीण होता दिवस
सन्ध्या की शान्ति में बदलता हुआ धीरे-धीरे डूब रहा था।

She pressed the living body of Satyavan:
On her body’s wordless joy to be and breathe
She bore the blissful burden of his head
Between her breasts’ warm labour of delight,
The waking gladness of her members felt
The weight of heaven in his limbs, a touch
Summing the whole felicity of things,
And all her life was conscious of his life
And all her being rejoiced enfolding his.

उसने सत्यवान् की जीवित काया को आलिंगन में भर दबायाः
उसके जीवित होने और श्वास भरने के शब्दातीत हर्ष में भर
अपनी देह पर सावित्री ने उसके शीश का सुखदायी बोझ उठा लिया
अपने स्तनों के मध्य आनन्द के उस तप्त श्रम को सह लिया,
जाग्रत् होने की प्रसन्नता में उसके शरीर के अन्य अंगों ने
सत्यवान् के अंगों को स्वर्गिक भार सम अनुभव किया,
उसके एक स्पर्श ने वस्तुओं में बसी सकल आनन्दानुभूति का सार दे दिया,
उसका सम्पूर्ण प्राण उसके जीवन-प्राण के प्रति सचेत था
और उसकी सम्पूर्ण सत्ता उसकी देह को लपेट मुदित थी।

The immense remoteness of her trance had passed;
Human she was once more, earth’s Savitri,
Yet felt in her illimitable change.

उसकी समाधि की घोर ऐकान्तिकता अब समाप्त थी;
एक बार फिर से वह धरा की मानवी सावित्री बनी
तथापि निज अन्तर में असीम परिवर्तन अनुभव कर रही थी।

A power dwelt in her soul too great for earth,
A bliss lived in her heart too large for heaven.
Light too intense for thought and love too boundless
For earth’s emotions lit her skies of mind
And spread through her deep and happy seas of soul.

इस पृथ्वी के लिए जो अति महत्तर है ऐसी आत्मशक्ति उसके अन्तर में थी,
स्वर्ग के लिए जो अतिविशाल थी ऐसी आनन्दानुभूति उसके हृदय में थीः
विचार के लिए अति तीव्र प्रकाश से प्रकाशित उसके मनाकाश को
एक असीम प्रेम ने प्रदीप्त कर दिया, जो पार्थिव भावनाओं हित अनन्त था
और यह उसकी आत्मा के गहन प्रसन्न सागरों तक फैल गया।

All that is sacred in the world drew near
To her divine passivity of mood.

संसार का सकल पावन पुनीत उसके समीप खिंच आया
यह उसके दिव्य मनोभाव की उदासीनता से आकर्षित था।

A marvellous voice of silence breathed its thoughts.

अन्तर में नीरवता की अद़्भुत ध्वनि निज विचारों को गुंजा रही थी।

All things in Time and Space she had taken for hers;[715]
In her they moved, by her they lived and were,
The whole wide world clung to her for delight,
Created for her rapt embrace of love.

दिक्काल के समस्त पदार्थों को उसने अपना बना लिया था;
उसके अन्दर ये गतिशील थे, उसमें जीवन धारते और रहते,
यह समस्त विशाल जगत् सुख-प्राप्ति हेतु उससे जुड़ गया,
जैसे उसके तल्लीन प्रेमालिंगन हेतु इसे रचा गया हो।

Now in her spaceless self released from bounds
Unnumbered years seemed moments long drawn out,
The brilliant time-flakes of eternity.

अब उसके बन्धनों से मुक्तावस्था के आत्माकाश में
कोटि-कोटि वर्ष भी घटकर लम्बे क्षणों समान लगते,
शाश्वत के उज्ज्वल दीप्तिमान काल की फुहारों सम दिखते।

Outwingings of a bird from its bright home,
Her earthly morns were radiant flights of joy.

अपने उज्ज्वल गेह से निकले एक पखेरू की उड़ान समान
सावित्री के पार्थिव प्रभात हर्षभरी दीप्त उड़ान भरते।

Boundless she was, a form of infinity.

वह असीम, शाश्वतता का एक आकार थी।

Absorbed no longer by the moment’s beat
Her spirit the unending future felt
And lived with all the unbeginning past.

क्षणिक धड़कनों में अब वह तल्लीन नहीं होती
उसकी चैत्य सत्ता अब अनन्त भावी का अनुभव करती
और समस्त अनादि अतीत के साथ जीवन बिताती।

Her life was a dawn’s victorious opening,
The past and unborn days had joined their dreams,
Old vanished eves and far arriving noons
Hinted to her a vision of prescient hours.

उसका जीवन एक नव उषा का विजयी उद़्घाटन था,
जिसमें अतीत और अजन्मे दिवसों ने अपने सपनों को जोड़ लिया था,
पुरातन विलीन संध्याएं और सुदूर की आगामी दोपहरियां
पूर्वाभासी घंटों का एक दिग्दर्शन उसे दिखा, संकेत दे गयीं।

Supine in musing bliss she lay awhile
Given to the wonder of a waking trance;
Half-risen then she sent her gaze around,
As if to recover old sweet trivial threads,
Old happy thoughts, small treasured memories,
And weave them into one immortal day.

सुख चिन्तन में डूबी वह कुछ देर शिथिल लेटी रही
एक जाग्रत् समाधि के चमत्कार में खोयी रही;
तब अधलेटी हो उसने निज दृष्टि चहुं ओर घुमायी,
जैसे कि पुराने मधुर बहिर्सूत्रों को खोज रही हो,
पुराने सुखी मुद्रित विचारों को, स्मृतियों की नन्हीं निधियों को,
और उन्हें एक अमर दिवस में गूंथ रही हो।

Ever she held on the paradise of her breast
Her lover charmed into a fathomless sleep,
Lain like an infant spirit unaware
Lulled on the verge of two consenting worlds.

अपने वक्ष पर वह निज प्रिय को धरे थी,
स्वर्ग सम उसकी छाती से चिपका उसका प्रेमी अगाध निद्रा की
मोहिनी में एक शिशु आत्मा सम निश्चिन्त सो रहा था,
दो अनुमन्ता लोकों के तट पर अबोध मन्त्रमुग्ध लेटा।

But soon she leaned down over her loved to call
His mind back to her with her travelling touch
On his closed eyelids; settled was her still look
Of strong delight, not yearning now, but large
With limitless joy or sovereign last content,
Pure, passionate with the passion of the gods.

किन्तु शीघ्र ही वह नीचे झुकी अपने प्रियतम को पुकारने
अपने उड़ते कोमल स्पर्श से उसकी बन्द पलकों को
सहलाया, उसके मन को अपनी ओर लौटा लाने को;
शक्तिशाली आनन्द से पूरित उसकी दृष्टि स्थिर-शान्त इसमें अब लालसा नहीं थी,
उदार विशाल असीम प्रसन्नता से पूर्ण या सर्वोच्च अन्तिम सन्तोष से भरी,
वह विशुद्ध असीम प्रसन्नता से पूर्ण या सर्वोच्च अन्तिम सन्तोष से भरी,
वह विशुद्ध उत्साही, देवताओं के तेज से तेजस्विनी थी।

Desire stirred not its wings; for all was made
An overarching of celestial rays
Like the absorbed control of sky on plain,
Heaven’s leaning down to embrace from all sides earth,[716]
A quiet rapture, a vast security.

काम देवता ने निज पंख नहीं फड़फड़ाये, कामनाएं शान्त थीं;
क्योंकि आज सर्वव्यापी अलौकिक किरणों का एक तोरण छाया हुआ था
जैसे कि उस क्षेत्र को मंत्रमुग्ध नभ ने पूरी तरह नियन्त्रित कर लिया हो,
स्वर्ग चहुं ओर से पृथ्वी का आलिंगन करने नीचे झुक आया,
एक शान्त आत्मरित, एक विशाल सुरक्षा दे रही थी।

Then sighing to her touch the soft-winged sleep
Rose hovering from his flower-like lids and flew
Murmurous away. Awake, he found her eyes
Waiting for his, and felt her hands, and saw
The earth his home given back to him once more
And her made his again, his passion’s all.

तब सावित्री के स्पर्श से उच्छ्वास लेती मृदु पंखी सुषुप्ति
सत्यवान् की कुसुम-पलकों पर से मंडराती-सी उठी
और भनभनाती दूर उड़ गयी। वह जागा और सावित्री के
नेत्रों को प्रतीक्षा करते पाया, उसके प्रेमी कर-स्पर्श का अनुभव पाया,
और देखा कि यह धरा उसका घर एक बार फिर उसे मिल गया था
और अनुराग की देवी ने उसे फिर से अपना बना लिया था।

With his arms’ encircling hold around her locked,
A living knot to make possession close,
He murmured with hesitating lips her name,
And vaguely recollecting wonder cried,
“Whence hast thou brought me captive back, love-chained,
To thee and sunlight’s walls, O golden beam
And casket of all sweetness, Savitri,
Godhead and woman, moonlight of my soul?

उसने निज भुजाओं के घेरे में उसे जकड़ लिया,
निज अधिकार से और समीप लाने को एक जीवित ग्रन्थि से बांध लिया,
तब झिझकते अधरों से उसका नाम फुसफुसाया,
और उस अस्पष्ट चमत्कार को याद करते हुए कहा,
‘‘हे स्वर्ण रश्मि, कहां से तू मुझे बन्दी बना लौटा लायी है,
प्रेम-श्रृंखला से बांध, इन धूप ज्योतित प्राचीरों में अपने पास ले आयी है।
सकल माधुर्य से भरी मेरी मधु मंजूषा, सावित्री,
तू देवी और नारी है, या मेरे आत्मारूपी चन्द्र की चांदनी?

For surely I have travelled in strange worlds
By thee companioned, a pursuing spirit,
Together we have disdained the gates of night;
I have turned away from the celestial’s joy
And heaven’s insufficient without thee.

तू मेरे साथ निश्चय ही विचित्र लोकों की यात्रा करती
ओ मेरी सहचरी आत्मा, मुझे अनुसरती चल रही थी
घोर कालरात्रि के द्वारों को हमने अवज्ञापूर्वक एक साथ पार किया था।
तेरे बिना मैंने सुरलोकों के सुखों से मुंह मोड़ लिया
क्योंकि तेरे बिना मेरे लिए स्वर्ग रसहीन था।

Where now has passed that formidable Shape
Which rose against us, the Spirit of the Void,
Claiming the world for Death and Nothingness,
Denying God and Soul? Or was all a dream
Or a vision seen in a spiritual sleep,
A symbol of the oppositions of Time
Or a mind-lit beacon of significance
In some stress of darkness lighting on the Way
Or guiding a swimmer through the straits of Death,
Or finding with the succour of its ray
In a gully mid the crowded streets of Chance
The soul that into the world-adventure came,
A scout and voyager from Eternity?”

वह भीषण घोर देवाकार अब कहां खो गया,
वह भयंकर असत्-शून्य की प्रेतात्मा, जो हमारे विरुद्ध खड़ा
इस संसार पर महामृत्यु औ’ नगण्य असार अनस्तित्व का
अधिकार मांगता, ईश्वर और जीव दोनों को नकार रहा था?
या यह मात्र एक सपना या एक आत्म-सुषुप्ति में देखा एक अन्तर्दर्शन था,
इस दिक्काल की विरोधी शक्तियों का एक प्रतीकाकार था,
या यह एक महत्त्वपूर्ण दृश्य था जिसे एक मन-दीप ने प्रज्वलित हो
मृत्यु-महापथ के किसी तनावपूर्ण अन्धकार में प्रकाशित कर दिया था,
या मृत्यु की संकरी खाड़ी के मध्य एक तैराक का मार्गदर्शन कर रहा था,
जो वह निज किरण की सहायता से खोज रहा था
दैवनियति की भीड़भरी सड़कों की एक गली में
उस चैत्यात्मा को जो इस संसार में धीर-साहसी यात्रा पर आयी थी,
चिरन्तनता से धरा पर एक पथखोजी बालचर और पर्यटक बन उतरी थी?’’

But she replied, “Our parting was the dream;
We are together, we live, O Satyavan.

किन्तु सावित्री ने कहा, ‘‘हमारा बिछोह एक दुःस्वप्न था;
अब हम साथ हैं, हम जीवित हैं, मेरे सत्यवान्।

Look round thee and behold, glad and unchanged[717]
Our home, this forest, with its thousand cries
And the whisper of the wind among the leaves
And, through rifts in emerald scene, the evening sky,
God’s canopy of blue sheltering our lives,
And the birds crying for heart’s happiness,
Winged poets of our solitary reign,
Our friends on earth where we are king and queen.

उठो अपने चहुं ओर निहारो, इस प्रसन्न अपरिवर्तित हमारे धाम को,
सहस्त्रों पुकारों से बसे इस अपने प्रिय वन के घर को
और पत्तियों से खेलते पवन की मरमरी ध्वनि सुनो,
और देखो हरीतिमा की फाटनों से झांकते इस संध्याकाश को,
जो प्रभु का वितान बना निज नीलिमा से हमारे जीवनों को सुरक्षा देता है,
और मुदित हृदय से गाते इन पक्षियों को सुनो,
ये हमारे इस एकान्त साम्राज्य के पंखधारी चारण हैं,
ये हमारी धरती के मित्र हैं जहां हम राजा-रानी हैं।

Only our souls have left Death’s night behind
Changed by a mighty dream’s reality,
Illumined by the light of symbol worlds
And the stupendous summit self of things,
And stood at Godhead’s gates limitless, free.”

हमारी आत्माओं पर से यम की कालरात्रि का पाश दूर हो गया है
एक शक्तिशाली स्वप्न की यथार्थता द्वारा सब परिवर्तित हो गया है,
प्रतीक-लोकों की अलौकिक ज्योति से प्रकाशमान
और भौतिक तत्त्वों के विशाल आत्मशिखर पर तेजोमय हो,
हमारी चैत्यात्माएं, असीमता में परमात्मा के द्वारों पर उन्मुक्त खड़ी थीं।’’

Then filled with the glory of their happiness
They rose and with safe clinging fingers locked
Hung on each other in a silent look.

तब अपने हर्षातिरेक की महिमा में डूबे वे उठे
और एक-दूसरे को सुरक्षा देते करों की अंगुलियां पकड़े
एक मूक दृष्टि में बंधे वे सहारा देते खड़े हो गये।

But he with a new wonder in his heart
And a new flame of worship in his eyes:
“What high change is in thee, O Savitri? Bright
Ever thou wast, a goddess still and pure,
Yet dearer to me by thy sweet human parts
Earth gave thee making thee yet more divine.
My adoration mastered, my desire
Bent down to make its subject, my daring clasped,
Claiming by body and soul my life’s estate,
Rapture’s possession, love’s sweet property,
A statue of silence in my templed spirit,
A yearning godhead and a golden bride.

किन्तु सत्यवान् के हृदय में एक नव आद़्भुत्य लहरा उठा
और उसके नेत्रों में पूजा का एक नवदीप जल उठाः
‘‘हे सावित्री, तेरा यह कैसा उन्नत परिवर्तित रूप है?
प्रतिभाशालिनी तू सदैव थी, तब भी तू देवी औ’ पुनीत थी,
फिर भी तू मुझे मधुर मानवी अंगों में और अधिक प्रिय लगती
जो रूप तुझे पृथ्वी ने दिया उससे कहीं अधिक तू दिव्यतर थी,
पर मैं अपनी भक्ति को वश में कर, कामना के वशीभूत हो नीचे झुक जाता
और अपने विषय को निज आलिंगन में भर लेने का साहस करता,
देह और प्राण को अधिकृत कर अपनी जीवन-सम्पत्ति पर अधिकार करता,
यह मेरे आह्लाद का अधिकार होता, अनुरागी हृदय की मेरी मधु सम्पदा,
तू मेरी आत्मा के मन्दिर में स्थापित एक शान्त प्रतिमा,
एक लालायित देवी और एक स्वर्ण वधू थी।

But now thou seemst almost too high and great
For mortal worship; Time lies below thy feet
And the whole world seems only a part of thee,
Thy presence the hushed heaven I inhabit,
And thou lookst on me in the gaze of the stars,
Yet art the earthly keeper of my soul,
My life a whisper of thy dreaming thoughts,
My morns a gleaming of thy spirit’s wings,
And day and night are of thy beauty part.[718]

किन्तु अब तू इस नश्वर पूजा के लिए अति उच्च औ’ महान् है;
अब तेरे चरणों तले समस्त महाकाल नमित लगता है
और यह सकल संसार अब तेरी सत्ता का एक अंश लगता है,
तेरा अस्तित्व वह मूक स्वर्ग है जिसमें मैं बस रहा हूं,
और तारों की चितवन में बसी तू मुझे देख रही है,
मेरी अन्तरात्मा की इस पार्थिवता में मेरी संरक्षिका है,
मेरा जीवन तेरे सपनाये संकल्पों की मात्र एक गुनगुनाहट है,
मेरे प्रभात तेरी चैत्यात्मा के पंखों की एक चमकती आभा है,
और ये रात्रि औ’ दिवस तेरे सौन्दर्य के अंश मात्र हैं।

Hast thou not taken my heart to treasure it
In the secure environment of thy breast?

क्या तूने मेरे हृदय को निधि समान अपने वक्ष के
सुरक्षित परिवेश में सम्भाल रखने को नहीं लिया था?

Awakened from the silence and the sleep,
I have consented for thy sake to be.

अपनी चरम नीरवता और चिरनिद्रा से जागना
और तेरे लिए ही मैंने अस्तित्व में आना स्वीकारा है।

By thee I have greatened my mortal arc of life,
But now far heaven’s unmapped infinitudes
Thou hast brought me thy illimitable gift.

तेरे लिए ही मैंने अपने इस जीवन के नश्वर घेरे को बृहत्तर बनाया है,
किन्तु अब तो सुदूर स्वर्गों की अमेय अनन्तताओं के
अपने असीम उपहारों को ले तू मेरे पास आयी है!

If to fill these thou lift thy sacred flight,
My human earth will still demand thy bliss:
Make still my life through thee a song of joy
And all my silence wide and deep with thee.”

यदि इनकी पूर्ति करने को तूने यह अपनी पावन उड़ान भरी है,
तो भी मेरी मानव धरती अभी भी तुझसे प्रेमानन्द को मांगती है।
अब भी मेरे जीवन को तू अपने हर्ष का एक गीत बना ले
और मेरे सकल मौन को और विशाल गहन बना अपनत्व से भर दे।’’

A heavenly queen consenting to his will,
She clasped his feet, by her enshrining hair
Enveloped in a velvet cloak of love,
And answered softly like a murmuring lute:
“All now is changed, yet all is still the same.

एक देवलोक की महिषी ने उसकी कामना को स्वीकार कर,
उसके चरणों को पकड़ लिया और अपने पुनीत केशों द्वारा
उसे प्रेम के एक मखमली आवरण में लपेट लिया,
और फिर एक मधुर वंशी-ध्वनि सम खुसफुसाती-सी बोलीः
‘‘अब सब परिवर्तित है, फिर भी अभी सब वैसा ही है।

Lo, we have looked upon the face of God,
Our life has opened with divinity.

अहो, हमने परमेश्वर का दिव्य दर्शन पाया है,
हमारा जीवन अब दिव्यता की ओर उद़्घाटित हो गया है।

We have borne identity with the Supreme
And known his meaning in our mortal lives.

परम पुरुष के साथ हमारा एकत्व स्थापित हो गया है
और अपने नश्वर जीवनों में हमने उसकी सार्थकता जान ली है।

Our love has grown greater by that mighty touch
And learnt its heavenly significance,
Yet nothing is lost of mortal love’s delight.

उसके समर्थ स्पर्श ने हमारे प्रेम को महत्तर बना विकसित किया है
और प्रेम के स्वर्गिक महत्त्व का ज्ञान पाया है,
फिर भी हमने अपने मर्त्य-प्रेमानन्द को नहीं खोया है।

Heaven’s touch fulfils but cancels not our earth:
Our bodies need each other in the same last;
Still in our breasts repeat heavenly secret rhythm
Our human heart-beats passionately close.

देव-स्पर्श हमारी पृथ्वी को परिपूर्ण बनाता है उसका निषेध नहीं करताः
हमारे शरीरों को पहले की तरह एक-दूसरे की अपेक्षा है;
तथापि हमारे अन्तर में देव मन्त्र की गुह्य ताल सतत गुंजित है
हमारे शारीरिक हृदय प्रेमावेश में और समीप धड़कते हैं।

Still am I she who came to thee mid the murmur
Of sunlit leaves upon this forest verge;
I am the Madran, I am Savitri.

मैं अभी भी मद्रदेश की राजकुमारी तेरी सावित्री हूं:
मैं वही हूं जो इस वन-सीमान्त की उजली धूप में
चरमराती पत्तियों पर चलती तुझसे आ भेंटी थी।

All that I was before, I am to thee still,
Close comrade of thy thoughts and hopes and toils,
All happy contraries I would join for thee.

जैसे मैं उस समय तेरी थी, अभी भी तेरे लिए वही हूं
तेरे विचारों और आशाओं और श्रम में तेरी अभिन्न सहचरी हूं,
समस्त प्रसन्न विरोधियों को मैं तेरे लिए मिला एक कर दूंगी।

All sweet relations marry in our life,
I am thy kingdom even as thou art mine,
The sovereign and the slave of thy desire,[719]
Thy prone possessor, the sister of thy soul
And mother of thy wants; thou art my world,
The earth I need, the heaven my thoughts desire,
The world I inhabit and the god I adore.

सकल मधुर सम्बन्धों को हमारे जीवनों से बांध गठबन्धित कर दूंगी;
मैं तेरी राजधानी हूं जैसे कि तू मेरा साम्राज्य है,
तेरी महिषी हूं और तेरी इच्छा की दासी हूं,
तेरी प्रणत परिगृहीत हूं, तेरी आत्मा की भगिनी आत्मा हूं
तेरी आवश्यकताओं की जननी हूं, तू मेरा संसार है,
तू मेरी अनिवारी धरती है, और मेरे संकल्पों का इच्छित स्वर्ग है,
तू मेरा जगत् है जिसमें मैं बसती हूं और मेरा आराध्य देव है।

Thy body is my body’s counterpart
Whose every limb my answering limb desires,
Whose heart is key to all my heart-beats,—this
I am and thou to me, O Satyavan.

तेरा शरीर मेरे शरीर का पूरक है,
जिसके प्रत्येक अंग की कामना मेरा प्रत्युत्तरी अंग करता है,
जिसका हृदय मेरा समस्त हृदय-धड़कनों का कारण है,-
बस मैं तेरी हूं और तू मेरे लिए है, मेरे प्रिय सत्यवान्।

Our wedded walk through life begins anew,
No gladness lost, no depth of mortal joy;
Let us go through this new world that is the same.
For it is given back, but it is known,
A playing-ground and dwelling-house of God
Who hides himself in bird and beast and man
Sweetly to find himself again by love,
By oneness. His presence leads the rhythms of life
That seek for mutual joy in spite of pain.

हमारी विवाहित जीवन-यात्रा का आज से नव-आरम्भ है,
हमने इसकी कोई प्रसन्नता या मर्त्य सुख की गहनता नहीं खोयी है।
आओ इस नये संसार में हम पहले जैसे ही प्रवेश करें,
क्योंकि यह हमें फिर से दिया गया है, तथा यह हमारा पूर्व-परिचित है,
यह तो प्रभु की लीला-भूमि है और उसका निवासित धाम है
प्रभु स्वयं को पशु-पक्षी और मानव में गोपित कर लेता है,
फिर प्रेम एवं एकत्व द्वारा अति मधुर भाव से स्वयं को खोजता है।
उसी की उपस्थिति जीवन को सुसंगतियों से भर देती है
जो पीड़ा के होते हुए भी एक-दूसरे में उल्लसित हो सुख पाती हैं।

We have each other found, O Satyavan,
In the great light of the discovered soul.

इस आविष्कृत चैत्यात्मा के महान् प्रकाश में,
हे सत्यवान्, आज हमने एक दूसरे को खोज पुनः पाया है।

Let us go back, for eve is in the skies.

देखो, नभ पर संध्या उतरती आ रही है, आओ हम लौट चलें।

Now grief is dead and serene bliss remains
The heart of all our days for ever more.

अब दुःख का अन्त हो गया और प्रशान्त आत्मःआह्लाद जीवित है
हमारे समस्त दिवसों का यह प्राण-सुख सतत वर्धित होता रहे।

Lo, all these beings in this wonderful world!

अरे, इस अद़्भुत जगत् के इन प्राणियों को तो देखो!

Let us give joy to all, for joy is ours.

आओ इन्हें हर्षित करें, क्योंकि आज हर्ष हमारा है।

For not for ourselves alone our spirits came
Out of the veil of the Unmanifest,
Out of the deep immense Unknowable
Upon the ignorant breast of dubious earth
Into the ways of labouring seeking men,
Two fires that burn towards that parent Sun,
Two rays that travel to the original Light.

हमारी आत्माएं केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए यहां नहीं आयी हैं,
इस अव्यक्त असत् के पर्दे के बाहर जब वे व्यक्त हुई थीं,
विशाल, गहन परम-अज्ञेय से बाहर निकल सर्वभूतात्मा हिताय
वे इस धूमिल अनिश्चित धरती की अज्ञ छाती पर आयी हैं।
संधान करते श्रमरत मानवों के मार्गों पर,
दो ज्वालाएं हैं जो अपने जनक सूर्यदेव की ओर प्रज्वलित हैं,
दो किरणें हैं जो अपनी आदि मूल ज्योति की ओर यात्रा करती हैं।

To lead man’s soul towards Truth and God we are born,
To draw the chequered scheme of mortal life
Into some semblance of the Immortal’s plan,
To shape it closer to an image of God,
A little nearer to the Idea divine.” [720]

मानव की चैत्य सत्ता को सत्य और ईश्वर की ओर ले जाने को हम जन्मे हैं,
मर्त्य जीवन की इस चतुरंगी योजना को आंकने
अमरत्व की परियोजना के किसी आकार में
इसे प्रभु की एक छवि के अधिक सादृश्य बनाने,
दिव्य पराभाव को तनिक और समीप लाने को हम आये हैं।’’

She closed her arms about his breast and head
As if to keep him on her bosom worn
For ever through the journeying of the years.

सावित्री ने अपनी बांहों से उसका वक्ष औ’ शीश लपेट लिया,
मानों वह सदा उसे निज वक्ष पर सतत धारण कर
जीवन यात्रा की अवधि के मध्य पहने रखना चाहती हो।

So for a while they stood entwined, their kiss
And passion-tranced embrace a meeting point
In their commingling spirits, one for ever,
Two-souled, two-bodied for the joy of Time.

इस प्रकार कुछ देर वे एक दूसरे से लिपटे खड़े रहे,
उनका चुम्बन और भावसमाधि का अनुरागी आलिंगन
उनकी मिश्रित होती आत्माओं का एक मिलन बिन्दु सतत एकत्व का,
जो इस दिक्काल के आह्लाद हेतु दो शरीरों में बसती युगल आत्मा का था।

Then hand in hand they left that solemn place
Full now of mute unusual memories,
To the green distance of their sylvan home
Returning slowly through the forest’s heart:
Round them the afternoon to evening changed;
Light slipped down to the brightly sleeping verge,
And the birds came back winging to their nests,
And day and night leaned to each other’s arms.

तब एक दूसरे का हाथ थाम उन्होंने उस शान्त गम्भीर वन को छोड़ दिया
जो अब मूक असाधारण स्मृतियों से भरा था,
उस वन के मध्य धीमी चाल से कदम धरते
वे सुदूर अपनी हरित तपोभूमि की कुटी की ओर लौट चले।
उनके चहुं ओर अपराह्न संध्या में ढल चुका था;
धूप अब नीचे फिसल उस ज्योतित अलसाये तट पर ठहर गयी थी
और पक्षियों की टोलियां अपने नीड़ों की ओर उड़ती आ पहुंची थीं,
और दिवस-रात्रि एक दूसरे की बांहों में झूल रहे थे।

 

Now the dusk shadowy trees stood close around
Like dreaming spirits and delaying night,
The grey-eyed pensive evening heard their steps,
And from all points the cries and movements came
Of the four-footed wanderers of the night
Approaching. Then a human rumour rose
Long alien to their solitary days,
Invading the charmed wilderness of leaves,
Once sacred to secluded loneliness,
With violent breaking of its virgin sleep.

धूसररंगी छायादार वृक्ष समीप खड़े,
सपनाती प्रेतात्माओं समान रात्रि को अटकाये दिख रहे थे,
भूरे नेत्रों की विचारमग्न संध्या ने उनके चरणों की आहट सुनी,
और तब सब कोनों से रात्रि के निशाचारी पशुओं की
पगध्वनियां और आवाजें आती सुनायी देने लगीं।
तभी हठात् पास आते मनुष्यों का कोलाहल सुनायी पड़ा
यह उनके दीर्घ वनवासी एकान्तवास की अनहोनी घटना थी,
जिसने वन की हरित पत्तियों की मन्त्रमुग्धता भंग कर डाली
कभी जो पुनीत निर्जन एकान्तवास का वातावरण था
उसकी अक्षत-निद्रा को उग्र आघात ने तोड़ दिया।

Through the screened dusk it deepened still and there neared
Floating of many voices and the sound
Of many feet till on their sight broke in,
As if a coloured wave upon the eye,
The brilliant strenuous crowded life of man.

जिसने गोधूलि को और गहरा कर दिया
और तब वहां अनेक वाणियां और पगध्वनियां तैरती-सी पास आतीं,
हठात् उनके दृष्टि-पटल पर टूट पड़ीं,
मानों रंगों की एक लहर उनके नेत्रों के सामने प्रकट हो उठी
यह प्रतिभाशाली कर्मठ जीवन में लगे मनुष्यों की भीड़ थी।

Topped by a flaring multitude of lights
A great resplendent company arrived.

अनेक जलती मशालें ऊपर उठाये
एक महान् समृद्ध जनसमूह के श्रेष्ठजन वहां आ पहुंचे।

Life in its ordered tumult wavering came
Bringing its stream of unknown faces, thronged
With gold-fringed head-dresses, gold-broidered robes,[721]
Glittering of ornaments, fluttering of hems,
Hundreds of hands parted the forest-boughs,
Hundreds of eyes searched the entangled glades.

जीवन-व्यवस्था अपनी नियमबद्धता में लहराती-सी
अपनी धारा में अपरिचित चेहरों को बहा ले आयी थी
स्वर्ण-किनारी से चमकती पगड़ियां, गोटे-जरीकाम के वस्त्र पहने यह मण्डली,
चमकते आभूषण धारण किये, दुपट्टों की किनारियां लहराती आयीं,
सैकड़ों हाथ उस वन की झाड़ियों को हटा मार्ग बना रहे थे,
शत-शत नेत्र उन गुम्फित वनपथों में खोज रहे थे।

Calm white-clad priests their grave-eyed sweetness brought,
Strong warriors in their glorious armour shone,
The proud-hooved steeds came trampling through the wood.
In front King Dyumathsena walked, no more
Blind, faltering-limbed, but his far-questing eyes
Restored to all their confidence in light
Took seeingly this imaged outer world;
Firmly he trod with monarch steps the soil.

शान्त शुभ्र वस्त्र पहने गुरुवर्ग था जिनके गम्भीर नेत्रों में वात्सल्य भरा था,
महाबली योद्धा अपने भव्य कवचों को चमकाते,
खुरों पर ताल पहने गर्वीले अश्वों पर जंगल को रौंदते आ रहे थे,
इन सबके आगे राजा द्युमत्सेन चल रहे थे, वे अब अन्धे नहीं थे,
और उनके पांव डगमगाते नहीं थे, किन्तु उनके सुदूर खोजते नेत्र
पूर्ण आत्म-विश्वास से प्रकाश में
इस बहिर्जगत् को देख रहे थे;
औ’ दृढ़तापूर्वक एक सम्राट् की चाल से वे इस धरती पर चल रहे थे।

By him that queen and mother’s anxious face
Came changed from its habitual burdened look
Which in its drooping strength of tired toil
Had borne the fallen life of those she loved.

साथ में उनकी महिषी, रानीमाता का आतुर मुख दिखायी दिया
जो अपनी अभ्यस्त बोझिल दृष्टि से कुछ बदला-सा दिख रहा था,
जिस मां ने अपनी क्षीण होती शक्ति में थकित परिश्रम द्वारा
अपने प्रियजनों के पतित जीवन का भार उठाया था।

Her patient paleness wore a pensive glow
Like evening’s subdued gaze of gathered light
Departing, which foresees sunrise her child.

उसके सहिष्णु पीतवर्ण में एक तपस्या का तेज था
मानों संध्या की मन्द होती धूमिल चितवन में एकत्रित आभा हो,
जो विदा लेते हुए, अपने पुत्र का भावी प्रभात देख रही हो।

The brilliance of her rich receding gleam
A thoughtful prophecy of lyric dawn,
She lives awhile to muse upon that hope
Sinking in quiet splendours of her sky.

अपने आकाश के शान्त वैभव में अस्त होते हुए
वह कुछ देर उस आशा का मनन करते हुए, जीवन जीती है
अपने क्षीण होते ऐश्वर्य की दीप्त किरण की समृद्धि में
संगीतमयी उषा की एक चिन्तनशील भविष्यवाणी हो जैसे।

Her eyes were first to find her children’s forms.

उस जननी के नेत्रों ने ही अपने बच्चों को सबसे पहले लक्ष्य किया।

But at the vision of the beautiful twain
The air awoke perturbed with scaling cries,
And the swift parents hurrying to their child,—
Their cause of life now who had given him breath,—
Possessed him with their arms. Then tenderly
Cried Dyumathsena chiding Satyavan:
“The fortunate gods have looked on me today,
A kingdom seeking came and heaven’s rays.

किन्तु उस मनोहर युगल का दृश्य देखकर
समस्त वातावरण उच्च स्वर में उठती पुकारों से उद्वेलित हो उठा,
तत्पर माता-पिता उतावले हो अपने पुत्र की ओर बढ़े,-
उसकी ओर जो अब उनके जीवन का कारण थी और जिसने उसे जीवन-दान दिया था,
उनको अपनी बांहों में भर लिया। फिर कोमलता से,
द्युमत्सेन दुलार से सत्यवान् को झिड़कते हुए बोलेः
‘‘सौभाग्य की देवी ने आज कृपादृष्टि मुझ पर डाली है,
मेरे साम्राज्य की भाग्यश्री मुझ पर मुस्कुरायी हैं, स्वर्ग-रश्मियां नीचे उतर आयी हैं।

But where wast thou? Thou hast tormented gladness
With fear’s dull shadow, O my child, my life.

किन्तु तू अभी तक कहां था? ओ मेरे पुत्र, मेरे प्राण,
हमारी इस प्रसन्नवेला में भय की इस शंकित छाया ने हमें बहुत सताया।

What danger kept thee for the darkening woods?

इन अन्धकार में डूबे वनों में तुझे किस विपत्ति के कारण रहना पड़ा?

Or how could pleasure in her ways forget
That useless orbs without thee are my eyes[722]
Which only for thy sake rejoice at light?

या सहचरी के सुखों में खो तू कैसे भूल गया
कि तेरे बिना मेरे नेत्र व्यर्थ के गोल घेरे हैं
जो केवल तेरे लिए ही नेत्र-ज्योति पाकर प्रसन्न हैं?

Not like thyself was this done, Savitri,
Who ledst not back thy husband to our arms,
Knowing with him beside me only is taste
In food and for his touch evening and morn
I live content with my remaining days.”

हे सावित्री, तूने तो कभी इस प्रकार व्यवहार नहीं किया था,
अपने पति को तू सदा हमारे पास उचित समय से लौटा लाती थी,
तू तो जानती है कि उसके समीप होने से ही मैं भोजन में
स्वाद पाता हूं और सांझ-सवेरे केवल उसी का स्पर्श पाने के लिए
मैं अपने जीवन के बाकी दिवस सन्तोष से बिताता हूं।’’

But Satyavan replied with smiling lips:
“Lay all on her; she is the cause of all.

किन्तु इसका उत्तर सत्यवान् ने मुस्कुराते हुए दियाः
‘‘सब इसी से पूछो, यह सब इसी के कारण हुआ है।

With her enchantments she has twined me round.

इसी ने मुझे अपने मोहपाश में चहुं ओर से लपेट लिया।

Behold, at noon leaving this house of clay
I wandered in far-off eternities,
Yet still, a captive in her golden hands,
I tread your little hillock called green earth
And in the moments of your transient sun
Live glad among the busy works of men.”

सुनो, आज दोपहर को मैं अपनी माटी की इस काया को त्याग
सुदूर अनन्तताओं में भटकता निकल गया था,
पर क्योंकि मैं इसके स्वर्ण-करों के बन्धन को काट नहीं पाया,
मैं आपकी इस नन्हीं पृथ्वी नामी पहाड़ी पर पुनः लौट आया,
और इस नश्वर सूर्य की दिशाओं में फिर विचरने
मनुष्यों के व्यस्त जीवन की घड़ियों में सुख से रहने आ गया।’’

Then all eyes turned their wondering looks where stood
A deepening redder gold upon her cheeks,
With lowered lids the noble lovely child,
And one consenting thought moved every breast:
“What gleaming marvel of the earth or skies
Stands silently by human Satyavan
To mark a brilliance in the dusk of eve?

तब सब चकित नेत्रों से उस ओर देखने लगे जहां खड़ी
सावित्री के अरुण गालों की लालिमा और गहरी स्वर्णिम लाली में बदल गयी,
वह सुन्दर संभ्रान्त बालिका निज पलकों को नीचे झुकाये थी,
और प्रत्येक की आत्मा केवल एक सर्वसहमति की भावना से द्रवित थीः
‘‘इस पृथ्वी और गगन की यह कौन चमत्कारिणी दीप्ति है
जो इस नर-सत्यवान् के पार्श्व में मौन खड़ी है
संध्या की इस धूसरता में एक कान्तिमय चिह्न बनी?

If this is she of whom the world has heard,
Wonder no more at any happy change.

यदि यह वही है जिसकी श्रुति इस संसार ने सुनी है
तब तो किसी अद़्भुत सुखद रुपान्तर पर क्या चकित होना?

Each easy miracle of felicity
Of her transmuting heart the alchemy is.”

परमानन्द का प्रत्येक सहज चमत्कार
इसी देवी के रूपान्तरकारी अन्तर की कीमियागिरी है।’’

Then one spoke there who seemed a priest and sage:
“O woman soul, what light, what power revealed,
Working the rapid marvels of this day,
Opens for us by thee a happier age?”

तब उस मण्डली में एक पुरोहित जो ऋषि सम लग रहे थे, बोलेः
‘‘हे नारी-रूपिणी देवात्मा, प्रकटा, वह कौन-सी शक्ति औ’ प्रकाश था,
जिसने इस दिवस में यह तात्कालिक चमत्कार सम्भव बनाया,
तूने तो मानवता के लिए एक सुखतर युग उद़्घाटित कर दिया है?’’

Her lashes fluttering upwards gathered in
To a vision which had scanned immortal things,
Rejoicing, human forms for their delight.

ऊर्ध्व में अवलोकतीं पलकों को झपकाते हुए उसने एक दर्शन पर
नेत्रों को आत्मकेन्द्रित किया, इनमें अमर-पदार्थों की निरीक्षिका दृष्टि थी,
उसने मुदित हो, अपने आनन्द से मानवाकारों को सुख से भर दिया।

They claimed for their deep childlike motherhood
The life of all these souls to be her life,
Then falling veiled the light. Low she replied; [723]
“Awakened to the meaning of my heart,
That to feel love and oneness is to live
And this the magic of our golden change
Is all the truth I know or seek, O sage.”

उन्होंने भी उससे गहन बालसुलभ मातृ-अधिकार से मांग की
उनकी इन आत्माओं के जीवन को अपना जीवन बनाने की,
तब पलकों ने गिर उस ज्योति को ढक दिया। उसने धीरे से उत्तर दिया,
‘‘मैं निज अन्तरप्राण में सत्य-अर्थ के प्रति जाग गयी हूं
प्रत्येक के प्रति प्रेम और एकत्व की अनुभूति पाना ही जीवन है
और हमारे इस दिव्य रुपान्तर की यही जादुई कुंजी है,
मैं इसी सम्पूर्ण सत्य को जानती या खोजती हूं, हे महात्मन्।’’

Wondering at her and her too luminous words
Westward they turned in the fast gathering night.

उसके अति तेजस्वी वचनों पर उसे चकित हो देखते हुए
वे शीघ्रता से गहराती रात्रि में पश्चिम की ओर चल दिये।

 

From the entangling verges freed they came
Into a dimness of the sleeping earth
And travelled through her faint and slumbering plains.

उस जटिल वनप्रान्त से निकल अब वे
धूमिल निद्रा में डूबी धरा पर आ पहुंचे
और उसके अस्पष्ट सुप्त मैदानों में से यात्रा करते आगे बढ़े।

Murmur and movement and the tread of men
Broke the night’s solitude. The neigh of steeds
Rose from the indistinct and voiceful sea
Of life and all along its marchings swelled
The rhyme of hooves, the chariot’s homeward voice.

चरमराती ध्वनियां और गतियां और मनुष्यों के कदमों की आहटें
उस रात्रि की निस्तब्धता को भंग करतीं: उनके घोड़ों की हिनहिनाहटें
उस अस्पष्ट और ध्वनियों के जीवनसिंधु से उठतीं
और खुरों की ताल पर इस प्रयाणयात्रा को ऊंचा उठा देतीं,
घर लौटते रथ के कोलाहल में उमंग भर देतीं।

Drawn by white manes upon a high-roofed car
In flare of the unsteady torches went
With linked hands Satyavan and Savitri,
Hearing a marriage march and nuptial hymn,
Where waited them the many-voiced human world.

श्वेत अश्वों से जुते एक उन्नत रथ पर
सत्यवान्-सावित्री हाथ थामे बैठे थे
रथ मशालों के अस्थिर प्रकाश से घिरा बढ़ रहा था
विवाह के बारात की शोभायात्रा का मंगलगान एवं मन्त्रोच्चार सुनायी दे रहा था,
उस ओर जहां विविध वाणियां बोलता मानव-समाज उनकी प्रतीक्षा में था।

Numberless the stars swam on their shadowy field
Describing in the gloom the ways of light.

उनके धूमिल पथ पर असंख्य तारे तैर रहे थे
जो उस अन्धकार में ज्योति-पथों का वर्णन करते लग रहे थे।

Then while they skirted yet the southward verge,
Lost in the halo of her musing brows
Night, splendid with the moon dreaming in heaven
In silver peace, possessed her luminous reign.

तब जब वे घूम कर दक्षिण-सीमा पर पहुंच ही रहे थे,
निज चिन्तन-मग्न भाल की भव्यता में खोयी रात्रि,
नभ में सपनाते चन्द्रमा के साथ रजत शान्ति से शोभित,
चांदनी में स्नात अपने राज्य पर अधिकार किये थी।

She brooded through her stillness on a thought
Deep-guarded by her mystic folds of light,
And in her bosom nursed a greater dawn.[724]

निज नीरवता के मध्य वह एक संकल्प के चिन्तन में डूबी थी
जिसे अपनी ज्योति की गुह्य परतों में गहनता से सुरक्षित रखे थी,
और वह निज वक्ष में एक महत्तर उषा का पोषण कर रही थी।

THE END